लोकसभा चुनाव: पप्पू यादव की तारीफ कर रहे कन्हैया, दोस्ती के तलाशे जा रहे निहितार्थ
पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की दोस्ती बिहार की राजनीति में चौंकाने वाली घटना है। ऐसे में इसके पीछे के मकसद पर चर्चा होने लगी है। आइए जानते हैं।
पटना [सुनील राज]। 'दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त' वाली कहावत को सच साबित करते हुए मधेपुरा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (भाकपा) के सिंबल पर बेगूसराय प्रत्याशी कन्हैया कुमार अचानक ही दोस्त बन गए हैं। आलम यह है कि दोनों नेता एक दूसरे की तारीफ करते नहीं थक रहे। खास बात यह है कि पप्पू यादव पूर्णिया के मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी (माकपा) विधायक अजित सरकार हत्याकांड के आरोपित रहे हैं, हालांकि कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया है।
सामान्य घटना नहीं कन्हैया व पप्पू की दोस्ती
विदित हो कि अजीत सरकार की हत्या पूर्णिया में 14 जून, 1998 को कर दी गई थी। इसमें दिवाकर चौधरी, अब्दुर सत्तार, विपिन सिंह, जवाहर यादव और पप्पू यादव नामजद किए गए थे। पटनाा हाईकोर्ट ने 17 मई 2013 को इस मामले में पप्पू यादव को बरी कर दिया था। लेकिन पप्पू वामपंथियों की अांखों की किरकिरी बने रहे। एेसे में अब वामपंथ के उभरते चेहरे कन्हैया की पप्पू यादव से दोस्ती सामान्य बात नहीं मानी जा रही।
दोस्ती के तलाशे जा रहे निहितार्थ
पप्पू यादव और कन्हैया की इस मित्रता को लेकर तरह-तरह के कयास तो लग ही रहे हैं, लोग इसके निहितार्थ भी तलाश रहे हैं। इस मित्रता को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है। असल में इन दोनों नेताओं की राजनीतिक मित्रता की बड़ी वजह हैं नेता प्रतिपक्ष। इतना ही नहीं यदि दोनों नेता महागठबंधन की छतरी से बाहर अलग-थलग चुनाव लड रहे हैं तो इसकी वजह भी कुछ कमोबेश नेता प्रतिपक्ष को बताया जा रहा है।
अपनी जमीन बचाने की जुगत में पप्पू
इस मित्रता की जड़ ऐसा नहीं है बहुत पहले जम गई थी। यह जड़ तो सीट बंटवारे के बाद पड़ी और अब पौधे से पेड़ बनने की ओर बढ़ चली है। जानकार बताते हैं कि लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट होने के काफी पहले से मधेपुरा में अपनी जमीन बचाने के लिए सांसद पप्पू यादव जुगत में लग गए थे। रात के अंधेरे में बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से उनकी मुलाकात के बाद यह माना जा रहा था कि पप्पू यादव आने वाले दिनों में महागठबंधन का हिस्सा होंगे या फिर कांग्रेस में शामिल होंगे। बाद में यह साफ हो गया कि पप्पू यादव महागठबंधन के सहयोग से मधेपुरा में ताल ठोंकना चाहते हैं। लेकिन अंत-अंत तक नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने उनकी दाल गलने नहीं दी।
कन्हैया के नाम पर राजी नहीं हुआ राजद
दूसरी ओर महागठबंधन में भाकपा सहित वाम दलों के कयास शुरू से लग रहे थे। कहते हैं कि बेगूसराय सीट पर महागठबंधन और भाकपा के बीच बात लगभग फाइनल भी हो गई थी, लेकिन कन्हैया को प्रत्याशी बनाने के प्रस्ताव के साथ ही बात बिगड़ गई है। इसके बद भाकपा ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे का फैसला किया।
बड़ा सवाल: क्या चुनाव भर रहेगी दोस्ती
जाहिर है ऐसे में पप्पू यादव और कन्हैया को साथ आना ही था। दोनों नेता इन दिनों इस कदर मित्र हुए हैं कि एक-दूसरे की जमकर तारीफ कर रहे हैं। कन्हैया ने तो बकायदा एक सभा में घोषणा तक कर दी है कि वह इस चुनाव में पप्पू यादव के साथ हैं। सवाल यह है कि यह मित्रता चुनाव भर रहती है या फिर चुनाव के बाद भी जारी रहेगी लोग इसका आकलन अभी से करने लगे हैं।