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LokSabha Election 2019: इस क्षेत्र में कांग्रेस की सफलता का अजीब संयोग, चाचा से शुरू भतीजे पर खत्म

सरफराज के बाद कोई भी कांग्रेसी गिरिडीह से चुनाव नहीं जीत सका है। सरफराज के बाद दिग्गज मजदूर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी इस सीट से दो बार किस्मत आजमाई। हार का सामना करना पड़ा।

By mritunjayEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 07:06 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 07:06 PM (IST)
LokSabha Election 2019: इस क्षेत्र में कांग्रेस की सफलता का अजीब संयोग, चाचा से शुरू भतीजे पर खत्म
LokSabha Election 2019: इस क्षेत्र में कांग्रेस की सफलता का अजीब संयोग, चाचा से शुरू भतीजे पर खत्म

गिरिडीह, दिलीप सिन्हा। गिरिडीह लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। आजादी के बाद से एक उप चुनाव समेत 16 चुनाव इस लोकसभा क्षेत्र में हो चुके हैं। सर्वाधिक सात बार जीतने का रिकार्ड भाजपा के नाम दर्ज है जबकि चार बार जीत के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर है। इस परंपरागत सीट में पहली बार कांग्रेस को जीत दर्ज कराने का रिकार्ड प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. इम्तियाज अहमद के नाम दर्ज है। साथ ही इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी बार जीत दर्ज कराने का रिकार्ड उनके ही भतीजे एवं संयुक्त बिहार के कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके डॉ.सरफराज अहमद के नाम दर्ज है।

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सरफराज के बाद कोई भी कांग्रेसी गिरिडीह सीट से चुनाव नहीं जीत सका है। सरफराज के बाद कांग्रेस के दिग्गज मजदूर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भी इस सीट से दो बार किस्मत आजमाई। झामुमो से गठबंधन के बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिली। लगातार हुई हार के बाद कांग्रेस ने तो इस सीट को पिछले करीब दो दशक से झामुमो के हवाले कर दिया है। 99 के बाद से कांग्रेस इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ी है। स्थिति यहां तक पहुंच गयी है कि यहां के वोटर अब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह तक भूलने लगे हैं। 

आजादी के बाद हुए तीसरे लोकसभा चुनाव 1967 में पहली बार कांग्रेस इस सीट पर चुनाव जीती थी। कांग्रेस के डॉ. इम्तियाज अहमद ने इस चुनाव में एमएस ओबेराय को हराकर पहली बार सांसद बने थे। 71 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां चपलेंदू भट्टाचार्य को मैदान में उतारा। कृष्ण बल्लभ सहाय को हराकर चपलेंदू सांसद बने थे। 77 में जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस ने फिर से डॉ. इम्तियाज अहमद को उतारा। वे जनता पार्टी के रामदास सिंह से चुनाव हार गए। इसके बाद 84 में कांग्रेस ने डॉ. इम्तियाज अहमद के भतीजे सरफराज अहमद को मैदान में उतारा। सरफराज उस वक्त गांडेय के विधायक थे और राजनीति में तेजी से बढ़ रहे थे।  झामुमो के संस्थापक विनोद बिहारी महतो को हराकर सरफराज पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में भी सरफराज कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे। लगातार मिली हार के बाद सरफराज ने गिरिडीह लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना छोड़ दिया।

सरफराज के मैदान छोड़ने के बाद बेरमो के विधायक एवं मजदूर नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने मोर्चा संभाला। 98 एवं 99 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के समर्थन से वे लड़े लेकिन दोनों ही बार भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय से हार गए। इसके बाद से आज तक कांग्रेस इस सीट पर नहीं लड़ी।2004 में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन हुआ। यह सीट झामुमो के खाते में चली गयी। झामुमो ने मांडू के अपने विधायक टेकलाल महतो को यहां लाकर उतारा। टेकलाल ने भाजपा के रवींद्र कुमार पांडेय को चौथी बार लोकसभा जाने से रोक दिया। 2009 एवं 2014 के चुनाव में भी कांग्रेस ने यहां झामुमो को समर्थन दिया। इस तरह से गिरिडीह सीट कांग्रेस के पंजे से निकलकर झामुमो के कोटे में चली गयी। अब तो गठबंधन की वार्ता में कांग्रेस गिरिडीह सीट पर दावा तक नहीं करती है।2019 के चुनाव में भी कांग्रेस ने गिरिडीह सीट झामुमो के हवाले कर दिया है। 


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