Lok Sabha Election 2024: आसमान में ही चमके ‘स्टार प्रचारक', नहीं मिली धरती पर झलक, चुनावी अभियान से नदारद रहे वरिष्ठ कांग्रेसी
Lok Sabha Election 2024 कांग्रेस ने राजधानी दिल्ली के अपने तीन उम्मीदवारों के लिए 40 स्टार प्रचारकों की फौज भी घोषित की लेकिन इनमें से ज्यादातर ऐसे ‘स्टार’ रहे जो आसमान में ही चमके धरती पर उतरे ही नहीं। कहने का मतलब यह कि सूची में तो इनका नाम रहा लेकिन चुनाव मैदान में ये जनाब नजर ही नहीं आए।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। दिल्ली में इस बार कांग्रेस ने आप के साथ गठबंधन में लोकसभा का चुनाव लड़ा। चार सीटों पर आप के उम्मीदवार लड़े, तो तीन पर कांग्रेस ने भाग्य आजमाया। कांग्रेस ने अपने तीन उम्मीदवारों के लिए 40 स्टार प्रचारकों की फौज भी घोषित की, लेकिन इनमें से ज्यादातर ऐसे ‘स्टार’ रहे, जो आसमान में ही चमके, धरती पर उतरे ही नहीं।
कहने का मतलब यह कि सूची में तो इनका नाम रहा, लेकिन चुनाव मैदान में ये जनाब उतरे ही नहीं। दिल्ली कांग्रेस के नेताओं को छोड़ दें, तो गांधी परिवार से केवल एक राहुल और अन्य राज्यों से सिर्फ सचिन पायलट ही प्रचार करने आए। अन्य कोई नजर नहीं आया।
पर्यवेक्षक भी नहीं आए नजर
यहां तक कि चौ. वीरेंद्र सिंह, जिन्हें उत्तर-पश्चिमी सीट का पर्यवेक्षक बनाया गया था, वह भी नहीं दिखाई पड़े। ऐसे में स्टार प्रचारकों की सूची प्रदेश के नेताओं में चर्चा का विषय बनी हुई है। उनका कहना है कि जब अपनों को ही अपनों की फिक्र नहीं, तो भला दूसरे क्यों मदद करने लगे!
निर्णय के लिए सही समय का कर रहे हैं इंतजार
दिल्ली कांग्रेस में अभी भी सब ठीक नहीं है। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान भले हो गया है, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भी और बाद में भी पार्टी में खींचतान जारी है। उत्तर-पश्चिमी सीट पर अनेक मतदान केंद्रों पर कांग्रेस की टेबल तक नहीं लगी, तो उत्तर-पूर्वी सीट पर राहुल गांधी की जनसभा तक में कुर्सियां खाली नजर आ रही थीं।
चांदनी चौक सीट पर भी कई विधानसभा क्षेत्रों में वहां के स्थानीय नेताओं ने भितरघात करने की हरसंभव कोशिश की। बहुत से वरिष्ठ नेता प्रचार से गायब रहे। सुनते हैं कि छोटे-बड़े कई नेता चार जून यानी लोकसभा चुनाव परिणाम के आने का इंतजार कर रहे हैं। अगर कांग्रेस के हाथ बिल्कुल खाली रहे, तो फिर ये लोग भी पार्टी को अलविदा कह सकते हैं।
नेताओं के मन में डर
दरअसल, पार्टी के इन नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन में यह बात बैठ गई है कि जब अरविंदर सिंह लवली सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं की भी आलाकमान के स्तर पर नहीं सुनी गई, तो फिर उनकी ही क्या औकात है।
राजनीतिक कटुता के बीच सहयोग और हंसी-मजाक
चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक पार्टियां व नेता एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। कई बार तीखे जुबानी हमले भी हुए और भाषा की मर्यादा भी टूटी। इससे राजनीतिक कड़वाहट बढ़ने लगी। मतदान और उसके बाद भी आरोप-प्रत्यारोप जारी है। इस कटुता के बीच मतदान के दिन कुछ अच्छे पल भी देखने को मिले।
कई बूथ पर भाजपा और आप व कांग्रेस गठबंधन के कार्यकर्ता एक-दूसरे के सहयोग और हंसी मजाक करते दिखे। कोंडली के एक बूथ पर भाजपा व आप का टेबल बिल्कुल साथ-साथ लगा हुआ था। भाजपा कार्यकर्ताओं के पास नाश्ते का पैकेट पहुंचा, तो वह तुरंत विरोधी दल के टेबल पर भी लेकर पहुंच गए।
इसी तरह कई स्थानों पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता मिल बांटकर खाते-पीते दिखे। इन्हें देखकर नहीं लग रहा था कि इनके बड़े नेता आपस में किस तरह से लड़ रहे हैं। कई मतदाताओं का भी कहना था कि बड़े नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं से सीखने की जरूरत है।
पाला बदलने वालों को क्या मिलेगा, हो रही चर्चा
मतदान के बाद हार-जीत का हिसाब लगाया जा रहा है। साथ ही अब पाला बदलकर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं के भविष्य को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। चुनाव से पहले कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान सहित कई नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। इन्हें पार्टी में महत्व भी मिलने लगा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली में इन्हें मंच पर स्थान दिया गया। सभा को संबोधित करने का अवसर भी मिला। चुनाव के बाद इन्हें पार्टी में क्या जिम्मेदारी मिलती है, इसे लेकर भी कयास शुरू हो गए हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि लवली व चौहान वर्ष 2017 में भी भाजपा में शामिल हुए थे, परंतु अधिक महत्व नहीं मिलने के कारण दोनों कांग्रेस में लौट गए थे। उम्मीद है कि इस बार उन्हें संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिले।