हिमाचल में बढ़ी चुनावी गहमागहमी, मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच
Lok Sabha Election 2019 हिमाचल प्रदेश में चुनावी गहमागहमी लगातार बढ़ रही है। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है आने वाले समय में सियासी पारा और चढ़ेगा।
धर्मशाला, नवनीत शर्मा। सातवें चरण में मतदान के लिए तैयारी कर रहे हिमाचल प्रदेश में चुनावी गहमागहमी लगातार बढ़ रही है। तीसरी कोई ताकत पहाड़ से दूर है, लिहाजा मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। दोनों दलों ने अभी तक किसी बड़े या राष्ट्रीय नेता की जनसभा आयोजित नहीं की है। आने वाले समय में सियासी पारा और चढ़ेगा, लेकिन उससे पहले हिमाचल प्रदेश की सियासत ने वही दौर देखा जो संभवत: इन दिनों स्वाभाविक होता है। यह मौसम वस्तुत: मान-सम्मान, घर वापसी, सुबह का भूला शाम को घर आया, आपके पास अमुक है तो हमारे पास यह है... आदि शब्दों का मौसम है। यह स्वाभाविक क्यों है? इसलिए क्योंकि यह जंग है, जिसमें सब जायज ठहराया जाता है।
यह सुविधा के प्रतिमानों को संवारने का मौसम है, जिसके बिना राजनीति संभव नहीं। इस मौसम की शुरुआत पंडित सुखराम ने पोते समेत कांग्रेस में जाकर की थी। उसके बाद जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी बढ़ती गई, हर पार्टी को अपने अंदर की दरारों को ढांकने के लिए चौकस होना पड़ा।
इस सारी कवायद में उन लोगों की घर वापसी भी हो रही है, जिन्होंने जम कर अपने ही घर की नींव को खोखला किया था। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें तब तो खूब कोसा गया जब वे दूसरे दल में थे, लेकिन साथ आते ही उनके सब गुनाह माफ हो गए। भाजपा को घेरने के लिए सुरेश चंदेल कभी कांग्रेस का पसंदीदा विषय हुआ करते थे, लेकिन वह अब कांग्रेस की प्रचार समिति के सह संयोजक हैं। जिन सिंघी राम को घेर कर 11 साल पहले सरकार बनाई गई, वे अब भाजपा के साथ हैं। अंतर केवल इतना है कि दलों के लिए यह रणनीति है जबकि मतदाता के लिए राजनीति। ऐसे कई नेता हैं जो इसी तर्क या मिशन के सहारे नई भूमिकाएं पा रहे हैं कि कुछ भी हो, नुकसान न हो।
यूं भी अपना बढ़ता हुआ कुनबा किसे बुरा लगता है, खास तौर पर जब चुनाव सिर पर हों। तब, जब माहौल यह हो कि एक पक्ष हाथ की मजबूती के लिए डटा हो और दूसरा इसी कीचड़ में चार कमल खिलाने का संकल्प लिए हों। भाजपा की ओर से केवल मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पूरे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं, बाकी भाजपा नेता अपने-अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं, सीमित भी। शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल अब तक चारों प्रत्याशियों के नामांकन के सिवा बाहर नहीं गए हैं।
मुख्यमंत्री का प्रयास है कि वह हर जगह जाएं और अपनी नई छाप छोड़ें। चुनाव से पूर्व कांग्रेस जिस बड़ी शल्य चिकित्सा से गुजरी है, उसके बाद उसके हावभाव पूर्व केंद्रीय केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा की राजनीति से मिलने लगे हैं, लेकिन यह काम बरास्ता वीरभद्र सिंह हो रहा है। अब वीरभद्र सिंह तो वीरभद्र सिंह ठहरे।
मंडी के एक दूरस्थ क्षेत्र में आश्रय शर्मा के सामने कह दिया, ‘इसके दादा ने मुझे रगड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ चीजें माफ नहीं हो सकतीं, लेकिन आश्रय का इसमें कोई दोष नहीं। उसे सफल बनाएं।’ भाजपा को प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे, मुख्यमंत्री की सक्रियता के अलावा जहां से लाभ की अपेक्षा है, वे कुछ ऐसे ही बयान हैं। इस बीच, विधानसभा चुनाव में उलटफेर करने के लिए जाने जाते हमीरपुर में भाजपा संभवत: जानती है कि उसे हमीरपुर में मेहनत करने की जरूरत है। अभी तक का वातावरण यह भी सिखा रहा है कि कोई प्रत्यक्षत: बेशक नई भूमिका में हो, विचार बदलने में देर लगाते हैं। अपने साथ झूठ बोलना सबसे मुश्किल काम होता है इसीलिए तो सुरेश चंदेल साफ कह गए कि भले ही कांग्रेस में हूं लेकिन आरएसएस से बहुत अच्छी बातें सीखी हैं।