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Lok Sabha Election 2019: अबकी बार निर्णायक सरकार तभी होगा बेड़ा पार

Lok Sabha Election 2019 मजबूत सरकार का मतलब स्पष्ट जनादेश वाली निर्णायक सरकार। देश की राजनीतिक स्थिरता उसके आर्थिक विकास को तेज रफ्तार के साथ सही दिशा देने में अहम भूमिका निभाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 10:30 AM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 10:39 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: अबकी बार निर्णायक सरकार तभी होगा बेड़ा पार
Lok Sabha Election 2019: अबकी बार निर्णायक सरकार तभी होगा बेड़ा पार

अरविंद चतुर्वेदी। Lok Sabha Election 2019 17वीं लोकसभा के सदस्यों को चुनने का समय आ गया है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। अपने वर्तमान और भविष्य को बेहतर करने के लिए हम सब सरकारों का चुनाव करते हैं। आंकड़े बताते हैं कि जब-जब केंद्र में मजबूत सरकार रही है तब-तब लोगों का तुलनात्मक रूप से ज्यादा कल्याण हुआ है। राष्ट्र का तेजी से विकास हुआ है। मजबूत सरकार का मतलब स्पष्ट जनादेश वाली निर्णायक सरकार।

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देश की राजनीतिक स्थिरता उसके आर्थिक विकास को तेज रफ्तार के साथ सही दिशा देने में अहम भूमिका निभाती है। योजनाओं और नीतियों को बनाने से लेकर उनके क्रियान्वयन तक कहीं कोई रोड़ा नहीं सामने आता है। मजबूर सरकारों के साथ ऐसा नहीं हो पाता जिससे कहीं न कहीं आम जनता का कल्याण प्रभावित होता है। योजनाएं लंबित रहती हैं। उनकी लागत बढ़ती है और राष्ट्र का विकास अवरुद्ध होता है।

मजबूत सरकार
ऐसी सरकार जिसे जनता स्पष्ट जनादेश देती है। ऐसी सरकार को जनता के हित में उठाने वाले किसी भी कदम में राजनीतिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती है। सरकार मुक्त रूप से देश के आर्थिक विकास को तेज करने के लिए हर कदम उठाने को स्वतंत्र होती है। गठबंधन की राजनीति से इतर इसमें सरकार राष्ट्र के विकास पर ध्यान केंद्रित कर पाती है।

अतीत के आईने से
गठबंधन सरकार जब दो समान विचारधारा वाले दल चुनाव से पहले या चुनाव बाद मिलकर सरकार बनाते हैं। इस प्रकार के गठबंधन में सरकार के सहज रूप से काम करने की संभावना थोड़ी अधिक होती है। हालांकि इनमें भी कई मसलों पर खींचतान का इतिहास रहा है। केरल और पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारें इसका उदाहरण रही हैं। 1999 की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। इस सरकार में शामिल दलों ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर विकास को गति दी।

गठबंधन के दूसरे प्रकार के तहत जब किसी दल या गठबंधन को सत्ता से दूर रखने के लिए कई सारी राजनीतिक पार्टियां गठजोड़ बनाकर सामने आती हैं तो फौरी तौर पर तो सामने वाले दल को हराने के लिए उनमें एकता दिखती है, क्योंकि उस समय उनका वही लक्ष्य होता है। लेकिन इस मंसूबे के पूरा होते ही कुछ ही महीनों में ये सरकार ताश के पत्तों की तरह ढह जाती है। येन-केन-प्रकारेण जितने दिन ये चलती भी है, उनमें जनता से जुड़ी बड़ी नीतियों और योजनाओं को शायद ही कोई अमलीजामा पहनाया जा सकता हो।

गठबंधन की गांठ
गठबंधन सरकार में शामिल छोटीछोटी क्षेत्रीय पार्टियों के अपने क्षेत्रीय हित होते हैं जो व्यापक स्तर पर राष्ट्रीय हित के आड़े आते हैं। लिहाजा इनके बीच अपने वोट बैंक को साधने के हित टकराते रहते हैं। सरकार का जीवनकाल लंबा नहीं चल पाता है। सरकार गिरने पर या तो नेतृत्व बदलता है या फिर चुनाव कराया जाता है। अंतत: जनता के कल्याण और राष्ट्र के विकास पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।

केंद्र का बिखराव
करीब एक चौथाई सदी बाद 2014 में केंद्र सरकार के लिए किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिला। कांग्रेस के रूप में एक दल के आधिपत्य से अधिक प्रतिस्पर्धी बहुदलीय प्रणाली का यह बदलाव किसी एक दल को बहुमत के करीब पहुंचने में बड़ी बाधा रहा है। लिहाजा 1989 के आम चुनाव के बाद तकरीबन लगातार गठबंधन सरकारों का बनना केंद्र का नसीब बन चुका है। ‘कांग्रेस प्रणाली’ में कांग्रेस पार्टी का केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर प्रभुत्व था। अन्य राजनीतिक दलों के लिए इसमें बहुतकम गुंजायश बचती थी। 1989 के बाद की नए पार्टी सिस्टम में कांग्रेस भी अन्य खिलाड़ियों की कतार में खड़ी हो गई। तब से सभी सरकारें गठबंधन करके सरकार बनाने पर विवश रहीं। जिन सरकारों ने समान विचारधारा वाले दलों के साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर काम किया, उनमें विकास का फायदा लोगों तक पहुंचा

राज्यों की प्रवृत्ति
गठबंधन या साझा सरकारें राज्यों की सरकारों में भी बनती आई हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 1967 से 1999 के बीच ऐसी 43 गठबंधन सरकारें थीं।

राजनीतिक स्थिरता व आर्थिक विकास
आजादी के भारत की अर्थव्यवस्था को सुविधा के लिए दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला 1951-52 से 1990-91 और दूसरा उदारीकरण से अब तक। भारतीय अर्थव्यवस्था के पहले हिस्से के चालीस साल के दौरान जीडीपी 4.2 फीसद सालाना के दर से बढ़ी। प्रति व्यक्ति सालाना आय में दो फीसद इजाफा हुआ। 1969-70 से 1990-91 यानी करीब दो दशक के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 8.2 फीसद वृद्धि हुई। 1980-81 से 1990-91 के दस साल के दौरान केंद्र सरकार का वित्त घाटा औसतन 6.5 फीसद रहा। यही नहीं, उदारीकरण से पहले तक हमारा विदेशी कर्ज जीडीपी का 28.7 फीसद तक रहा।

भारत के लिए निर्णायक सरकार की दरकार
मैकेंजी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का मध्य वर्ग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। 2005 में इसका आकार 14 फीसद था, 2015 में यह बढ़कर 29 फीसद हो गया। अगर सब कुछ इसी तरह चलता रहा तो 2025 तक देश की 44 फीसद आबादी मध्य वर्ग के दायरे में होगी।

आकांक्षाएं बड़ी है
इस मध्य वर्ग की निगाहें ऐसी सरकार पर टिकी हैं जो उनकी उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरी उतर सके। ग्रामीण इलाकों में भी एक ऐसे वर्ग का अभ्युदय हो चुका है जो सरकारी मदद से कदमताल करते हुए अपने बेहतर कल्याण में जुटा हुआ है। एक मजबूत सरकार ही ग्रामीण इलाकों में संसाधनों का निर्बाध स्थानांतरण सुनिश्चित करा सकती है। योजनाओं और नीतियों की पंगुता दूर कर सकती है।

बदलाव की नींव
भारत एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां से वह अपने लोगों की सोशल प्रोफाइल, क्रय शक्ति और गुणवत्तापरक जीवन में 360 डिग्री का बदलाव ला सकता है। भले ही इसमें दशकों लगे, लेकिन इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत की पहली जरूरत है कि उसे निर्णायक नेतृत्व मिले। मजबूत और स्थायी सरकार मिले। कामचलाऊ गठबंधन या तात्कालिक लाभ के लिए सत्ता में आया नेतृत्व लोगों की इस उम्मीद पर शायद ही खरा उतर सके।

लोकतंत्रकी महक
खूबी

गठबंधन सरकारें अधिक लोकतांत्रिक होती हैं क्योंकि ये एक पार्टी की तुलना में व्यापक जन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। गठबंधन सरकारों में बहुसंख्यक आबादी जिन दलों को वोट देती है, वे सरकार का गठन करते हैं। इसलिए नीतिगत मामलों में उनके विचारों और हितों का प्रतिनिधित्व दिखाई देता है।

खामी
सत्ता का संतुलन छोटे दलों के हाथ होता है। समर्थन के नाम पर ये बड़े समूहों से सौदेबाजी करते हैं। यानी कि कम जनाधार वाली एक छोटी पार्टी ब्लैकमेलिंग के जरिये बहुमत पर अपनी नीतियों को थोपने में सक्षम होती है। इस तर्क पर इन्हें कम लोकतांत्रिक कहा जा सकता है।

राजनीतिक व्यवस्था
खूबी

ईमानदार और बेहतर राजनीतिक तंत्र का सृजन करती हैं। वोटर के पास स्पष्ट विकल्प होता है। ब्रिटेन और अमेरिका में गठबंधन सरकारें बेहद दुर्लभ हैं। इन देशों में विचारों का फैलाव प्रमुख दलों के भीतर निहित होता है। इसलिए हर दल में हित समूहों के बीच संघर्ष तो होता है लेकिन पार्टी में प्रकट नहीं होता है।

खामी
ऐसी सरकारें कम पारदर्शी होती हैं। एक दल अपने दम पर सरकार का गठन नहीं कर सकता। इसलिए उनका घोषणापत्र बेमानी और अवास्तविक हो जाता है। राजनीतिक कार्यक्रम के मामले में वास्तविक निर्णय चुनाव बाद गुप्त तरीकों से बंद कमरों के लिए जाते हैं।

सुशासन की सुध
खूबी

गठबंधन सरकारें बढ़िया शासन प्रदान करती हैं क्योंकि उनके निर्णय बहुमत के हितों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं। किसी भी निर्णय को क्रियान्वित करने से पहले सबके विचारों की सहमति ली जाती है। सभी का हित सर्वोपरि होता है।

खामी
ऐसी सरकारें खराब शासन का परिचय देती हैं क्योंकि ये दीर्घकालिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत नहीं करती। कभी-कभी कठिन और गंभीर राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर विचारधारा के आवरण की आवश्यकता होती है, लेकिन गठबंधन सरकार में ऐसी एकता का अभाव होता है। परीक्षा की ऐसी घड़ी में गठबंधन सरकारें विफल हो जाती हैं।

प्रशासन की पहुंच
खूबी

ऐसी सरकारें प्रशासन में निरंतरता प्रदान करती हैं क्योंकि इनमें कम से कम कुछ मंत्री ऐसे जरूर होते हैं जो पहले की सरकारों में मंत्री रहे होते हैं। इसके चलते प्रशासक नीतियों में धीरे-धीरे रचनात्मक परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं।

खामी
ऐसी सरकार अस्थिर होती हैं। नियमित अंतराल पर इनका पतन होता रहता है। इटली ऐसा ही उदाहरण पेश करता है, जहां 1945 के बाद हर सरकार औसतन एक साल से कुछ अधिक समय तक ही सत्ता में रह सकी है। भारत में गठबंधन सरकारों में शामिल क्षेत्रीय दल अपनी वोट बैंक नीति के चलते किसी भी हित प्रभावित करने वाली नीति को लागू नहीं करने देते हैं।


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