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Lok Sabha Election 2019: हुजूर, यहां तो बस लूम को पावर की दरकार है...

डकाय पंचायत के हमारे नौखेता गांव में तकरीबन 80 घर हैं। आबादी तकरीबन 500 है। इनमें 300 मतदाता हैं। कभी इस गांव की पहचान हथकरघा से थी।

By mritunjayEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 01:56 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 01:56 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019:  हुजूर, यहां तो बस लूम को पावर की दरकार है...
Lok Sabha Election 2019: हुजूर, यहां तो बस लूम को पावर की दरकार है...

देवघर, राजीव। गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के अंतिम छोर पर बसा नौखेता गांव। शत-प्रतिशत अल्पसंख्यक आबादी। देवघर जिले के सारवां प्रखंड के इस गांव में डेढ़ तक पूर्व तक चरखा और पावर लूम के जरिए स्वावलंबन की बयार बहा करती थी। अब यह थम गई है। इस धंधे से जुड़े लोग बेकार हो गए हैं। नतीजा महिलाएं बीड़ी बनाकर बमुश्किल 40 रुपये प्रतिदिन कमा रही हैं। पुरुष मजदूरी और खेती करते हैं। हम इस गांव में चुनावी सरगर्मियां देखने शुक्रवार को पहुंचे।

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गांव में शफीक अंसारी मिल गए। वे बोले, डकाय पंचायत के हमारे नौखेता गांव में तकरीबन 80 घर हैं। आबादी तकरीबन 500 है। इनमें 300 मतदाता हैं। कभी इस गांव की पहचान हथकरघा से थी। अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है। लोग अपने पुश्तैनी धंधे को दूर होकर खेती मजदूरी करते हैं। घर की महिलाएं बीड़ी बनाती हैं। साड़ी, लुंगी, गमछा व कालीन बनाने वाले हाथ अब बेकार हो गए हैं। बोले साल 2004-05 से पहले गांव के पुरुष और महिलाएं पलायन कर बनारस में जाकर वहां के कारखानों में अपना हुनर दिखाते थे। वहां साड़ी,  गमछा व कालीन बनाते थे। तब यहां सरकार के स्तर से पहल की गई।

मदद को नहीं बढ़े सरकार के हाथः गांव में हाथ की इस कला के बल पर रोजगार मुहैया कराने के लिए पावर लूम मशीनें लगीं। भारतीय स्टेट बैंक ने पूंजी दी। गांव के बुनकरों ने फिरोजी स्वयं सहायता समूह बनाकर  वस्त्र निर्माण शुरू किया। तब बिजली ठीक थी तो आर्थिक संपन्नता की लौ जलने लगी, जो अधिक दिनों तक जल न पाई। पावर लूम को चलाने के लिए सरकार के स्तर से न तो जेनरेटर मिला न ही बिजली की मुकम्मल व्यवस्था की गई। मशीन की खराबी को भी दुरुस्त करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। तब पावर लूम ठप हो गए। 

बिजली मिल जाए तो समझिए अच्छे दिन आ गएः स्वयंसेवी संगठन के सदस्य बैंक के ऋणधारक बन गए। तब तक महबूब अंसारी भी पहुंच गए। बोले सारवां प्रखंड के नवाडीह, ठाढ़ी, दोंदिया, घसको, मंझली टिकर समेत कई गांव में बुनकर परिवार हैं। इनकी हालत ठीक नहीं है। यहां तो बस पावर लूम को पावर की दरकार है। बिजली मिल जाए तो समझिए सबके अच्छे दिन आ गए। कहने लगे गांव-गांव में सरकार पक्के घर बनवा रही है। शौचालय बने  हैं। महिलाओं को उज्ज्वला गैस कनेक्शन दिया है, लेकिन रोजगार की कमी के कारण ये सुविधाएं इनको राहत नहीं दे रही हैं।

अब बना रहे बीड़ीः कभी कपड़े तैयार कर प्रतिदिन 200 कमाई करने वाली सफूरन बीवी अब बीड़ी बनाती हैं। बमुश्किल 40 से 50 रुपये मिलते हैं। बोलीं घर चलाना मुश्किल हो गया है। उनकी वृद्धावस्था पेंशन स्वीकृत हो चुकी है। सफूरन कहती हैं कि उनके नाम से प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हो चुका है। मीना बीवी पावर लूम के बंद होने से सदमे में हैं। कहती हैं कि आमदनी घट जाने से राशन कूला (पूरा) नहीं कर पाते हैं। बाल-बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा है। गांव के इमाम अरशद हुसैन की पत्नी शादिया बीवी फिरोज स्वयं सहायता समूह की सचिव हैं। अरशद हुसैन कहते हैं कि पावर लूम बंद हो जाने से मुश्किलें बढ़ गई है। बैंक ऋण का सूद चुकता करने का सिरदर्द अलग। सरकार को चाहिए कि बैंक ऋण को माफ कर दे। फिर बोल उठे तीन तलाक के मामले में केंद्र सरकार के रुख से असहमत हैं। किसी के धर्म के मामले में सरकार को दखल नहीं देना चाहिए। सरकार अल्पसंख्यकों पर विशेष ध्यान दे।  उनकी तालीम की व्यवस्था करे। फिर बोले सरकार गांव-गांव में सिंचाई की सुविधा टंच करे। ताकि ग्रामीण खेती कर अपना जीवन को चला सकें। इस इलाके की सबसे बड़ी समस्या ङ्क्षसचाई की सुविधा नहीं होना भी है।


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