Election 2019 : लोकतंत्र के प्रति जज़्बा इनसे सीखें, डकैतों ने निकालीं आंखें फिर भी डालते रहे वोट
बीहड़ के एक दर्जन से अधिक गांवों में चलता था डकैतों का फरमान।
औरैया, [हिमांशु गुप्ता]। 1977 से लेकर 2004 तक हर चुनाव में बीहड़ी इलाकों में डकैतों का ही फरमान चलता रहा। फरमान न मानने वालों को जान तक गंवानी पड़ी। मगर, बीहड़ के गांव असेवा के दो चचेरे भाई राजबहादुर व संतोष के साहस को आज भी लोग सलाम करते हैं। डकैतों का फरमान नहीं मानने पर पहले आंखें गंवाई और फिर संतोष ने भाई और पत्नी को खोया। इतने सितम सहने के बाद भी दोनों ने हर चुनाव में न केवल मतदान किया बल्कि अन्य लोगों को भी प्रेरित किया।
फक्कड़ को नागवार गुजरी बात
बात 1996 के लोकसभा चुनाव की है। उस समय बीहड़ में दस्यु सरगना रामआसरे उर्फ उर्फ फक्कड़ व लालाराम का सिक्का चलता था। गिरोह की सदस्य कुसुमा नाइन का नाम सुनकर लोग सिहर उठते थे। फक्कड़ ने अपने चहेते प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने की अपील की। वहीं, कुछ गांव के लोग जो दूसरे दल के समर्थक माने जाते थे, उन्हें मत देने से मना कर दिया। मगर, असेवा गांव में रहने वाले चचेरे भाई संतोष व राजबहादुर ने डकैतों का फरमान नहीं माना। वह खुद वोट देने के लिए निकले और ग्रामीणों को भी प्रेरित किया। यह बात फक्कड़ को नागवार गुजरी। उसने दोनों भाइयों को बुलाया और कहा कि नाव से हम लोगों को यमुना नदी पार करा दो। जब दोनों भाई वहां गए तो गिरोह के सदस्यों ने उनकी आंखें निकाल लीं।
बिलबिला उठे डकैत लालाराम और फक्कड़
पूरे गांव में दहशत फैल गई, कोई अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं था। इस घटना के करीब डेढ़ साल बाद पंचायत चुनाव में फिर डकैतों ने फरमान सुनाया। इस बार भी संतोष व परिजनों ने फक्कड़ और लालाराम के कहे प्रत्याशी को वोट न देकर अपने प्रत्याशी को वोट दिया। इससे डकैत लालाराम और फक्कड़ बिलबिला उठे। 19 नवंबर 1998 की देर शाम संतोष की पत्नी श्रीवती व भाई जयराम घर के बाहर मंदिर में पूजा कर रहे थे, तभी डकैत लालाराम गिरोह के साथ आया और संतोष के न मिलने पर भाई व पत्नी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया।
नहीं माना डकैतों का फरमान
इस घटना से बीहड़ के गांव थर्रा उठे। बावजूद इसके, दोनों भाइयों ने कभी भी डकैतों का फरमान नहीं माना और लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लेते रहे। वर्ष 2004 में डकैतों के सफाए के बाद बीहड़ी क्षेत्र बेखौफ होकर मत का प्रयोग करता है। संतोष व राजबहादुर कहते हैं हम लोगों के प्रयास से ही अच्छी सरकार बनी और डकैतों का सफाया हो सका। डकैतों की मान कर चलते तो उनकी ही सरकार रहती और आज भी हम लोग उनके फरमान पर चलते। इसलिए सभी को मतदान जरूर करना चाहिए।
इन डकैतों का चलता था फरमान
वर्ष 1977 के बाद अस्सी दशक में दस्यु मलखान ङ्क्षसह का फरमान चला करता था। कुछ सालों बाद दस्यु मलखान ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद बाबू ङ्क्षसह गुर्जर, विक्रम मल्लाह, फूलन देवी, रामआसरे उर्फ फक्कड़, कुसुमा नाइन, लवली पांडेय, रामवीर गुर्जर, निर्भय गुर्जर आदि का फरमान बीहड़ के दर्जनों गांवों में चुनाव प्रभावित करता था। वर्तमान में रामआसरे फक्कड़ के साथ कुसुमा नाइन उम्रकैद की सजा काट रही है।