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दिल्ली से सिर्फ मुस्लिम नेता पहुंचा संसद, राजनीतिक दल का नाम जानकर होगी हैरानी

जिस पार्टी पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगता है उसी से जुड़े नेताओं के सहयोग से सिकंदर बख्त को चांदनी चौक से पहले व अंतिम मुस्लिम सांसद चुने जाने का अवसर मिल सका।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 10:53 AM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 10:53 AM (IST)
दिल्ली से सिर्फ मुस्लिम नेता पहुंचा संसद, राजनीतिक दल का नाम जानकर होगी हैरानी
दिल्ली से सिर्फ मुस्लिम नेता पहुंचा संसद, राजनीतिक दल का नाम जानकर होगी हैरानी

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। प्रमुख राजनीतिक पार्टियां दिल्ली में मुस्लिमों के समर्थन से संसद तक का सफर आसान तो बनाना चाहती हैं, लेकिन उन्हें वह टिकट देने में हिचकिचाती रही हैं। चुनावी इतिहास इसका प्रमाण है। 1952 से लेकर 2014 तक के अधिकतर लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम वोट बैंक ही बने रहे। यही कारण है कि दिल्ली से अब तक एक ही मुस्लिम नेता सिकंदर बख्त लोकसभा का सफर तय कर सके। दिलचस्प बात यह है कि जिस केसरिया विचारधारा वाले लोगों पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगता है उसी से जुड़े नेताओं के सहयोग से सिकंदर बख्त को चांदनी चौक से पहले व अंतिम मुस्लिम सांसद चुने जाने का अवसर मिल सका। आपातकाल के बाद बने गैर कांग्रेसी गठबंधन में शामिल सिकंदर बख्त का झुकाव दक्षिणपंथ की ओर हुआ। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने भारतीय लोकदल के टिकट पर चांदनी चौक से भारी मतों के साथ जीत दर्ज की थी। बाद में उन्होंने खुलकर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और राज्यसभा सदस्य से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय किया। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अब तक किसी मुस्लिम नेता को राजधानी में लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट नहीं दिया है। बहुजन समाज पार्टी और जनता दल मुस्लिम नेताओं पर विश्वास जताते रहे हैं लेकिन उन पार्टियों का दिल्ली में बहुत कम जनाधार रहा है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि दिल्ली के मुस्लिम मतदाता सिर्फ योग्य और सक्षम प्रत्याशी को ही वोट देते हैं।

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तीन लोकसभा क्षेत्र में हैं निर्णायक स्थिति में

राजधानी में मुस्लिमों की अच्छी तादाद है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां लगभग 13 फीसद मुस्लिम थे, जिनकी संख्या अब और बढ़ गई है। मुस्तफाबाद, ओखला, मटिया महल, बल्लीमारान जैसे विधानसभा क्षेत्रों में तो इनकी आबादी 50 फीसद से भी ज्यादा है। कई अन्य क्षेत्र में भी ये निर्णायक स्थिति में हैं। उत्तर पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली व चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों का समर्थन किसी भी प्रत्याशी को संसद पहुंचाने की राह को सुगम बना सकता है। इस बात को सभी राजनीतिक पार्टियां बखूबी समझती हैं और उन्हें अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश करती हैं।

बख्त के बाद कोई नहीं दिखा सका चुनाव मैदान में दम

आपातकाल से कांग्रेस के प्रति जो जनाक्रोश था वह 1977 के चुनाव भी दिखा। दिल्ली में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी। चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र से एकजुट विपक्ष ने भारतीय लोकदल के टिकट पर सिकंदर बख्त को मैदान में उतारा। उन्होंने लगभग 72 फीसद मत हासिल करके लगातार दो बार से जीत हासिल कर रहीं कांग्रेस प्रत्याशी सुभद्रा जोशी को पराजित किया। 1980 में हुए चुनाव में बख्त जनता पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें कांग्रेस के भिखु राम जैन के हाथों पराजय झेलनी पड़ी। उन्हें 39 फीसद से कुछ ज्यादा मत मिले। यही हाल 1984 के चुनाव में भी रहा। भाजपा के टिकट पर वह तीसरी बार मैदान में उतरे और 37 फीसद मत के साथ दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के जय प्रकाश अग्रवाल ने उन्हें पराजित किया था। फिर कोई मुस्लिम प्रत्याशी 30 फीसद से ज्यादा मत हासिल नहीं कर सका। 1989 में जनता दल के सादिक अली ने इस सीट से 29.57 फीसद, 1998 में शोएब इकबाल (जनता दल) ने 29.98 फीसद मत हासिल किया। उन्हें 1999 में 25.79 वोट मिले थे। सादिक व शोएब इकबाल के बाद कोई भी मुस्लिम नेता दहाई का आंकड़ा नहीं छू सका।

निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे हैं मुस्लिम नेता

शुरू से ही मुस्लिम प्रत्याशी निर्दलीय या फिर छोटी पार्टियों के टिकट पर चुनावी समर में उतरते रहे हैं, लेकिन वह कोई प्रभाव नहीं छोड़ सके। 1984 तक तो इनकी संख्या कम रही, लेकिन 1989 में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या 15 तक पहुंच गई। सबसे ज्यादा 1996 में 32 मुस्लिम नेताओं ने दिल्ली के मैदान में किस्मत आजमाई थी। उनमें से किसी की जमानत भी नहीं बची थी। बहुजन समाज पार्टी यमुनापार की सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रही है, लेकिन वे भी पांच फीसद के आसपास ही मत हासिल करने में सफल रहे थे।


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