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Lok Sabha Election 2019ः चुनावी जायके से महक रही फिजा, ये है लोगों की राय

चुनावी माहौल में हर जगह सियासी चर्चाएं हैं। काउंट डाउन शुरू होने के साथ ही चिंता की लकीरें लोगों के चेहरों पर साफ झलकने लगी हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 24 Apr 2019 05:54 PM (IST)Updated: Wed, 24 Apr 2019 05:54 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019ः चुनावी जायके से महक रही फिजा, ये है लोगों की राय
Lok Sabha Election 2019ः चुनावी जायके से महक रही फिजा, ये है लोगों की राय

गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। चुनावी माहौल में हर जगह सियासी चर्चाएं हैं। काउंट डाउन शुरू होने के साथ ही चिंता की लकीरें लोगों के चेहरों पर साफ झलकने लगी हैं। उम्रदराज लोगों में देश के भविष्य को लेकर चिंता है साथ ही युवाओं की सोच इस चुनाव को लेकर भारत पाकिस्तान के क्रिकेट मैच जैसी जान पड़ती है।

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हर किसी की नजरें राजनीतिक हलचलों पर टिकी हैं। हर वर्ग चुनावी जुगलबंदी को बखूबी समझने की कोशिश कर रहा है। सत्ता के गलियारों से निकलने वाली यह गूंज अब पार्कों, ऑफिसों, क्लासरूम और कॉलेजों के कैंटीन तक में सुनाई पड़ने लगी है। दैनिक जागरण संवाददाता ने मंगलवार को कुछ इसी माहौल को परखने का प्रयास किया।

मैं गुरुग्राम की एमिटी यूनिवर्सिटी पहुंची। वहां की कैंटीन में हर टेबल पर विद्यार्थियों की बातचीत में चुनावी जायके से फिजा महक रही थी। कहीं शांति से बातें हो रही थी तो कहीं पर मजबूत विपक्ष की भूमिका के लिए विकल्प की तलाश जारी थी। कहीं पर मौजूदा सरकार की उपलब्धियों से माहौल में देशभक्ति का जज्बा तैर रहा था तो कहीं पर युवा सरकार की हर गतिविधि सियासी स्टंट बताने में मशगूल थे।

एक टेबल के पास थोड़ी गहन मुद्रा में युवा नजर आए तो मैं वहां बैठ गई। काफी समय से चल रही चर्चा में आवाजों की तीव्रता धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी। ‘इतने वर्षों से हमें जिस तरह के नेतृत्व की तलाश थी वह मोदी के रूप में पूरी हो चुकी है, देयर इज नो चांस ऑफ गि¨वग ए सेकंड थॉट..’, छात्र नियति की इस बात पर छात्र पुलकित कुछ नाराज होते हुए बोलने लगे, ‘केवल दिखावे और भुलावे में लोग भ्रमित हो रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि पिछली सरकारों ने काम नहीं किया या पूरे देश में ऐसा एक भी नेता नहीं हो जो देश हित में काम करने में सक्षम न हो। हमें बस गहराई से सोचने व समझने की जरूरत है।’

काफी देर तक इन दोनों की बातें सुनते सुनते ग्रुप के अन्य छात्रों की सोच को जैसे एक नया दृष्टिकोण मिल गया हो। कुछ देर बाद छात्र वैष्णवी बोली, ‘बात तो सही है, हमने विकास की बातें केवल कागजों पर ही पढ़ी हैं। हमारे हालात या देश की स्थिति में तो कोई खास बदलाव नजर आया नहीं..’।

उनकी बात को काटते हुए ग्रुप के अधिकतर लोगों को रुख आक्रमक हो गया। ऐसा लगने लगा जैसे उनकी राजनीतिक वैचारिक सोच व्यक्तिगत बहस का रूप लेने लगी तो छात्र शैलाभ ने सभी को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा कि यह समय लड़ाई का नहीं बल्कि पार्टियों के राजनीतिक दांवपेंच को समझने का है।

छात्र आर्यन ने भी शैलाभ का साथ देते हुए उनकी बात के समर्थन में कहा कि सोशल मीडिया पर बुरा भला कहने, अपशब्दों का प्रयोग करने और एक दूसरे के राजनीतिक मतों को गलत ठहराने से काम नहीं चलेगा। अगर देश बदलना है तो राजनीति की दिशा और दशा बदलनी होगी। छात्र रक्षण और कृष्णा ने कहा कि युवाओं को ध्यान रखना होगा कि देश की राजनीति को लोग व्यक्तिगत स्वार्थ साधने का जरिया न बना लें।

‘हमें तानाशाही नहीं चाहिए बल्कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का असल अस्तित्व तलाशना है जो कहीं खोता जा रहा है।’, छात्र नियति ने अपने स्वर को संयत करते हुए कहा कि देश को नेताओं के हाथों की कठपुतली नहीं बनने देना है तो युवाओं को आगे आना होगा। हम देश को किसी के नाम नहीं कर चुके हैं।

जो अच्छा काम करेगा, नेतृत्व की बागडोर संभालने का जिम्मा उसे ही दिया जाएगा। छात्र कार्तिक का कहना था, ‘हम की-बोर्ड वारियर बनने में आगे रहते हैं लेकिन चुनाव के दिन को एक छुट्टी के दिन से अधिक कुछ नहीं मानते। इससे काम नहीं चलेगा, देश की चिंता है तो उसे केवल अपने मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर मत दर्शाओं, वोट करो, और नेताओं को दिखा दो कि जो देशहित को सवरेपरि मानेगा, जनता भी उसे सर माथे पर बिठाएगी और जो केवल स्वार्थ साधेगा उसे दूसरा मौका नहीं दिया जाएगा।’

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