Lok Sabha Election 2019: राजनीतिक दलों से अधिक सामाजिक ताकतों के बीच की लड़ाई का चुनाव
चुनाव की तारीखों के साथ ही बुद्धजीवी वर्ग ने एक खास विचारधारा को टारगेट करना शुरु कर दिया है। आरएसएस पर तीखा प्रहार करते हुए पत्रकार आशुतोष ने हिंदू राष्ट्र नाम की किताब लिखी है
नई दिल्ली, अनंत विजय। चुनावी बिसात पर अलग अलग तरह के नैरेटिव भी खड़े किए जा रहे हैं। दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दों को लेकर कुछ सामाजिक ताकतें अपना अलग नैरेटिव खड़ा कर रही हैं। इसी तरह से राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के क्रियाकलापों को लेकर भी पक्ष और विपक्ष में नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है।
भारतीय जनता पार्टी की नीतियों और रीतियों से इत्तेफाक नहीं रखनेवाले बुद्धिजीवी भी भारत की विविधता के बहाने एक धारणा खड़ी करके इस पार्टी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। नैरेटिव बनाने में इन बुद्धिजीवियों को महारथ हासिल है इसका एक उदाहरण उस अपील में देखा जा सकता है जिसे पिछले दिनों फिल्म से जुड़े कुछ छोटे और मंझोले किस्म के फिल्मकारों ने जारी किया। या फिर उस अपील को भी रेखांकित किया जा सकता है जिसको साहित्य कला और संस्कृति से जुड़े दो सौ कलाकारों ने जारी किया। इस अपील में बगैर भारतीय जनता पार्टी का नाम लिए नफरत की राजनीति के खिलाफ और समानता और विविधता वाले भारत के पक्ष में वोट देने की अपील की गई है। यह परोक्ष रूप से एक ऐसे नैरेटिव का निर्माण करता है जिससे भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हो।
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दो तरह से नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। एक तो सैद्धांतिक रूप से और दूसरा जमीन पर। सैद्धांतिक रूप से जो नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है वो ज्यादातर अंग्रेजी में किया जा रहा है। चुनावी सीजन में कई ऐसी पुस्तकें आई हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घकालिक योजनाओं का पर्दाफाश करने की बात की गई है।
पत्रकार आशुतोष की किताब आई, जिसमें ये साबित करने की कोशिश की गई है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की मूल भावना को कमजोर करने की राजनीति कर रहा है। वो यह भी कहते हैं कि 2019 का चुनाव हिंदू भारत और हिंदुत्व भारत के बीच है। साथ ही वो ये नैरेटिव भी बनाने की कोशिश करते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दरअसल गांधी के सिद्धातों को कमजोर कर उसको नीचा दिखाने में लगा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लगता है कि गांधी के सिद्धांत और उनकी छवि इतनी मजबूत है कि उसको सीधे पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। लिहाजा षड्यंत्रपूर्वक पहले नेहरू को नीचा दिखाने का उपक्रम किया जा रहा है।
एक और किताब आई है नीलांजन मुखोपाध्याय की, द आरएसएस, ऑइकॉन्स ऑफ द इंडिन राइट। इस पुस्तक में हेडगेवार, सावरकर, गोलवलकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, बालासाहब देवरस, विजय राजे सिंधिया, वाजपेयी, आडवाणी, अशोक सिंघल और बाल ठाकरे की निजी जिंदगी से लेकर उनकी राजनीति को परखते हुए नई दृष्टि का दावा किया गया है। चुनाव के समय इस तरह की कई किताबें आई हैं। आनी भी चाहिए, होली आएगी तभी तो रंग बिकेंगे।
नैरेटिव बनाने का एक काम जमीनी स्तर पर भी चल रहा है, जिसमें दलितों और आदिवासियों के गौरवशाली अतीत को बताते हुए कई बेवसाइट चलाई जा रही हैं। इनमें हर दिन प्रेरणादायक कहानियां प्रकाशित की जा रही हैं। इन कहानियों में जो संदेश होते हैं उसके निहितार्थ कहानी से भिन्न होते हैं। इससे जो नैरेटिव बनता है वो राजनीतिक संदेश देता है और परोक्ष रूप से मतदाताओं को प्रभावित करता है। इसी तरह से जाति आधारित व्हाट्सएप समूह बनाकर भी नैरेटिव बनाने का काम चल रहा है। तकनीक के सहारे खामोशी से जिस तरह से नैरेटिव खड़ा किया जा रहा है, उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि ये चुनाव राजनीतिक दलों से अधिक सामाजिक ताकतों के बीच की लड़ाई है।