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धर्म और राजनीति के सबसे बड़े युद्ध का साक्षी कुरुक्षेत्र, बड़े-बड़े संदेश यहीं से निकले

देश के दो बार प्रधानमंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा यहीं से सांसद चुने गए। नवीन जिंदल को यहीं से सांसद बनने का मौका मिला तो राजकुमार सैनी की बगावत को भी इसी धरा ने देखा।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 02:56 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 02:58 PM (IST)
धर्म और राजनीति के सबसे बड़े युद्ध का साक्षी कुरुक्षेत्र, बड़े-बड़े संदेश यहीं से निकले
धर्म और राजनीति के सबसे बड़े युद्ध का साक्षी कुरुक्षेत्र, बड़े-बड़े संदेश यहीं से निकले

कुरुक्षेत्र [पंकज आत्रेय]। मैं धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र हूं। मेरा इतिहास उतना ही पुराना है, जितना श्रीमद्भगवद गीता का ज्ञान और महाभारत का महासंग्राम। मैं पांच हजार साल से भी ज्यादा काल से अपने सीने पर भाई-भाई की दुश्मनी और खून का दंश लिए आगे बढ़ा हूं। मेरी मिट्टी आज पूरी दुनिया में अधर्म पर धर्म की सबसे बड़ी जीत का संदेश देती है। गीता का ज्ञान जीवन की हर दुविधा का समाधान उपलब्ध कराता है तो मेरे आगोश में आकर हर श्रद्धालु-सैलानी पुण्य की अनुभूति करता है। चूंकि महाभारत का युद्ध भी धर्म और राजनीति से ही जुड़ा रहा है तो मैं हजारों साल से सियासत के परिणाम-दुष्परिणाम का साक्षी भी रहा हूं। मथुरा और वृंदावन के बराबर ही मेरा भी महत्व है। मुझे भगवान श्रीकृष्ण की कर्मस्थली कहा जाता है। कर्म की धरा ने कर्म को ही महत्‍व दिया। अगर किसी ने गुरुर किया तो उसे बदलने में मैंने देर नहीं लगाई।

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गुलजारीलाल नंदा, पूर्व पीएम

राजनीति- पूर्व पीएम नंदा ने 1977 में बदला हेडक्वार्टर
वर्ष 1977 तक मेरी लोकसभा सीट का हेड क्वार्टर कैथल रहा। कैथल यानी कपिस्थल जिसे भगवान हनुमान का जन्मस्थली माना जाता है। तत्कालीन सांसद पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने मुझे कैथल से बदलकर कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र करा दिया। गुलजारी लाल नंदा को 1967 से 1971 और इसके बाद 1971 से 1977 तक लगातार दो बार मैंने ही सांसद बनाकर संसद भेजा। उन्होंने इसका बदला भी चुकाया। उन्होंने 10 अप्रैल 1977 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और कुरुक्षेत्र के तीर्थ स्थलों के विकास में लग गए। कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड का गठन उन्होंने ही किया था। वे 27 मई 1964 से नौ जून 1964 तक पहली बार 14 दिन तक अंतरिम प्रधानमंत्री रहे और इसके बाद दूसरी बार 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक अंतरिम प्रधानमंत्री रहे। यह सब मैंने अपनी आंखों से देखा है।

मेरा विस्तार
मैंने न सिर्फ धर्म के नजरिये से बल्कि राजनीतिक विस्तार से भी तीन जिलों को अपने समेट रखा है, जिनके नौ हलके मेरे अंदर हैं। कुरुक्षेत्र के थानेसर, लाडवा, शाहाबाद व पिहोवा, कैथल के कैथल, गुहला, कलायत व पूंडरी और यमुनानगर जिले का एक हलका रादौर इनमें शामिल हैं। इनमें कुरुक्षेत्र लोकसभा के नौ विधानसभा क्षेत्रों में आम चुनाव-2019 के लिए 16 लाख आठ हजार 36 मतदाता हैं। इनमें आठ लाख 56 हजार 202 पुरुष और सात लाख 51 हजार 834 महिला मतदाता आते हैं।

अब तक ये सांसद रहे
वर्ष 1957-62 में कांग्रेस से मूलचंद जैन, वर्ष 1962-67 में कांग्रेस से डीडी पुरी, वर्ष 1967-71 में कांग्रेस से गुलजारी लाल नंदा, 1971-77 में पुन: गुलजारी लाल नंदा, 1977-80 में जनता पार्टी से रघुबीर सिंह विर्क, वर्ष 1980-84 में जनता पार्टी से मनोहर लाल, 1984-89 में कांग्रेस से हरपाल सिंह, 1989-91 में जनता दल से गुरदयाल सिंह, 1991-96 में कांग्रेस से सरदार तारा सिंह, वर्ष 1996-98 में हरियाणा विकास पार्टी से ओमप्रकाश जिंदल, 1998-99 में इनेलो से कैलाशो सैनी, 1999-2004 में फिर इनेलो से कैलोशो सैनी, वर्ष 2004-09 के चुनाव में कांग्रेस से नवीन जिंदल, 2009-14 में कांग्रेस से दोबारा नवीन जिंदल। 2014-19 के चुनाव में भाजपा के राजकुमार सैनी।

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मुझे चाहिए हवाई अड्डा, ब्रह्मसरोवर है गौरव
मैं धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से तो 48 कोस तक फैला हूं। कुरुक्षेत्र के साथ-साथ करनाल, कैथल और जींद तक धर्म और पर्यटन की दृष्टि से मेरा विस्तार है। श्रीकृष्णा संग्रहालय, कुरुक्षेत्र पैनोरमा और विज्ञान केंद्र, एशिया का सबसे बड़ा ब्रह्मसरोवर मेरे ही गौरव हैं। सूर्यग्रहण, पितृपक्ष, सोमवती अमावस्या और तर्पण के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। यूं तो पिछले दशकों में मैंने खूब तरक्की की, लेकिन एक हवाई अड्डे की कमी खलती है। अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती उत्सव मैं हर साल मनाता हूं।

शिक्षा
शिक्षा की दृष्टि मैं प्रदेश का सबसे ज्यादा महत्व रखता हूं। प्रदेश के पहले विश्वविद्यालय की स्थापना मेरे यहां ही हुई, जिसका नाम मेरे नाम पर ही रखा गया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय। प्रदेश का एकमात्र राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान भी मेरे यहां ही हैं।


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