जीवन देने वाली यमुना का अस्तित्व खतरे में, फिर भी चुनावी मुद्दे से दूर
70 किमी का सफर हरियाणा में तय करती यमुना संकट के दौर से गुजर रही है। 30 नाले नगर निगम के इसे प्रदूषित कर रहे हैं। बावजूद सुध नहीं ली जा रही है।
पानीपत/यमुनानगर, [पोपीन पंवार]। मैं यमुना हूं...। भगवान श्रीकृष्ण ब्रज संस्कृति के जनक तो मैं जननी हूं। जन्म से किशोरावस्था तक श्रीकृष्ण ने अधिकतर लीलाएं मेरे ही तट पर की थीं। सदियों तक लोगों ने मेरा आचमन कर शुभ काम किए, मगर अब मैं संकट में हूं। प्रदूषण की चपेट में हूं। कराह रही हूं। सांसें अटकी हैं। अकाल मौत की तरफ बढ़ रही हूं। कोई सुध नहीं ले रहा। जिसे पुकारती हूं वह कुछ दिन तो मुझे याद रखता है पर उसका काम निकलते ही मुझे नाले के रूप में छोड़ जाता है। आज फिर मुझे एक भगीरथ की तलाश है।
हरियाणा, उप्र और दिल्ली की सियासत में मेरा अहम रोल रहा है। हरियाणा के अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, सोनीपत और फरीदाबाद संसदीय क्षेत्रों के लाखों मतदाता मेरे आंचल में गुजर-बसर कर रहे हैं। मैं इनकी प्यास बुझाती थी पर अब सियासतदानों और सिस्टम ने मुझे ही प्यासी बना दिया है। मैं घुट रही हूं मुझे बचा लो। प्रयागराज के संगम स्थल पर जाकर मैं गंगा और सरस्वती के साथ मिल जाती हूं। जब मैं पश्चिमी हिमालय से निकलकर हरियाणा के मम्दुबांस गांव से हरियाणा में प्रवेश करती हूं। यहीं से दुर्गति शुरू हो जाती है। पेश है यमुनानगर के मुख्य संवाददाता पोपीन पंवार की रिपोर्ट-
नाले में हो चुकी तब्दील
नाले के रूप में उतरी यमुना सरकार और सामाजिक संस्थाओं की तमाम व्यवस्थाओं को कटघरे में खड़ा कर रही है। सामान्य दिनों में यमुना को जीवित रखने के लिए बैराज से 352 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। जो तपती गर्मी और रेत में चंद किमी में सूख जाता है। कनालसी गांव के समीप से निकल रही थपाना और सोमनदी का प्रवाह थोड़ा-बहुत जीवन दान देता है। फैक्ट्रियों के अलवा नगर निगम के 30 नाले, सीवरेज ट्रीटमेंट का दूषित पानी भी जीवनदायिनी यमुना में छोड़ा जा रहा है।
गंगा के बराबर धार्मिक मान्यता
अर्थ एवं समाज शास्त्री डॉ. पीके वाजपेयी का कहना है कि यमुना धार्मिक मान्यता में गंगा की तरह ही पवित्र है। यमुनानगर का अस्तित्व यमुना नदी से है। यहां यमुना नदी भी और नहर भी है। दूरदर्शिता का शिकार रही है। यदि किसी भी सरकार की मंशा होती तो गंगा की तरह विकसित होती। यहां विदेश से लोग आते, कारोबार बढ़ता और उनकी आर्थिक दशा बेहतर होती। इस दिशा में किसी ने नहीं सोचा। यमुना का अस्तित्व प्रदूषण और खनन के कारण खतरे में है। किसी भी पार्टी के जनप्रतिनिधि ने भी यमुना को टूरिज्म के रूप में विकसित करने का एजेंडा ही नहीं बनाया। यमुनानगर की धरा पर्यटन के लिहाज से प्रदेश में अग्रणी हो सकती है।
केंद्रीय मंत्री के दौरे से भी नहीं सुधरी स्थिति
जब भी दिन विशेष पर डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं तो वहां गंदा पानी देख सिर्फ छींटा लगाते हैं। आचमन तक नहीं कर पाते। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री उमा भारती ने भी वर्ष 2015 में यमुना पर चिंता जताते हुए हिमाचल, उत्तराखंड और हरियाणा का दौरा किया था। उन्होंने माना था कि यमुनानगर, पानीपत और सोनीपत के कई नालों का दूषित पानी सीधे डाला जा रहा है, जिस पर अधिकारियों की जमकर क्लास भी लगाई। इसके बाद भी कोई कदम नहीं बढ़ पाए।
माइनिंग माफिया की आर्थिक स्थिति सुधरी, स्थानीयों की बिगड़ी
यमुना नदी के बेड रीवर एरिया में मशीन से माइनिंग करने पर अदालत की पाबंदी है। फिर भी मशीनों से खनन होता है। माफिया राज चलता है। आवाज उठाने वाले को कुचल दिया जाता है। यमुनानगर में 17 माइनिंग प्वाइंट हैं। खनन माफिया ने सरकारी जमीन व कमजोर लोगों की जमीन को भी खोद डाला। अवैध माइनिंग हरियाणा की सीमा कलेसर गांव से लेकर जिले के अंतिम गुमथला राव गांव तक दिन रात जारी है। इससे आगे करनाल जिले की सीमा शुरू होती है। यहां भी ऐसे ही हालात हैं। जो लोग माइनिंग माफिया से गठजोड़ कर लेते हैं। उनकी जीवनशैली उम्दा हो जाती है।
जमीन किसानों की कमाई सरकार व माफिया की
यमुना घाट का दौरा करते हुए मम्मुदबांस से होते हुए दमोपुरा से मंडोली गागड़ से निकल कर कनालसी में पहुंचे। यहां खेत पर काम कर रहे किसान पंकज व सुरेश से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया कि जमींदार तो वे बहुत बड़े हैं। यमुना उनके खेतों से प्रवाहित होती है। उनको इस बात का दुख नहीं है कि यमुना ने फसल खराब कर दी है। दुख तो इस बात का है कि उनकी जमीन से यमुना बह रही है और कमाई माफिया व नौकरशाही की हो रही है। यमुना के रेत व बजरी से दिल्ली तक के लोग मालामाल हो रहे हैं।
यमुना के किनारे पर ये बसे हैं गांव
कलेसर पंचायत, ताजेवाला, माली माजरा, नवाजपुर, लाक्कड़, लेदी, बेलगढ़, अराइयावालां, माडेवाला, देवधर, कनेवाला, लक्कड़ नवाजपुर, दमोपुरा, मेहरमाजरा, मंडौली, कनालसी, लापरा, कैथ, ईशापुर, बीबपुर, कलानौर, कमालपुर टापू, संधाली, संधाली, लाल छप्पर, जठलाना,माली माजरा, नवाजपुर, लाक्कड़, लेदी, बेलगढ़, लाल छप्पर, पौबारी ,उन्हेडी से गुमथला राव से होते हुए यमुना नदी करनाल जिले में प्रवेश करती है। यमुना खादर का खादर कुरुक्षेत्र व अंबाला लोकसभा एरिया को प्रभावित करता है। 70 किलोमीटर के एक एरिया में दो लाख के करीब वोटर है। बाढ़ के लिहाज से जिला बहुत संवेदनशील है। यहां यमुना नदी सहित अन्य कई नदियां जमकर कहर बरपाती हैं।
ये बढ़ रही हैं बीमारी
यमुनानगर से होकर दिल्ली तक पहुंचने वाली यमुना नदी व नहर के पानी पर करीब 70 प्रतिशत आबादी निर्भर है। लेकिन इंडस्ट्री का केमिकल युक्त पानी जो यमुना के पानी में मिल रहा है, उससे लोगों में घातक बीमारियां भी बढ़ी हैं। मुख्य रूप से दूषित जल के सेवन से कैंसर, किडनी, लीवर, ब्रेन संबंधी रोग भी बढ़े हैं।
सर्वाधिक प्रदूषित तत्व हरियाणा में ही डाले जा रहे
पर्यावरणविद डॉ. अजय गुप्ता के मुताबिक बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों सहित, छोटे उद्योगों व कूड़ा कर्कट भी यमुना में बहाया जा रहा है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली भारी धातुओं पारा, शीशा, कैडमियम, क्रोमियम-6, जिंक और आरसेनियम के अलावा पोलीएरोमैटिक हाइड्रो कार्बन्स और कीटनाशक यमुना के पानी में जहर घोल रहे हैं।
बाढ़ बचाव पर बजट में भी हर वर्ष हो रही कटौती
सरकार बचाव के नाम पर केवल खानापूर्ति कर रह ही है। बैराज से लेकर गुमथला तक यमुना नदी की लंबाई करीब 70 किलोमीटर, जबकि केवल नौ जगह बाढ़ से बचाव के कार्य कराए जाएंगे। आठ करोड़ 71 लाख 78 हजार रुपये की लागत से कुल 17 कार्य कराए जाने हैं। बता दें कि बारिश के सीजन में यमुना में पानी का बहाव नौ लाख क्यूसेक तक पहुंच जाता है। आसपास के सैकड़ों गांव चपेट में आ जाते हैं।
बजट पर नजर
- वर्ष 2011-12 में साढ़े 13 करोड़
- 2012-13 : आठ करोड़ रुपये
- 2013-14 : साढ़े दस करोड़
- 2014-15 : 17 करोड़
- 2015-16 : 11 करोड़
- 2016-17 : नौ करोड़
- 2017-18 : 14 करोड़
- 2018 - 19 : 8 करोड़ 71 लाख 78 हजार रुपये