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Lok Sabha Election: 'मंच, माला, माइक... सबकी अपनी जुबां', कौन होगा अतिथि, किसे मिलेगी गद्दी पर जगह? ये सब ऐसे होता है तय

लोकसभा चुनाव में बूथ की अंतिम चौकी पर संघर्ष से पहले महासमर के मैदान में रैलियों के जो मंच सज रहे हैं उनकी नींव में मनोविज्ञान भी है। भाजपा हो कांग्रेस हो या कोई भी बड़ा दल रैली के संयोजन की तैयारियों का सबका तरीका लगभग एक जैसा है। मसलन ऐसे स्थान पर बड़े नेताओं की रैली को प्राथमिकता पर चुना जाता है जहां से बड़ा संदेश दिया जा सके।

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Published: Mon, 15 Apr 2024 08:51 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2024 08:51 AM (IST)
Lok Sabha Election:चुनावी रैली के लिए रणनीतिकार करते हैं व्यूह रचना।

 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भीड़ से खचाखच मैदान और मंच पर बड़े-बड़े नेताओं का जुटान...। सतही तौर पर राजनीति को देखने वालों के लिए यह किसी भी चुनावी रैली की सफलता का पैमाना हो सकता है, लेकिन उनके लिए कतई नहीं, जो चुनावी रणनीतिकार और मतदाताओं की नब्ज के जानकार हैं। यही वजह है कि जब भी कहीं किसी बड़े नेता की रैली कराई जाती है तो उससे पहले संगठन का ‘होमवर्क’ चलता है।

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 माइक से नेता भाषण देते हुए जो बोलते हैं, उसका प्रत्यक्ष संदेश होता है तो मंच की सजावट, माला और स्वागत में दिए जाने वाले प्रतीक चिह्नों की भी अपनी जुबां होती है। इस खामोश जुबां से जो संदेश दिया जाता है, उसकी इबारत पर्दे के पीछे  बैठे महारथी लिखते हैं।

 लोकसभा चुनाव में बूथ की अंतिम चौकी पर संघर्ष से पहले महासमर के मैदान में रैलियों के जो मंच सज  रहे हैं, उनकी नींव में मनोविज्ञान भी है। भाजपा हो, कांग्रेस हो या कोई भी बड़ा दल, रैली के संयोजन की तैयारियों का सबका तरीका लगभग एक जैसा है। मसलन, ऐसे स्थान पर बड़े नेताओं की रैली को प्राथमिकता पर चुना जाता है, जहां से बड़ा संदेश दिया जा सके और वह कई निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा से जुड़ता हो।

 मंच पर स्थानीय जुड़ाव रखने वाले प्रमुख चेहरे मौजूद रहें। यदि गठबंधन के रूप में चुनाव लड़ा जा रहा हो तो गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं का प्रतिनिधित्व हो और प्रतीक चिह्नों से भी स्थानीयता का भाव जुड़ा हो। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ही हाल की चुनावी रैलियों को देखें तो हर जगह कुछ न कुछ परिवर्तन दिखाई देगा।

उत्तर प्रदेश की पहली रैली मेरठ से की तो जातीय समीकरणों और प्रमुख मुद्दों का ध्यान रखते हुए रैली को ‘भारत रत्न चौधरी चरण सिंह जी गौरव समारोह’ नाम दिया गया। मंच पर चौधरी चरण सिंह के पोते और गठबंधन साथी रालोद के मुखिया जयन्त चौधरी मौजूद थे। प्रदेश की अन्य ओबीसी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले गठबंधन के नेताओं के साथ ही पड़ोसी राज्य हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को भी मंच पर बैठाया गया।

यहां जाटों के अलावा गुर्जर वोट भी काफी हैं, इसलिए चौ. चरण सिंह के साथ 1857 के क्रांतिकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर को पीएम मोदी का नमन और प्रतीक चिह्न के रूप में दिए गए मेरठ के स्थानीय उत्पाद क्रिकेट बैट, राम मंदिर की प्रतिकृति और किसानों के प्रभाव वाले क्षेत्र में हल का भी अपना संदेश था। पीएम मोदी तमिलनाडु के सलेम में रैली के लिए पहुंचे तो मंच पर ‘शक्ति अम्मा’ लिखा था और महिलाओं से पीएम का स्वागत भी कराया गया।

महाराष्ट्र में रैली के लिए नागपुर के रामटेक को चुना गया। पौराणिक रूप से यह स्थल भगवान राम से संबंधित है। पीएम मोदी को प्रतीक चिह्न के रूप में धनुष बाण और प्रभु राम की प्रतिमा भेंट की गई।

जगह की भी होती है अहम भूमिका

स्थल चयन का ऐसा ही महत्व कांग्रेस की उस रैली में दिखाई देता है, जहां से पार्टी ने चुनावी अभियान का शंखनाद किया। कांग्रेस ने अपने 139वें स्थापना दिवस पर नागपुर में पहली रैली की, जिसे नाम दिया गया- ‘हैं तैयार हम...’। पहला संदेश कि पार्टी चुनाव के लिए तैयार है। परोक्ष संदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय नागपुर में ही है।

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राहुल गांधी भाजपा के साथ ही संघ पर भी हमलावर रहते हैं। इसी तरह ईद के मौके पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम समुदाय के बीच जनसभा की। रिझाने के लिए कहे गए शब्दों के इतर उनकी भावभंगिमा भी उसके अनुरूप थी। वह गोद में टोपी लगाए मुस्लिम बच्‍चों को लिए थीं।

इसके अलावा बड़ी मालाएं पहनाने व कभी उसमें सामूहिक रूप से नेताओं के शामिल होने तो कभी इकलौते नेता को ही रखने की भी रणनीति होती है। अगर चुनाव किसी एक व्यक्ति के चेहरे पर केंद्रित कर लड़ा जाता है तो केवल उन्हें ही रखा जाता है।

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वहीं, वक्ताओं में किसे शामिल किया जाए, इसका ख्याल रखना जरूरी होता है। उदाहरणपंजाब में आम आदमी पार्टी एक रैली का आयोजन करते हुए इसका ध्यान रख रही थी कि वहां से कोई हिंदू धर्म विरोधी बात न करे।

मंच के पीछे बने ग्रीन रूम में होती है अंतिम तैयारी

मुख्य वक्ता द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों के टाकिंग प्वाइंट पहले ही लिखकर उनकी टीम को भेद दिए जाते हैं। फिर उनकी टीम लगातार स्थानीय नेताओं के संपर्क में रहती है, ताकि हर बदलाव या तात्कालिक महत्व के मुद्दे छूठें नहीं। कांग्रेस में व्यवस्था है कि बड़े नेता मंच पर जाने से पहले पीछे बने ग्रीन रूम में स्थानीय नेताओं के साथ बैठते हैं। पहले से मिले बिंदुओं और तत्काल के मुद्दों या घटनाक्रमों पर चर्चा करते हैं।

फिर भाषण को अंतिम रूप दिया जाता है। वहीं, भाजपा में पीएम या सीएम की टीम स्थानीय नेताओं के संपर्क में रहती है। वह स्थानीय मुद्दे, भावनात्मक पहलू, स्थानीयजन के आराध्य, इतिहास आदि का भी पूरा ब्योरा जुटाती है।

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