Lok Sabha Election 2019: फूल की दीवानी हुई कोडरमा की अनीशा
Lok Sabha Election 2019. झारखंड में लोकसभा के चुनावी समर में कोडरमा और चतरा की चर्चा की सुर्खियों में हैं। यहां लंबे समय तक फूल की कमान पुरुषों के हाथ में थी।
फूल की दीवानी हुई कोडरमा की अनीशा
बाजीराव की मस्तानी का गीत, दीवानी मैं दीवानी... मस्तानी हो गई..., कोडरमा में खूब चल रहा है। कोडरमा की 'अ नी शा' फूल की दीवानी बन गई है। एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाने वाली 'अ नी शा' फूल को माथे पर लगाने को बेताब है। एक-एक कर 'अ नी शा' का फूल के प्रति बढ़ता प्रेम और इनकी दीवानगी को देख फूल भी इठलाने- इतराने लगा है। अ, नी और शा अक्षरों से शुरू होने वाले नाम की ये तीन देवियां ही अभी चुनावी समर में कोडरमा और चतरा में चर्चा की सुर्खियों में हैं। लंबे समय तक फूल की कमान पुरुषों के हाथ में थी। लेकिन फूल अब अनीशा जैसे देवियों के शृंगार के लिए तैयार है, लेकिन इनके बीच मचा अंतद्र्वंद्व फूल के रखवालों की चिंता भी बढ़ा रहा है, कि कहीं देवियों के झपट्टा मारने के इस खेल में फूल की पंखुरियां बिखर ना जाए...।
अब दीया-बाती पर आफत
पार्टी का बड़ा नाम है और कभी जलवा भी हुआ करता था लेकिन चुनाव जो न कराए। पार्टी के प्रदेश कार्यालय में मैडम के नाम का ही लालटेन जलता था लेकिन मैडम रूठ गई हैं। कार्यालय तो आती ही नहीं। पार्टी कार्यालय में रोज माहौल गरम रखनेवाले काली बाबू के सामने सबसे बड़ी समस्या है इस स्थिति से बचकर रहना और समझ में आ नहीं रहा कि आगे क्या करें। रविवार को शाम होते ही बुदबुदाने लगे। बड़ी जोर देने पर बताया कि मैडम लालटेन लेकर चली गईं और अब तो ऑफिस में दीया-बाती पर भी आफत है। आगे देखिए क्या होता है।
साहब के बुरे दिन
सुना है कि अच्छे दिन का ख्वाब दिखाने वाले झोलटंगवा साहब के बुरे दिन आनेवाले हैं। माथे पर तिलक और कंधे पर कपड़े का झोला टांगकर बड़े सादगी से लोगों से मिलनेवाले साहब का सितारा जब बुलंदी पर था, तो अपनों की पहचान में धोखा खा गए। जिन्हें बनाया, उसने ही राह में कील-कांटे बिछा दिए। अब सितारा ढलान की ओर है तो अपने भी किनारे हो गए। वैसे साहब मंझे खिलाड़ी हैं। कभी भी बाजी अपने पक्ष में पलटने का मादा रखते हैं। पिछली बार भी हारी हुई बाजी जीतकर बाजीगर बने थे। इसबार भी अंतिम समय तक बाजी अपने पक्ष में पलटने के प्रयास में लगे हैं।
आप करें तो रासलीला, हम करें तो कैरेक्टर ढीला
जिला बेहद संक्रमण काल से गुजर रहा है। दो विपरीत धाराओं के मिलन की घड़ी है तो आग दोनों तरफ लगी है। सियासत में कब, क्या हो जाए, कहना बड़ा मुश्किल है। सो झंडा ढोनेवालों में गजब की मरमरी है। अब बारी इनकी आयी है तो जुबां भी खुलने लगी है। कहते हैं, आप करें तो रासलीला, हम करें तो करेक्टर ढीला...। बड़े लोगों की बड़ी-बड़ी बातें होती है। नीचे स्तर पर लोग एक दूसरे के करीब आए तो आंखों की किरकिरी बन जाते हैं, लेकिन ऊपर में सब समय की पुकार हो जाती है। ऐसे तो चलना मुश्किल है।