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Lok Sabha Election 1952: पहले आम चुनाव के गवाह बने भाई-बहन बोले -1952 में वोट डालते ही दूर हो गई थी घबराहट

Lok Sabha Election 1952 बीते दिनों की याद करते हुए अमीरवास निवासी 96 वर्षीय ताराचंद कहते हैं अब जमाना बदल गया। सब लोग मिलकर रहते थे। पहली बार वोट मैंने 1952 में डाला था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 12 May 2019 12:11 PM (IST)Updated: Sun, 12 May 2019 01:31 PM (IST)
Lok Sabha Election 1952: पहले आम चुनाव के गवाह बने भाई-बहन बोले -1952 में वोट डालते ही दूर हो गई थी घबराहट

मदन श्योराण, ढिगावा (भिवानी)। Lok Sabha Election 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के गवाह अमीरवास गांव के बुजुर्ग भाई-बहन 17वीं लोकसभा चुनाव में भी मतदान करेंगे। 104 वर्षीय माड़ी देवी और उनके छोटे भाई 96 वर्षीय ताराचंद रविवार को मतदान करने के लिए खासे उत्साहित हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी उनमें मतदान को लेकर युवाओं जैसा उत्साह है, जो सभी को प्रेरित करता है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और उसके बाद की तमाम बड़ी घटनाएं भी उनके जेहन में ताजा हैं।

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माड़ी देवी ने घर के बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि उनके जन्म के साल ही गांधी जी स्वदेश लौटे थे और एक तरह से उसी साल गांधी युग की शुरुआत हुई थी। उन्हें याद है कि रेडियो पर देश के आजाद होने की घोषणा पर गांव में कैसे खुशी मनाई गई थी। पहली बार मतदान का रोमांच उन्हें आज भी प्रफुल्लित कर देता है। ताराचंद बताते हैं कि पहली बार वोट डालते वक्तअजीब द्वंद्व था कि कैसे वोट डाला जाएगा। उन्हें सिर्फ यह बताया गया था कि- फलाणा खड़ा हो रहया सै (फलां प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा है)। माड़ी देवी की लड़खड़ाती जुबान पर भी यही है कि पहली बार वोट डालने गई तो मन में उधेड़बुन था। जैसे-जैसे वोट डालते गए विश्वास मजबूत होता गया। कहती हैं, आज तो नेता घर-घर जा रहे हैं, पहले नेता इस तरह गांव-गांव नहीं आया करते थे। गांव के बड़े-बूढ़े बता दिया करते और वोट पड़ जाया करता था। अब जमाना बदल गया है, बच्चे-बच्चे को पता है कि कैसे वोट डालते हैं और क्यों ?

इस बागड़ के तो ईब जाकै हालात सुधरे सैं: गांव नकीपुर की माड़ी देवी के आधार कार्ड में उम्र 104 साल दर्शाई गई है। पहली बार वोट डालने के सवाल पर वह बताती हैं, कहती हैं- बेटा, यह वोट की ही ताकत है कि बागड़ क्षेत्र निहाल हो गया। जब पहली बार वोट डालने गई थी तो घर की अन्य महिलाएं भी थीं। वोट पहाड़ी गांव में डाली गई थी। उस समय घबराहट बहुत हो रही थी। वोट डालने के बाद ही मन को शांति मिली थी।

माड़ी देवी कहती हैं कि उस जमाने में चुनाव प्रचार नहीं के बराबर था। बहुत मुश्किल से वोट बनता था। उस समय महिलाएं अपना नाम नहीं बताती थीं। उन्हें पिता, पति या बेटा-बेटी के नाम से जाना जाता था। पहली बार वोट बनाने के लिए नंबरदार को मेरे भाई लेकर आए थे। माड़ी देवी कहती हैं- बेटा उरै सारै टिब्बा हुया करदा। साल तो मेरै याद कोनी एक बै बंसीलाल वोट मांगण आयो थो। उसनै कहयो थो कै मैं इस इलाकै म्हें पाणी की भरमार कर दूंगा। नहरां म्हैं पाणी होगा तो गेहूं पैदा होगी। बाजरै की रोटी की जगहां थमनै गेहूंआं की रोटी खाण नै मिलैंगी। इसके बाद म्हैं इस इलाकै कै लोगां की जिंदगी सुधरेगी... (बंसीलाल वोट मांगने आए थे और कहा था कि मैं इस इलाके में पानी की भरमार कर दूंगा, नहरों में पानी होगा तो गेहूं पैदा होगा, बाजरे की जगह गेहूं की रोटी खाने को मिलेगी, इलाके के लोगों की जिंदगी सुधरेगी...)। 

ईब तै भाई जमानो ए बदल ग्यो...

बीते दिनों की याद करते हुए अमीरवास निवासी 96 वर्षीय ताराचंद कहते हैं, अब जमाना बदल गया। सब लोग मिलकर रहते थे। पहली बार वोट मैंने 1952 में डाला था। चौ. देवीलाल और चौ. बंसीलाल ने इस बागड़ में बहुत काम कराए। पुराने समय को याद करते हुए कहते हैं कि अब तो महिला-पुरुष सब बराबर हो गए। आने जाने का साधन बढ़ गया तो नेता गांव-गांव वोट मांगने जाने लगे। जब पूछा कि वोट डालने जाओगे तो उन्होंने कहा- जरूर लेकिन वोट किसे देंगे, इस सवाल का उन्होंने सीधा जवाब नहीं दिया। कहाऐसे कैसे बता दूं। मेरी जिसे वोट डालने की मर्जी होगी, उसे वोट डालूंगा।

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