बंगाल के स्मार्ट वोटर बढ़ा रहे चिंता! दिल्ली पर नजर रखकर दबाते हैं ईवीएम पर बटन, टीएमसी और बीजेपी की बातों को परख रहे बारीकी से
Lok sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल के मतदाता इस बार तृणमूल और भाजपा की बातों को बारीकी से परख रहे हैं। ममता के 315 सीटें पाकर इंडी गठबंधन की सरकार बनाने के दावे की पीछ का कारण भी मतदाता ही हैं। वहीं मतदता दिल्ली पर नजर रखकर ईवीएम पर बटन दबाते हैं। 2004 से 2019 तक किस पार्टी ने कितनी सीटें जीतीं। कैसा रहा समीकरण पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट।
जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। लोकसभा चुनाव के पांच चरण संपन्न चुके हैं। दो चरण बचे हैं। बंगाल की 42 में से अभी 17 सीटों पर चुनाव बाकी हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके दल के नेता अबकी बार देश में 400 पार के नारे लगाते आ रहे हैं, वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने चौथे चरण के बाद कहना शुरू कर दिया है कि इस बार आईएनडीआईए 315 सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है। भाजपा 200 सीटें भी नहीं जीतेगी। आखिर ऐसा क्या हुआ कि ममता ने यह दावा करना शुरू कर दिया है? दरअसल, यह दावे उन स्मार्ट वोटरों द्वारा पैदा की गई चिंता का है, जो दिल्ली पर नजर रखकर ईवीएम का बटन दबाते हैं।
केंद्र में जिस गठबंधन या दल की सरकार बनने का अनुमान होता है, उस ओर उनका झुकाव होता है। यही वजह है कि उत्तर बंगाल से होते हुए जैसे ही ग्रेटर कोलकाता और जंगलमहल यानी पूर्व व पश्चिम मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, पुरुलिया और बांकुड़ा जिले की लोकसभा सीटों का मतदान करीब आया है तो दिल्ली में सरकार बनाने के दावे तेज हो गए हैं। अगर 2009 से लेकर 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो इस बात की पुष्टि होती है कि बंगाल में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है, जो बड़े ही चतुराई के साथ अपने मताधिकार का इस्तेमाल करता है।
2004 के चुनाव में वाममोर्चा ने जीती थं 42 में से 35 सीटें
वैसे तो इसकी शुरुआत 2004 के लोकसभा चुनाव में ही हो गई थी, लेकिन वाममोर्चा के शासनकाल में किस तरह से चुनाव होता था और साइंटिफिक रिगिंग (बूथों पर बोगस मतदाताओं को खड़ाकर वोटिंग प्रक्रिया धीमी कर दी जाती थी और आखिरी समय में अपने लोगों के माध्यम से तेजी से वोट कराने को साइंटिफिक रिगिंग नाम दिया जाता था।) कैसे होती है, यह सर्वविदित है, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव से स्थिति और परिस्थिति दोनों ही बदलती चली गईं।
2004 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 में से माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा ने 35 सीटें जीती थी और केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए-1) सरकार को समर्थन दिया था। उस समय कांग्रेस को छह और तृणमूल कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी।
कांग्रेस संग चुनाव लड़कर टीएमसी ने 2009 में जीती थीं 25 सीटें
हालांकि, अमेरिका के साथ परमाणु समझौते का वामदलों ने विरोध करते हुए 2008 में यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद 2009 में जब कांग्रेस और तृणमूल ने मिलकर चुनाव लड़ा तो 42 में से 25 सीटें जीती थीं, जिसमें 13 सीटों पर लड़कर छह सीटें कांग्रेस और 19 सीटों पर तृणमूल को जीत मिली थी। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में लोगों को लगा कि शायद किसी एक दल को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिले, ऐसे में ममता को किंगमेकर बनाने के लिए बंगाल के वही स्मार्ट वोटरों ने तृणमूल को जमकर वोट दिया और 34 सीटें जीता दी, जबकि भाजपा को मात्र दो सीटें मिली थी।
2014 में बीजेपी को मिलीं 18 सीटें
हालांकि, भाजपा की पूर्व बहुमत वाली नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बन गई। 2019 में ममता चुनाव प्रचार के दौरान दावा करती थीं कि इस बार बंगाल में भाजपा को बड़ा रसगुल्ला (शून्य) मिलेगा। वह 42 में 42 सीटें जीत रही हैं, परंतु जब नतीजा आया तो बंगाल के वोटरों ने बता दिया कि उनका दावा सही नहीं था और 2014 में दो सीटों वाली भाजपा 18 पर पहुंच गई।
ममता बनर्जी क्यों कर रहीं इंडी गठबंधन की सरकार बनने का दावा?
अब शायद ममता बनर्जी और उनके रणनीतिकारों को भी समझ में गया है कि बंगाल के जो स्मार्ट वोटर हैं, वह अपना वोट दिल्ली में सरकार बनाने के लिए दे रहे हैं। इसीलिए अब ममता की ओर से भी दावे होने लगे हैं कि आईएनडीआईए की सरकार बन रही है ताकि ऐसे वोटरों को अपनी ओर किया जा सके। साथ ही ग्रामीण इलाकों में विशेषकर ऐसे वोटर की संख्या अधिक है, जो परिस्थितियों को भांप कर वोट कर रहे हैं। यही वजह रही है कि भाजपा का प्रदर्शन शहर की तुलना में बंगाल के ग्रामीण इलाकों में बेहतर रहा है। अब ममता के दावे के साथ बंगाल के स्मार्ट वोटर जाते हैं या मोदी के साथ यह तो चार जून को पता चलेगा, लेकिन चिंता तो दोनों ओर ही है।
क्या कहते हैं चुनावी विश्लेषक
चुनावी विश्लेषक व राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती का भी कहना है कि दिल्ली में किसकी सरकार बन रही है, यह देखकर बंगाल के अनेक लोग मतदान करते रहे हैं। अगर वाम शासन के दौर को देखें तो विधानसभा चुनाव की तुलना में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ जाता था। एक अन्य चुनाव विश्लेषक उदयन बंदोपाध्याय का कहना है कि हर समय तो नहीं, लेकिन कुछ चुनावों में इसी विचार के साथ मतदान हुआ है।