Lok Sabha Election 2019 : 'बाबूजी' की विरासत आगे बढ़ाएंगी डॉ. रीता बहुगुणा जोशी
भाजपा की इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र की प्रत्याशी डॉ. रीता बहुगुणा जोशी होंगी। वह 1998 में भी इलाहाबाद से चुनाव लड़ चुकी हैं। उनपर भाजपा के गढ़ को बचाने की होगी बड़ी जिम्मेदारी होगी।
शरद द्विवेदी, प्रयागराज : कयासों को धता बताते हुए भाजपा ने प्रदेश की कद्दावर मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी को इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बना दिया। लखनऊ कैंट से विधायक डॉ. रीता प्रयागराज में पली-बढ़ी हैं। इनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र एवं बारा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वह इलाहाबाद के विकास पुरुष के रूप में विख्यात थे, उन्हें लोग 'बाबू जी' पुकारते थे। डॉ. रीता शहर की महापौर रह चुकी हैं। आम जनता में वह 'दीदी' के रूप में जानी जाती हैं। 2019 के कुंभ मेला में उन्होंने पर्यटन मंत्री के रूप में बेहतर काम करके हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा था। अब इनके जिम्मे भाजपा का गढ़ बचाने की अहम जिम्मेदारी है।
भाजपा का गढ़ माना जाता है इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र
इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी 1996, 1998 और 1999 में यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से लगातार तीन बार जीत की हैट्रिक बनाने वाले डॉ. मुरली मनोहर जोशी इकलौते नेता हैं। 2004 और 2009 के चुनाव में सपा के रेवती रमण सिंह यहां से सांसद चुने गए, लेकिन 2014 में भाजपा प्रत्याशी श्यामाचरण गुप्त ने रेवती रमण को पराजित कर यह सीट भाजपा को झोली में पुन: डाली। इधर श्यामाचरण के सपा में शामिल होने से भाजपा में प्रत्याशी के रूप में कई नाम सुर्खियों में रहे लेकिन बाजी डॉ. रीता जोशी ने मारी।
राजनीति से है गहरा नाता
डॉ. रीता बहुगुणा जोशी का राजनीति से गहरा नाता है। इनके पिता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रहे, जबकि बड़े भाई विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। छोटे भाई शेखर बहुगुणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रहते हुए जमुनापार के विकास में अहम भूमिका निभाई थी। वह इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र का 1971 में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जबकि बारा विधानसभा क्षेत्र से वह 1957 व 62 में विधायक चुने गए थे।
इविवि में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग में प्रोफेसर बनीं
डॉ. रीता इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने के बाद यहीं मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग में प्रोफेसर बनीं। शिक्षिका रहते वह राजनीति में उतरीं। 1995 में इलाहाबाद नगर निगम से निर्दलीय चुनाव लड़कर महापौर बनीं। फिर 1998 में कांग्रेस के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ीं, लेकिन डॉ. मुरली मनोहर जोशी से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1999 में सपा के टिकट से सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनीं, वहां भी जीत नहीं मिली। कांग्रेस ने 2002 विधानसभा चुनाव में उन्हें इलाहाबाद शहर दक्षिणी से प्रत्याशी बनाया, जिसमें पराजय मिली। हार के बावजूद उनकी जनता से दूरी कम नहीं हुई।
2005 में ले लिया इविवि से वीआरएस
2005 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वीआरएस लेकर वह पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गईं। उनकीजुझारू प्रवृत्ति को देखते हुए कांग्रेस ने 2003 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया। 2007 तक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में संगठन को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई। फिर लखनऊ कैंट से 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से विधायक बनीं। वह 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरीं, लेकिन पराजित रहीं।
खटास के कारण 2016 में भाजपा में शामिल हुईं डॉ. रीता
इसके बाद राहुल गांधी से खटास होने के चलते कांग्रेस छोड़कर 20 अक्टूबर 2016 को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। भाजपा ने उन्हें 2017 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट से प्रत्याशी बनाया, जिसमें वह जीतीं और प्रदेश सरकार में उन्हें पर्यटन, महिला विकास व बाल विकास जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला।
हर वर्ग में लोकप्रियता
डॉ. रीता बहुगुणा जोशी की लोकप्रियता हर वर्ग के लोगों में रही है। वह शिक्षक, कर्मचारियों के साथ छात्रों, मजदूर व किसानों के बीच काफी घुली मिली हैं। हर वर्ग के लोग उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर देखते हैं। लखनऊ से विधायक होने के बावजूद उनका प्रयागराज से करीबी रिश्ता बना हुआ है, जिसके चलते पार्टी ने उन्हें अब प्रत्याशी बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दी है।