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Lok Sabha Election 2024: चुनाव प्रणाली में बदलाव से राजनीतिक स्थिरता को हो सकता है खतरा

देश में मौजूदा समय में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट चुनाव प्रणाली लागू है। मगर एक वर्ग का मानना है कि इसमें बदलाव करने की जरूरत है। बदलाव की वकालत करने वाले लोग आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को महत्व देते हैं। मगर चुनाव प्रणाली में बदलाव से क्या खतरे हो सकते हैं यह बता रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीप्रकाश सिंह।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Published: Mon, 29 Apr 2024 08:36 PM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2024 08:36 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2024: चुनाव प्रणाली में बदलाव से राजनीतिक स्थिरता को हो सकता है खतरा।

प्रचलित मान्यताओं के विपरीत भारत लोकतंत्र की जननी रहा है। समिति, सभा, गण राज्य, पुरोहित, परिषद, अमात्य परिषद आदि उदाहरणों से हमारे प्राचीन ग्रंथ भरे पड़े हैं। महाभारत में राजा के चुनाव का उल्लेख मिलता है। व्यवस्थाएं कितनी सुघड़ थी इसके लिए यहां केवल महाभारत के शांति-पर्व का उल्लेख करना समीचीन होगा।

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चुनाव हमारी विरासत का हिस्सा

चुनाव हमारे तंत्र के लिए नया नहीं है। यह हमारी विरासत का हिस्सा है। फर्स्ट पास्ट द पोस्ट एक ऐसी चुनाव व्यवस्था है, जिसमें एक निश्चित निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार (सबसे आगे रहने वाला) जीत प्राप्त करता है।

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इसमें यह मायने नहीं रखता कि जीत का अंतर क्या है, अतः इसमें वोट प्रतिशत प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त सीटों के प्रतिशत में परिवर्तित नहीं होते। संयोग से इस प्रकार की व्यवस्था अधिकतर उन देशों ने अपनाई है, जो कभी ब्रिटेन के उपनिवेश रहे हैं।

इसलिए अपनाई गई ये व्यवस्था

भारत में संविधान सभा की बहसों में डॉ. भीमराव आंबेडकर और अय्यंगर ने इस व्यवस्था का समर्थन इस आधार पर किया कि भारत की साक्षरता दर बहुत कम है। संस्थागत व्यवस्था कमजोर है और भारत को एक स्थिर सरकार की आवश्यकता है, जो आनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं दे सकता। इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश संसद की 1910 की रॉयल कमीशन रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें आनुपातिक प्रतिनिधित्व और साधारण बहुमत प्रणालियों की जांच की गई थी।

फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली का चयन सकारात्मक विकल्प

ब्रिटिश रिपोर्ट में आनुपातिक प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी गई थी, पर फिर भी ब्रिटिश संसद ने इसे नहीं अपनाया। ब्रिटिश संसद का मानना था कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व से सरकार की स्थिरता को खतरा होगा। अतः भारत के लिए फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली का चयन एक सकारात्मक विकल्प के रूप में किया गया।

श्रेय भीमराव आंबेडकर के अध्ययन और अनुभव को देना चाहिए कि उन्होंने भारतीय समाज को, जहां आज भी जाति और पंथ की मान्यताओं और संकुचित स्वार्थों पर मतों को प्रभावित किया जाता है और लोग मत देते भी है, को पहचान लिया था और राष्ट्र हित में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट का पक्ष लिया और यह लागू हुआ।

अकादमिक चर्चा हो सकती है परंतु आज की ध्रुवीकरण की राजनीति में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का समय नहीं आया है क्योंकि मत के प्रतिशत में एकरूपता का अभाव है। 100 प्रतिशत तो दूर हम आज तक 60-65 प्रतिशत के ऊपर मुश्किल से जा पाए हैं।

विद्वेष और द्वंद को मिलेगा बढ़ावा

भारत की बहुलता को देखते हुए भी आनुपातिक प्रणाली से समाज में विद्वेष और द्वंद को ही बढ़ावा मिलेगा। राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए चुनौतियां पैदा हो जाएंगी, राज्यों की जनसंख्या का आनुपातिक अध्ययन करें तो मिलेगा कि कई राज्यों में बिखरा हुआ बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यक हो गया है उनके साथ कैसा व्यवहार होगा कल्पना की जा सकती है, स्थिति बहुत विषम हो जाएगी।

फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली ही रहना चाहिए

भारत में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम सफलतापूर्वक चल रहा है। इसे और मजबूत बनाने की जरूरत है। हम बहुदलीय व्यवस्था में हैं जिसमें क्षेत्रीय दलों की बहुलता है। यह बहुलता भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के विपरीत जाती है, इसलिए भारत में फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली ही चलती रहनी चाहिए। अभी देश दूसरे किसी प्रयोग के लिए तैयार नहीं है।

(लेख: प्रो. श्रीप्रकाश सिंह, राजनीति विज्ञान, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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