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Lok Sabha Election 2019: 30 साल की तरह इस बार भी अहम रहेगी गठबंधन की भूमिका

इतिहास बताता है कि सरकार के स्थायित्व की बात हो तो चुनाव बाद गठबंधन के मुकाबले चुनाव पूर्व गठबंधन का अनुभव ज्यादा अच्छा रहा है। भारतीय राजनीति में इसके कई उदाहरण मिलते भी हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 08:29 AM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 02:59 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: 30 साल की तरह इस बार भी अहम रहेगी गठबंधन की भूमिका
Lok Sabha Election 2019: 30 साल की तरह इस बार भी अहम रहेगी गठबंधन की भूमिका

नई दिल्ली [नीलू रंजन]। आगामी लोकसभा चुनाव में यूं तो भाजपा की ओर से फिर से बहुमत का दावा किया जा रहा है, लेकिन फिलहाल यह मानकर चलना चाहिए कि लड़ाई गठबंधनों की है। पिछले तीस साल की तरह इस बार भी गठबंधन की अहम भूमिका रहेगी। फिलहाल मैदान में एक ओर चुनाव पूर्व गठबंधन वाला राजग खड़ा है और दूसरी ओर मुख्यत: चुनाव बाद की स्थिति तलाशता कथित महागठबंधन। इतिहास बताता है कि सरकार के स्थायित्व की बात हो तो चुनाव बाद गठबंधन के मुकाबले चुनाव पूर्व गठबंधन का अनुभव ज्यादा अच्छा रहा है।

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दरअसल आजादी के दो दशक बाद यानी 1967 से ही क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन का दौर शुरू हो गया था। लेकिन केंद्रीय स्तर पर पहली बार 1977 में गठबंधन की सरकार बनाने में सफलता मिली। इसके बाद 12 साल बाद 1989 से शुरू हुए गठबंधनों का दौर अभी तक जारी है। यहां तक कि 1984 के बाद 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत पाने वाली भाजपा ने भी चुनाव पूर्व गठबंधन के साथियों का साथ नहीं छोड़ा और अब तो आगे बढ़कर उन्हें साथ रखने से नहीं चूक रही है।

दरअसल देश में अभी तक बनी गठबंधन की सरकारों के अनुभव मिले-जुले रहे हैं, इसीलिए इसके पक्ष या विपक्ष में सीधे तौर पर कोई राय नहीं दी जा सकती है। 1977 में कांग्रेस को परास्त करने वाली जनता पार्टी सरकार चुनाव पूर्व गठबंधन का परिणाम थी, लेकिन यह गठबंधन सरकार ढाई साल में धराशायी हो गई क्योंकि गठबंधन के पीछे वैचारिक आधार नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का व्यक्तिगत विरो केंद्र में था। इंदिरा गांधी को हटाने के बाद परस्पर विरोधी विचारधाराओं का टकराव शुरू हो गया और केंद्र में गठबंधन का पहला प्रयोग बुरी तरह विफल साबित हुआ।

जनता पार्टी की तरह अवसरवादी गठबंधन का हस्र 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में भी देखने को भी मिला, जिसमें दक्षिणपंथी भाजपा और वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टियां साथ-साथ थी। जाहिर है यह सरकार भी अल्पजीवी साबित हुई। 1989 से 1999 तक देश ने आठ गठबंधन सरकारें देखीं। इस तरह भाजपा विरोध के नाम पर बनी गठबंधन और अल्पमत की सरकारें णभंगुर साबित हुई। लेकिन इस बीच 1991 से 1996 तक सांसदों की खरीद फरोख्त और भ्रष्टाचार के तमाम गंभीर आरोपों के बावजूद नरसिंहा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। अटल बिहारी वाजपेयी के काल में गठबंधन की सफलता पहली बार दिखी। डॉ. मनमोहन सिंह ने दस साल तक गठबंधन की सरकार चलाने का रिकार्ड कायम किया।

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