Loksabha Election 2019 : गढ़ में गायब हुए वाम, कभी पूर्वांचल होता था मजबूत गढ़
गरीबों और मजदूरों की लड़ाई लडऩे वाली कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया का आजादी के बाद से ही पूर्वांचल मजबूत गढ़ रहा।
वाराणसी [अशोक सिंह]। गरीबों और मजदूरों की लड़ाई लडऩे वाली कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया का आजादी के बाद से ही पूर्वांचल मजबूत गढ़ रहा। यहां की कई लोकसभा सीटों पर विजय हासिल करने के साथ पार्टी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराती रही है। इसके बावजूद पश्चिम बंगाल की तरह पूर्वांचल में कम्युनिस्ट अपने ही घर में बेगाना महसूस कर रहे हैं। हालत यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की 12 में से मात्र पांच सीटों से ही वामपंथी उम्मीदवार मैदान में हैं। 2014 में यह संख्या सात थी।
बड़े नेताओं की बजाय एकमात्र कम्युनिस्ट नेता अतुल कुमार अंजान अकेले दम पर वामपंथ की अलख जगाए हुए हैं। ऐसे में वामपंथ का समर्थन करने वाले मतदाताओं के सामने समस्या है कि वे इस चुनाव में जाएं तो जाएं कहां। सत्ताधारी भाजपा की खिलाफत में कम्युनिस्ट कोलकाता से दिल्ली वाया केरल तक अन्य विपक्षियों से तो आगे रहते हैं लेकिन पूर्वांचल में सपा-बसपा गठबंधन ने इन्हें तवज्जो नहीं दिया।
स्वतंत्रता के बाद ही पूर्वांचल में कम्युनिस्ट नेताओं ने अपना प्रवाह दिखाना शुरू कर दिया था। पहले आम चुनाव में ही घोसी से जेडए अहमद ने कड़ी टक्कर दी थी। धीरे-धीरे गौरवपूर्ण कम्युनिस्ट इतिहास मजबूत होने लगा। पार्टी ने मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, बलिया, आजमगढ़, राबट्र्सगंज, मीरजापुर, गोरखपुर आदि क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाना ली। परिणामस्वरूप 1967 के आम चुनाव में सत्यनारायण सिंह वाराणसी संसदीय सीट से, सरजू पांडेय गाजीपुर से और जय बहादुर सिंह घोसी से सांसद बन कर लोकसभा में पहुंच गए।
यह सिलसिला अलग-अलग लोकसभा क्षेत्र में 1991 तक चला जब अंतिम बार गाजीपुर से विश्वनाथ शास्त्री सांसद बने। गाजीपुर में तीन तो घोसी में पांच बार कम्युनिस्ट सांसद चुने गए। इतना ही नहीं कम्युनिस्ट नेता राजकिशोर एक बार वाराणसी में चुनाव जीतते-जीतते रह गए। जानकार बताते हैं कि वह चुनाव जीत गए थे लेकिन दंगे के कारण अंतिम समय में बदले समीकरण से वे बहुत कम अंतर से चुनाव हार गए।
विधानसभा में भी दिखाया था दम
लोकसभा ही नहीं विधानसभा में भी कई नेता अपना दम दिखाते रहे हैं। वाराणसी के कोलअसला (अब पिंडरा) से कम्युनिस्ट नेता ऊदल नौ बार विधायक रहे। 80 के दशक में आराजीलाइन से राजकिशोर दो बार विधानसभा पहुंचे। वाराणसी शहर दक्षिणी से 1967 में रुस्तम सैटिन चुनाव जीते और सरकार में मंत्री बने। इसी बार घोसी के झारखंडेय राय भी विधानसभा में पहुंचे और मंत्री बने।
जातिवादी व सांप्रदायिक राजनीति पड़ी भारी
जानकार मानते हैं कि जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति ने कम्युनिस्टों का पूर्वांचल का गढ़ छीन लिया। जिन गरीबों व मजदूरों की बातें कम्युनिस्ट करते थे वे सपा, बसपा और छोटे दलों से जुड़ गए। जन आंदोलनों के अभाव के अलावा समानांतर लाइन में छोटे-छोटे ग्रुप बन गए। इसके साथ ही लगातार केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ नकारात्मक राजनीति में सपा और कांग्रेस के पीछे चलते हुए पिछड़ते गए। इससे बचे-खुचे समर्थकों में से कुछ उधर चले गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में राबट्र्सगंज से अशोक कुमार कनौजिया, घोसी से अतुल कुमार अंजान और मछलीशहर से सुभाष चंद ही अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा पाए।
2019 में मैदान में कम्युनिस्ट
1-घोसी-अतुल कुमार अंजान-भाकपा
2-लालगंज-त्रिलोकी नाथ-भाकपा
3-राबट्र्सगंज-अशोक कुमार कनौजिया-भाकपा
4-मीरजापुर-जीरा भारती-सीपीआइ (लिबरेशन)
5-गाजीपुर-ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा-भाकपा (एमएल)
2014 में चुनाव लडऩे वाले कम्युनिस्ट
-लालगंज-हरिप्रसाद-10523
-घोसी-अतुल कुमार अंजान-18162
-मछलीशहर-सुबास चंद-18777
-मीरजापुर-जीरा भारती-4148
-वाराणसी-हीरालाल यादव-2457
-राबट्र्सगंज-अशोक कुमार कनौजिया-24363
-राबट्र्सगंज-शंकर कोल-6101
अब तक जीते कम्युनिस्ट सांसद
1967-सरजू पांडेय-गाजीपुर
1971-सरजू पांडेय-गाजीपुर
1991-विश्वनाथ शास्त्री-गाजीपुर
1962-जय बहादुर सिंह-घोसी
1967-जय बहादुर सिंह-घोसी
1968-झारखंडेय राय-घोसी
1971-झारखंडेय राय-घोसी
1980-झारखंडेय राय-घोसी
1967-सत्यनारायण सिंह-वाराणसी
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