Move to Jagran APP

सकारात्मक राजनीति पर जनता की मुहर, पीएम मोदी लोगों से जुड़ने में फिर हुए कामयाब

इस जीत के कई संदेश हैं। साबित हो गया है कि काम बोलता है। इसका कोई विकल्प नहीं। इस खाके में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ साथ उनके सिपहसालार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी खरे उतरे हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 23 May 2019 08:40 PM (IST)Updated: Thu, 23 May 2019 08:40 PM (IST)
सकारात्मक राजनीति पर जनता की मुहर, पीएम मोदी लोगों से जुड़ने में फिर हुए कामयाब
सकारात्मक राजनीति पर जनता की मुहर, पीएम मोदी लोगों से जुड़ने में फिर हुए कामयाब

प्रशांत मिश्र। सबका साथ, सबका विकास के नारे पर जनता ने अपने विश्र्वास की मुहर लगा दी है। नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नेतृत्व और अमित शाह के प्रबंधन ने विपक्ष के सपने को चकनाचूर कर दिया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की इस जीत ने इतिहास रच दिया है। ऐसा चुनाव जिसमें नकारात्मकता अपने चरम पर हो, वहां अपनी सकारात्मक पहल और छवि के जरिए अभूतपूर्व जीत दर्ज कर मोदी ने पहली बार यह साबित किया कि राजनीति और चुनाव में भी केवल समीकरण नहीं बल्कि विश्वसीनयता और सकारात्मकता की भूमिका बची है। भरोसा अभी भी केंद्र बिंदु है और विकास की भूख जाति की कसौटी से बड़ी होती है। इससे पहले भी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के काल में एक पार्टी को बड़ी जीत मिली थी लेकिन उसका कारण कभी परिवार रहा तो कभी सदभावना लहर।

loksabha election banner

इस जीत के कई संदेश हैं। यह साबित हो गया है कि काम बोलता है। काम का कोई विकल्प नहीं। और इस खाके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ उनके सिपहसालार और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी खरे उतरे हैं। दोनों के बीच सामंजस्य ने एक ऐसा सेतु तैयार किया जिसपर चढ़कर भाजपा के ऐसे नेताओं ने भी चुनावी मंझधार पार कर ली जो स्थानीय स्तर पर कमजोर माने जा रहे थे।

वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी काम के बजाय खोखले नारों पर सवार रहे। खोखला इसलिए क्योंकि भरोसे की कसौटी पर वे नारे खरे नहीं थे। वस्तुत: उन्होंने न्यूनतम आय योजना, किसान ऋण माफी जैसे जितने भी वादे किए वह उनकी साठ साल की सरकारों पर भी उंगली उठाते दिखते रहे। एक नारा खूब प्रचारित किया गया- अब होगा न्याय.। चाहे अनचाहे राहुल ने यह स्वीकार कर लिया कि अब तक की उनकी सरकारों ने न्याय नहीं किया था। एक तरफ भाजपा के चुनाव प्रचार में उन योजनाओं का बोलबाला था जो लागू थीं, जमीन पर चल रही थी, लाभान्वितों तक पहुंच रही थी जबकि ऋण माफी के वादे के सहारे तीन राज्य कांग्रेस ने फतह तो किये मगर उसे पूरा नहीं कर पाई।

कांग्रेस के कई पूर्व और वर्तमान नेता भ्रष्टाचार के कई विवादों में घिरे हैं लेकिन बावजूद इसके चौकीदार चोर है जैसे नारे लगाए जा रहे थे। दरअसल कोशिश यह थी कि जिस तरह बोफोर्स दलाली कांड ने राहुल के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा था, उसी तरह मोदी के उपर कालिख लगाई जाए। लेकिन, लोगों ने उसे खारिज कर दिया। रणनीति और भरोसे की कसौटी पर राहुल और विपक्षी नेता खुद ही उलझते चले गए। विपक्षी नेता सिर्फ जातिगत समीकरण से आस लगा रहे थे।

वह यह भूल गए थे कि 2014 में भी मोदी के पक्ष में जाति की सीमा टूटी थी। पांच साल में मोदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के नाम से जाना गया। गांव में मोदी अपने काम के बल पर पहचाने गए। उत्तर प्रदेश में महागठबंधन जहां जाति के अंकगणित में उलझा रहा वहीं मोदी ने जनता से केमिस्ट्री बनाई। ऐसा जुड़ाव पैदा किया जिसमें जनता मोदी में नेता नहीं बल्कि अपना हमदर्द देखती हो। एक तरफ जहां महागठबंधन में लगातार जातियों की संख्या का अहंकार दिखता रहा, वहीं भाजपा ने सरोकार जताकर उनकी जातियों में भी सेंध लगा दी।

बालाकोट में पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकियों को खत्म करने के फैसले को राष्ट्रवाद से जोड़ा जाता है। लेकिन जमीन पर यह सिर्फ राष्ट्रवाद की बात नहीं थी। गरीबों तक यह आत्मरक्षा और सुरक्षा के लिए मोदी के संकल्प के रूप में पहुंचा था।

एक बड़ा संदेश वंशवाद के लिए भी है। राहुल खुद वंशवाद की बेल पर चढ़ कर आए हैं। यही कारण है कि पैतृक सीट अमेठी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, वहीं चौधरी चरण सिंह की विरासत के नाम पर केवल अवसरवादिता कर रहे चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र को भी जनता ने नकार दिया। कर्नाटक में एचडी देवेगौड़ा और उनके पोते तो महाराष्ट्र में मराठा किंग शरद पवार की पुत्री तो जीत गई लेकिन उनके भतीजे को जूझना पड़ा।

पिछली बार अपने परिवार के पांच सदस्यों के साथ जीतकर आए मुलायम को भी जनता ने इस बार संदेश दे दिया। तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बावजूद आत्मविश्र्वास से जूझ रहे राहुल ने अपनी बहन प्रियंका गांधी को भी मैदान मे उतार दिया था। आशा जताई जा रही थी कि वह कुछ करिश्मा दिखाएंगी। लेकिन जनता ने उनके करिश्मे को भी खाक कर दिया।

एक बात स्पष्ट हो गई है कि जनता हमेशा भावना में बहकर फैसले नहीं करती है। उसे वह पसंद है जो उनके बीच का हो, जो उनकी बात सुने और बात साफ साफ करे। मोदी में उन्हें वह सब दिखा।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.