Lok Sabha Election 2019: महाराष्ट्र की 48 में से सात सीटों पर 11 अप्रैल को होगा मतदान
Lok Sabha Election 2019 महाराष्ट्र में 11 अप्रैल को 48 में से सात सीटों वर्धा नागपुर रामटेक भंडारा-गोंदिया गढ़चिरौली-चिमूर चंद्रपुर और यवतमाल-वशिम में चुनाव होगा
नागपुर, ओमप्रकाश तिवारी। Lok Sabha Election 2019 महाराष्ट्र की 48 में से सात सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होगा। पहले चरण के मतदान में जिन प्रमुख प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा उनमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (नागपुर) और हंसराज अहीर (चंद्रपुर) शामिल हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ की इन सीटों पर कुल 116 प्रत्याशी मैदान में हैं।
इन 7 सीटों पर चुनाव
वर्धा, नागपुर, रामटेक, भंडारा-गोंदिया, गढ़चिरौली-चिमूर, चंद्रपुर और यवतमाल- वशिम
कायम है पृथक विदर्भ का मुद्दा
केंद्र और राज्य में सरकार होने के बावजूद ह्यपृथक विदर्भह्ण के मुद्दे पर एक कदम भी आगे न बढ़ना विदर्भ क्षेत्र में भाजपा के गले की हड्डी बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी हमेशा से छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। इसी नीति के तहत भाजपा ने बिहार से झारखंड, उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ को पृथक कर अलग राज्य बनाने का समर्थन किया। जबकि आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के पृथक होने में पैदा हुई विसंगतियों पर आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में टिप्पणी करने से नहीं चूकते।
राजनीतिक रूप से भाजपा हमेशा पृथक विदर्भ की समर्थक रही है। राज्य और केंद्र के उसके घोषणा पत्रों में भी वह इस मुद्दे को शामिल करती रही है। लेकिन 2014 के बाद केंद्र में नितिन गडकरी जैसे ताकतवर नेता और राज्य में देवेंद्र फड़नवीस के मुख्यमंत्री रहते इस मुद्दे पर पांच साल तक भाजपा की चुप्पी अन्य विदर्भवादियों को भाजपा को घेरने का मौका दे रही है। क्योंकि ये दोनों ही नेता विदर्भ के हैं, और सत्ता से बाहर रहने पर प्रखरता से पृथक विदर्भ की बात करते रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ही नागपुर के एक सभागार में हुए नितिन गडकरी के एक कार्यक्रम में विदर्भ राज्य समर्थक कुछ कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी थी। तब उन प्रदर्शनकारियों को कार्यक्रम स्थल से बाहर निकालने का आदेश गडकरी को देना पड़ा था। गडकरी के इस व्यवहार पर निशाना साधते हुए पिछले चुनाव में उनसे पराजित हुए कांग्रेस नेता विलास मुत्तेमवार कहते हैं कि सत्ता में आने के बाद भाजपा नेता पृथक विदर्भ की मांग भूल गए हैं।
जबकि गडकरी कहते हैं कि यह मांग न वह स्वयं भूले हैं, न ही उनकी पार्टी भूली है। उचित समय पर इस संबंध में निर्णय किया जाएगा। कांग्रेस के शासनकाल में ज्यादातर मुख्यमंत्री पश्चिम महाराष्ट्र के हुए हैं। तब यह आरोप लगता रहा है कि बजट में विदर्भ के विकास के लिए निर्धारित की जाने वाली राशि का बड़ा हिस्सा पश्चिम महाराष्ट्र में खर्च कर दिया जाता है। गडकरी दावा करते हैं कि पिछले पांच साल में विदर्भ का कोई बैक लॉग नहीं रह गया है। बल्कि बैक लॉग से ज्यादा राशि विदर्भ के विकास पर खर्च की जा चुकी है।
बता दें कि राज्य और केंद्र में भाजपा की सबसे पुरानी मित्र शिवसेना महाराष्ट्र को तोड़े जाने का विरोध करती रही है। कुछ दिनों पहले शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में गडकरी के इस दावे की पुष्टि करते हुए कहा गया कि अब विदर्भ के लोग भी पृथक विदर्भ की मांग से इत्तेफाक नहीं रखते। इसका सुबूत विदर्भ क्षेत्र से चुनकर आने वाले शिवसेना के चार विधायक और चार सांसद हैं।
भाजपा के पास विदर्भ की 62 में से 44 विधानसभा व 10 में से छह लोकसभा सीटें हैं। लेकिन भाजपा और शिवसेना के विकास के तर्क विदर्भवादियों के गले नहीं उतरते। फड़नवीस सरकार में ही महाधिवक्ता रह चुके श्रीहरि अणे ने पृथक विदर्भ का मुद्दा उठा रखा है। विदर्भ की 10 में से आठ लोकसभा सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार भी खड़े कर रखे हैं। उनका दावा है कि ये उम्मीदवार भाजपा को तगड़ा नुकसान पहुंचाएंगे।