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मिशन 2019: इन सांसदों के बदलेंगे दल, वोट के लिए अब बदल जाएगी जुबान

लोकसभा चुनाव के नजदीक आते-आते बिहार में सांसदों का दल बदलना शुरू हो चुका है। जिनके लिए पिछले चुनाव में वोट मांगा उन्हीं पर अब ये तंज कसेंगे। दल बदलने के साथ उनकी जुबान भी बदली।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 11:13 AM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 03:37 PM (IST)
मिशन 2019: इन सांसदों के बदलेंगे दल, वोट के लिए अब बदल जाएगी जुबान
मिशन 2019: इन सांसदों के बदलेंगे दल, वोट के लिए अब बदल जाएगी जुबान

पटना [अरुण अशेष]। राज्य के कम से कम एक दर्जन सांसदों को इस बार वोट के लिए अपनी जुबान बदलनी होगी। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने जिनकी तारीफ के बदले वोट बटोरे  थे, इस बार उन्हीं की फजीहत कर जनता को अपने पक्ष में गोलबंद करने की कोशिश करेंगे। 

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दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद के बारे में कल्पना कीजिए। 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी। वह भाजपा के उम्मीदवार थे। अगले चुनाव में उनकी भूमिका धुर भाजपा विरोध की होगी। आजाद के साथ अच्छी बात यह है कि उनका सुर ऐन चुनाव के वक्त ही नहीं बदलेगा।

उन्होंने भाजपा को कोसने की प्रैक्टिस बहुत पहले से शुरू कर दी थी। पहले दौर में अरुण जेटली के विरोध में बोले। बाद के दिनों में उन्हें नमो के खिलाफ बोलने में भी परहेज नहीं रहा। फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा पहली बार भाजपा के विरोध में वोट मांगेंगे। अबतक वे भाजपा के ही राज्यसभा या लोकसभा सदस्य रहे हैं। 2019 में उनकी भूमिका बदल गई है।

आजाद की तरह सिन्हा भी बहुत पहले से भाजपा नेतृत्व को कोस रहे हैं। सिन्हा राजद और कांग्रेेस में से किस दल के उम्मीदवार होंगे, यह तय होना बाकी है। मगर, यह तय है कि जीत के लिए भाजपा के खिलाफ ही बोलेंगे। फिलहाल राजद के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं की शान में कसीदे काढ़ रहे हैं।

परेशानी जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार और संतोष कुशवाहा के सामने भी हो सकती है। 2014 में जदयू ने अकेले चुनाव लड़ा था। प्रचार के दौरान जदयू के नेताओं ने भी भाजपा की खूब आलोचना की थी। कहा था कि नरेंद्र मोदी पीएम नहीं बन सकते हैं। अब जदयू से भाजपा की दोस्ती हो गई है। जाहिर है, जदयू के ये दोनों सांसद भी एनडीए के अन्य घटक दलों की तरह नमो को एक और अवसर देने के लिए वोट मांगेंगे। 

जहानाबाद वाले रालोसपा सांसद डा. अरुण कुमार के सामने भी यही संकट है। नमो को पीएम बनाने के नाम पर वोट लेकर संसद पहुंचे अरुण जनता को बताएंगे कि देश के लिए नमो कितने हानिकारक साबित हुए हैं। उन्होंने अपनी पार्टी बना रखी है। उन्हें भाजपा विरोधी महागठबंधन के किसी दल से टिकट या समर्थन मिलने का भरोसा है। भाजपा से नाराजगी के दिनों में भी अरुण की जुबान नरेंद्र मोदी के प्रति कभी तीखी नहीं थी। लेकिन, चुनाव में तो जुबान कड़वी करनी ही होगी। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को शायद अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़े। उन दिनों में भी जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उन्हें मिलने का समय नहीं दे रहे थे, उपेंद्र यही बता रहे थे कि नरेंद्र मोदी को फिर से पीएम बनाना ही उनका लक्ष्य है।

क्या अगले चुनाव में नमो के प्रति उनकी यही सदिच्छा रह पाएगी? सवाल ही नहीं उठता है। उनकी पार्टी रालोसपा जिस महागठबंधन में शामिल है, उसका प्राथमिक लक्ष्य ही प्रधानमंत्री की कुर्सी से नरेंद्र मोदी को हटाना है। उन्हीं की पार्टी के सांसद रामकुमार कुशवाहा को भी ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरना होगा। वे अंत अंत तक इस पक्ष में थे कि रालोसपा को एनडीए के साथ बने रहना चाहिए। 

मधेपुरा के सांसद राजेश रंजन ऊर्फ पप्पू यादव राजद के उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीते थे। बीच के दिनों में राजद से अलग हुए। उनकी नजदीकी एनडीए से बढ़ गई थी। अब फिर महागठबंधन के करीब हो रहे हैं। राजद के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं। लेकिन, तेेजस्वी यादव से उनका रिश्ता कुछ ठीक नहीं है।

यह स्थिति उस हालत में है, जबकि भाजपा ने अपने कुछ सिटिंग सांसदों को बेटिकट करने का फैसला आधिकारिक तौर पर नहीं किया है। ऐसा हुआ तो बेटिकट होने वाले सिटिंग सांसद घर नहीं बैठेंगे। चुनाव मैदान में जाएंगे और भाजपा के विरोध में ही बोलेंगे। 

यह संकट सिर्फ एनडीए के सांसदों के साथ नहीं है। उनके साथ भी है, जो दूसरे दलों में हैं। फर्ज कीजिए पूर्व सांसद नागमणि लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह किस दल को कोसेंगे? हाल तक एनडीए के साथ थे। इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोसने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे थे।

रालोसपा को  एनडीए से अलग कर महागठबंधन से जोडऩे में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन दिनों लक्ष्य यह बता रहे थे कि नीतीश की जगह उपेंद्र कुशवाहा राज्य के सीएम बनेंगे। उनका पाला बदल गया है। देखना होगा कि चुनाव मैदान में उनके निशाने पर कौन रहेगा। 


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