LokSabha Election 2019: अयोध्या आकर भी रामलला से दूर रहेंगी प्रियंका
हनुमानगढ़ी में मत्था टेककर वापस चली जाएंगी। 12 बजे मध्याह्न् कुमारगंज जोरियम मोड़ से शुरू होगा रोड शो। शाम छह बजे करेंगी हनुमान गढ़ी के दर्शन। 2017 में राहुल गांधी ने भी ऐसा ही किय
अयोध्या, [सद्गुरु शरण]। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा अाज (शुक्रवार) भले ही पहली बार अयोध्या आ रहीं, पर अयोध्या ऐसा आना-जाना देखने की अभ्यस्त है। स्वागत में कांग्रेस कार्यकर्ता जरूर झंडा-बैनर तैयार कर रहे हैं, पर सरयू के घाटों से लेकर हनुमानगढ़ी तक रोज की तरह स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ चल रहा है। आभास भी नहीं होता कि 24 घंटे बाद एक हस्ती यहां आ रही है। रायबरेली से रोडशो करते हुए शाम तक रामनगरी पहुंचेंगी।
दरअसल, सियासतदां अपनी सुविधा के हिसाब से आते-जाते हैं, इसलिए अब रामनगरी भी इसकी परवाह नहीं करती। सियासत अपने लक्ष्य साध रही है, तो इससे बेपरवाह सरयू अपनी मौज में बह रही है।
प्रियंका के आने की चर्चा सिर्फ नेताओं-कार्यकर्ताओं तक सिमटी है। उनके हनुमानगढ़ी जाने से अधिक चर्चा रामलला के दरबार में न जाने को लेकर हो रही है। इसके चलते उनका कार्यक्रम बार-बार बदला। पहले 27 मार्च को सुबह ट्रेन से आने का कार्यक्रम था। राजनीति समझने वाले सुबह से शाम के बदलाव का मतलब समझ रहे हैं।
वह प्रयागराज और वाराणसी भी जा चुकी हैं, पर अयोध्या बाकी धर्मस्थलों से भिन्न है। यहां भगवान राम की जन्मस्थली पर मंदिर बनने का विवाद चल रहा है जो कई दशकों से न-न कहते हुए भी राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है। इसका चुम्बक किसी दल को अपनी ओर खींचता है तो किसी को धकेलता है। चुनाव का वक्त हो तो अयोध्या कई दलों की दुविधा बन जाती है। न जाओ, तो ये नाराज। जाओ तो वे खफा। नेताओं को रस्सी पर चलने जैसी बाजीगरी दिखानी पड़ती है। प्रियंका अपवाद नहीं हैं।
संगम तट पर लाल वस्त्र में गंगाजल का आचमन और बड़े हनुमानजी की आरती की उनकी तस्वीरें उनके विचार-विरोधियों को भी अच्छी लगी थीं, पर यहां वह ऐसी आक्रामकता का साहस नहीं जुटा पाईं। वह आ रही हैं, पर रामलला का दर्शन नहीं करेंगी। हनुमानगढ़ी के दर्शन कर चली जाएंगी।
धारणा है कि राम और अयोध्या एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। राम के प्रति आस्था बगैर अयोध्या का आशीष नहीं मिल सकता। पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी भी अयोध्या आए थे। वह भी सिर्फ हनुमानगढ़ी के दर्शन कर चले गए थे। कुछ महीने पहले राहुल ने साफ्ट हिंदूत्व की राह पकड़ी थी। प्रियंका भी उसी राह पर हैं, पर नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर। माना जा रहा है कि भाई-बहन भाजपा के सांस्कृतिक एजेंडे की धार कुंद करना चाहते हैं, यद्यपि अयोध्या आकर भी प्रियंका की रामलला से दूरी भाजपा के लिए राहतबख्श साबित होगी। पार्टी इसे तूल देने में नहीं चूकेगी। देखने की बात होगी कि कांग्रेस इसकी काट कैसे करती है।
योगी आदित्यनाथ अपने मुख्यमंत्रित्वकाल की दोनों दिवालियों में अयोध्या का शानदार दीप-श्रृंगार करवाकर रामभक्तों के दिल-दिमाग में बड़ी लकीर खींच चुके हैं। यहां के विकास के लिए भी काफी कुछ हुआ। इसके विपरीत प्रियंका की रामलला से दूरी बनाकर अयोध्या यात्र उनके राजनीतिक मनोरथों की पूर्ति में कितनी मददगार साबित होगी, इसका जवाब वक्त ही देगा।