EVM से छेड़छाड़ करके नहीं बदला जा सकता रिजल्ट, जानें इस बात में कितनी सच्चाई है
EVM से छेड़छाड़ करके रिजल्ट नहीं बदला जा सकता है। विपक्ष लगातार आरोप लगाता आया है, लेकिन चुनाव आयोग ने स्प्ष्ट कर दिया है कि वह वापस बैलेट पेपर के युग में नहीं लौटेगा।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। General Elections 2019 में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है। जल्द ही चुनाव की घोषणा हो जाएगी और देशभर में चुनावी शंखनाद भी हो जाएगा। EVM को लेकर रार और तकरार थमने का नाम नहीं ले रही है। विपक्ष लगातार अपनी हार के लिए EVM को जिम्मेदार ठहराता रहा है। हालांकि, ऐसे में विपक्ष यह भूल जाता है इन्ही EVM के इस्तेमाल के बावजूद उसे कई राज्यों में सफलता भी मिलती है। जीत के बाद शायद ही कभी किसी पार्टी ने EVM पर सवालिया निशान खड़े किए हों। इस बारे में चुनाव आयोग पहले ही साफ कर चुका है कि EVM से छेड़छाड़ नहीं हो सकती है। अब चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह EVM को छोड़कर वापस बैलेट पेपर के दौर में नहीं लौटेगा। यहां हम समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर चुनाव आयोग EVM को लेकर इतना आश्वस्त क्यों है और क्यों EVM से छेड़छाड़ करके जीत हासिल नहीं की जा सकती।
7 राज्यों में मिली हार फिर भी भाजपा पर वार
विपक्ष अक्सर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और एनडीए पर EVM में छेड़छाड़ करके जीत हासिल करने का आरोप लगाता रहा है। हाल ही में लंदन में हुए EVM हैकाथॉन में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की मौजूदगी ने एक बार फिर EVM के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है। समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, राकंपा, नेशनल कांफ्रेंस और अन्य पार्टियां... सभी अपनी-अपनी हार के लिए EVM को ही जिम्मेदार ठहराती रही हैं। हालांकि इन्हीं EVM से पिछले दो सालों में पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, मिजोरम, कर्नाटक में भी चुनाव हुए हैं। मजेदार बात यह है कि इन सभी राज्यों में उस भाजपा की हार हुई है, जिस पर EVM टेंपरिंग का आरोप लगता है। इतने राज्यों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, इसके बावजूद EVM को लेकर यही पार्टी सवालों के घेरे में है। चलिए समझते हैं कि आखिर ईवीएम कितनी सुरक्षित है और क्या इसमें धांधली की जा सकती है।
कई देशों में हो चुका है EVM का उपयोग
आपको बता दें कि ईवीएम का इस्तेमाल भारत में ही नहीं किया जा रहा है बल्कि कई अन्य देशों में भी इसका प्रयोग पहले हो चुका है। भारत से अलग देशों की बात करें तो वहां पर EVM एक नेटवर्क से कनेक्टेड होती थी, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। इसके अलावा आपको बता दें कि ईवीएम में धांधली इसके हार्डवेयर में छेड़छाड़ करके या वाई फाई कनेक्शन से इसलिए भी नहीं हो सकती है क्योंकि न तो इसका कोई फ्रिक्वेंसी रिसीवर होता है और न ही इसमें वायरलैस डिकोडर होता है।
हार्डवेयर में टेंपरिंग नहीं आसान
इसके अलावा EVM की सिक्योरिटी के लिए इसमें सीलिंग और हार्डवेयर चेक लगाया जाता है। एम 3 मशीन की यदि बात की जाए तो इसकी खासियत है कि यदि इसमें टेंपरिंग की कोशिश की भी गई तो यह अपने आप बंद हो जाएगी। भारत के अंदर होने वाले चुनाव के लिए EVM का निर्माण दो कंपनियां करती हैं, इनमें से एक है भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड और दूसरी है इलेक्ट्रानिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड। इसके अंदर लगी चिप में मशीन का पूरा प्रोग्राम होता है जो मशीन कोड का काम करता है। इस चिप में मशीन की जांच को लेकर डिजिटल सिग्नेचर भी होता है। किसी खास मशीन को किसी खास मतगणना केंद्र पर भी नहीं भेजा जाता है। इन मशीन पर चुनाव में खड़े उम्मीद्वारों को अंग्रेजी की वर्णमाला के अनुसार नंबर और नाम दिया जाता है, जो ईवीएम मशीन पर दिखाई देता है।
गड़बड़ी हो सकती है, लेकिन शुरुआत में
कहा ये भी जाता रहा है कि EVM को बनाने के दौरान ही उसमें ऐसा प्रोग्राम फिट किया जा सकता है, जिससे मतदाता किसी को भी वोट डालेगा, लेकिन वह किसी अमुक पार्टी के ही खाते में जाएगा। लेकिन यह केवल एक कोरी अफवाह से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि इस बारे में कोई नहीं जानता है कि ईवीएम कहां से आएंगी और कहां पर जाएंगी। इसके अलावा अब तो VVPAT मशीन ने अपने आप ही इन अफवाहों को खारिज करने का काम किया है, जहां पर वोटर को यह पता चल जाता है कि उसका वोट कहां और किसके खाते में गया है। लिहाजा ये एक और वेरिफिकेशन चेक इसमें लग गया है।
बैलेट पेपर से बेहद खास है EVM
भारत की यदि बात की जाए तो यहां पर लगभग पूरे वर्ष ही कहीं न कहीं छोटे और बड़े चुनाव होते रहते हैं। वहीं बैलेट पेपर की तुलना में यदि EVM को आंका जाए तो यह कई मायनों में बेहद खास हो जाती है। बैलेट पेपर के दौरान कई बार वोट इनवेलिड हो जाता था। इसकी कई वजह होती थीं। बैलेट पर लगाया गया निशान यदि दो जगहों पर आ जाता था तब भी इसको इनवेलिड मान लिया जाता था। यह नतीजों को काफी प्रभावित करता था। लेकिन EVM के आने के बाद ऐसा नहीं रहा है। EVM ने चुनाव में होने वाली धांधली पर ब्रेक लगा दिया है। इसके अलावा यदि आपको याद हो तो बैलेट पेपर के वक्त कई बार दोबारा चुनाव करवाने की जरूरत पड़ जाती थी, लेकिन EVM की बदौलत ऐसा न के बराबर होता है। इसके साथ ही EVM का एक असर यह भी हुआ है कि वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ा है।
EVM को चुनाव से पहले कई टेस्ट से गुजरना पड़ता है
आपको यहां पर बता दें कि EVM को मतदान केंद्र तक पहुंचाने से पहले कई टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इसमें सबसे पहले इसका फंग्शनल चेक किया जाता है। इस दौरान इसको पूरी तरह से साफ किया जाता है। इसके रिजल्ट को क्लियर किया जाता है। इसके अलावा इसमें लगे सभी बटनों, वायर आदि को भी चेक किया जाता है।
ट्रायल रन भी किया जाता है
इसके बाद मशीन का ट्रायल रन किया जाता है। इसका अर्थ है कि एक मॉक ड्रिल के दौरान इसमें वोट डालकर देखे जाते हैं, बाद में इसके रिजल्ट को वेरिफाइ किया जाता है। इसके बाद बारी आती है इसके रेंडम चेक की। इसमें भी एक मॉक पोल किया जाता है। इसमें करीब हजार वोट तक डाले जाते हैं, फिर इनका रिजल्ट चेक किया जाता है। इसके बाद बारी आती है इनको मतदान केंद्र पर भेजने की। मतदान केंद्र से पहले यह एक विधानसभा क्षेत्र में बने केंद्र पर जाती हैं, जिसके बाद इन्हें विभिन्न केंद्रों पर भेजा जाता है। यहां पर सभी उम्मीदवारों का इस पर नाम अंकित किया जाता और बैलेट यूनिट को बंद कर सील कर दिया जाता है।
कंट्रोल यूनिट से जुड़ी होती है EVM
यह बैलेट यूनिट एक कंट्रोल यूनिट से जुड़ी होती है। कंट्रोल यूनिट से ओके होने के बाद ही कोई वोटर अपना वोट डाल पाता है। किसी चुनाव में इन यूनिट्स को भेजने से पहले इसको कई बार मॉक पोलिंग की टेस्टिंग से गुजरना पड़ता है। इस दौरान विभिन्न पार्टियों और उम्मीद्वारों के एजेंट वहां मौजूद होते हैं। इनके ही सामने इस मॉक पोलिंग का रिजल्ट भी घोषित किया जाता है। जब ईवीएम को मतदान केंद्र पर ले जाया जाता है तब भी इसकी विभिन्न तरीकों से जांच की जाती है।
फाइनल चेक भी होता है
यह जांच पोलिंग एजेंट, ऑब्जरवर और सुरक्षाबलों द्वारा की जाती है। यह इस मशीन का फाइनल चेक भी होता है। जिस वक्त मतदान समाप्त होता है आखिरी वोट मशीन के द्वारा डाला जाता है तो कंट्रोल यूनिट से क्लोज का बटन दबाकर इस पर आने वाले नंबर को नोट कर लिया जाता है। इसके बाद इस मशीन को सील लगा दी जाती है। इसके बाद इन मशीनों को पूरी तरह से सुरक्षित जगह पर जिसे स्ट्रांग रूम कहा जाता है, रख दिया जाता है।