इकलौते चेहरे के भरोसे कांग्रेस तो इनेलो में भी पड़ा टोटा, जजपा-आप भी खामोश
कुरुक्षेत्र धर्मनगरी में सियासी युद्ध चरम पर है। बावजूद अभी तक पार्टियां सियासी योद्धा की घोषणा नहीं कर पाई हैं। पढि़ए ये रिपोर्ट...।
पानीपत/कुरुक्षेत्र, [पंकज आत्रेय]। कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर इस बार जो हालात खड़े हो गए हैं, शायद ही पहले कभी देखने को मिले हो। कांग्रेस के बाद अब इनेलो ने इस सीट को होल्ड रख लिया है। साफ झलक रहा है कि पार्टियों ने लोकसभा चुनाव के लिए होम वर्क नहीं किया और वह भागमभाग वाली स्थिति को भांपने में नाकाम रही हैं। कहा जाता है कि अच्छी शुरुआत ही आधी जीत होती है। यहां तो आरंभ ही नहीं हो पा रहा है।कांग्रेस एकमात्र नवीन जिंदल को ही उम्मीदवार तय करके चल रही थी और कार्यकर्ताओं में भी यही संदेश रहा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में विधायक दल की नेता किरण चौधरी ने उनके नाम का एलान कर इस पर मुहर भी लगा दी थी।
14वीं और 15वीं लोकसभा में यहां से सांसद बने नवीन की आखिरी पलों में चुनाव लडऩे से ना-नुकुर ने कांग्रेस में धर्मसंकट में डाल दिया तो अब इनेलो के साथ भी कमोबेश यही स्थिति हो रही है। कुरुक्षेत्र सीट के लिए तैयार किए गए पैनल में इनेलो के सबसे मजबूत चेहरे पूर्व संसदीय सचिव रामपाल माजरा ने भी चुनाव लडऩे से मना कर दिया है। अब पार्टी के सामने नए नाम का चयन करने की चुनौती है और साथ ही उनकी उम्मीदवारी की परिणति के आकलन की भी। इसके विपरीत देश के साथ प्रदेश में भाजपा भी पांचों साल चुनावी मोड में ही रही।
भाजपा प्रचार में आगे
छह अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी ने नायब सैनी को मैदान में उतार दिया था। पहली ही सूची में उनका नाम शामिल था। जिसका सीधा संदेश यह जाता है कि संगठन में कोई कन्फ्यूजन नहीं। 12 दिन से नायब सैनी प्रचार में जुटे हैं और दूसरी पार्टियों ने अभी तक अपने उम्मीदवार भी नहीं भेजे। एक प्रत्याशी के लिए यह बहुत मायने रखता है कि उसे प्रचार के लिए कितना समय मिला है। कांग्रेस और इनेलो के उम्मीदवार अभी तक भी तय नहीं हैं। जिनके नाम सामने आए, उन्हें अब अपने समर्थकों-कार्यकर्ताओं के साथ रायशुमारी तक का समय नहीं दिया जा रहा।
सीधा असर कार्यकर्ता पर
दोनों ही पार्टियों में चुनावी महाभारत से पहले चल रहे द्वंद्व का सीधा असर कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। इससे उनका मनोबल तो ढीला पड़ ही रहा है, वे मजबूत विकल्प के लिए भी सोचने पर मजबूर होने की स्थिति में हैं। पिछले दो-तीन दिन से कांग्रेस, जजपा और आम आदमी पार्टी के प्रदेश में मिलकर चुनाव लडऩे की संभावना जताई जा रही है। यह चर्चा रोज नई डेवलपमेंट के साथ आगे बढ़ रही है। कार्यकर्ताओं ने इसे भी असमंजस में डाल दिया है।
खुद बचना चाह रहे बड़े नेता
सूबे में कांग्रेस के सर्वेसर्वा कहलाए जाने वाले नेता अब इसी जुगत में हैं कि खुद को चुनाव लडऩे से कैसे बचाएं। सोनीपत और कुरुक्षेत्र से यह लड़ाई ज्यादा बड़ी है। जींद उपचुनाव के बाद यह स्थिति बनी है। जींद के अप्रत्याशित नतीजों ने कांग्रेस को पुनिर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है। परिवर्तन बस यात्रा के दौरान भी नेताओं की फूट पब्लिक के सामने उजागर हुई। कुरुक्षेत्र और करनाल में राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस बस में सवार हुए। जगाधरी, लाडवा और इंद्री में रैलियां की, लेकिन उनका नतीजा कुछ नहीं निकला। टिकट वितरण में ही सारी तैयारियां ढेर हो गईं।
इनेलो को किसका इंतजार
कांग्रेस को तो अभी तक जजपा और आम आदमी पार्टी से गठजोड़ का इंतजार है, लेकिन इनेलो ने कुरुक्षेत्र, भिवानी-महेंद्रगढ़, रोहतक और गुरुग्राम से उम्मीदवार क्यों नहीं उतारे? कार्यकर्ता में यही चर्चा है कि इनेलो को किस बात का इंतजार है? पार्टी के बड़े नेता रामपाल माजरा के मना करने के बाद अब पार्टी किसे टिकट देगी, यह चर्चा है। इनमें सबसे आगे यमुनानगर के पूर्व विधायक दिलबाग सिंह का नाम चल रहा है। राष्ट्रपति अवार्डी डॉ. संतोष दहिया भी दौड़ में हैं।