Lok Sabha Election 2019: महागठबंधन के दावे का अंत.. माया और ममता ने पकड़ी कांग्रेस से अलग राह
भाजपा के खिलाफ विपक्ष का बड़ा धड़ा बनाने की कांग्रेस की मुहिम संकट में पड़ती दिख रही है और फ्रंट फुट पर खेलने की रणनीति भी।
नई दिल्ली, [आशुतोष झा]। महागठबंधन का नारा अब क्या खत्म मान लेना चाहिए? शायद हां। बसपा नेत्री मायावती के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मंगलवार को साफ कर दिया है कि चुनाव में वे कांग्रेस से अलग हैं। उनकी जंग न सिर्फ भाजपा की अगुआई वाले राजग से होगी बल्कि, कांग्रेस से भी होगी।
जाहिर है कि सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और तीसरे बड़े राज्य पश्चिम बंगाल में संभावित सहयोगियों के रुख ने न सिर्फ महागठबंधन को खारिज कर दिया है बल्कि, कांग्रेस के लिए दूसरे राज्यों में भी चुनौतियां बढ़ा दी हैं। खासकर बिहार में इसका असर दिख सकता है। भाजपा के खिलाफ विपक्ष का बड़ा धड़ा बनाने की कांग्रेस की मुहिम और 'फ्रंट फुट' पर खेलने की रणनीति संकट में पड़ती दिख रही है।
मालूम हो कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया था। खासकर सपा की अंदरूनी चाहत को देखते हुए यह सीधा संदेश था कि बसपा-सपा गठबंधन इन सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी माने या फिर इसके लिए तैयार रहे कि कांग्रेस 'फ्रंट फुट' पर खेलेगी। इसका नुकसान न सिर्फ भाजपा को उठाना होगा बल्कि, गठबंधन को भी। मंगलवार को खुद बसपा नेत्री मायावती ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस के साथ किसी भी राज्य में कोई समझौता नहीं होगा।
ध्यान रहे कि बसपा-सपा गठबंधन मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में भी दावा ठोक रहा है। मायावती का यह रुख चुनाव से पहले बहुत कुछ कहता है और चुनाव बाद की स्थिति में भी अटकलें लगाने की खुली राह छोड़ता है।दूसरी ओर, पिछले एक साल से लगातार विपक्षी दलों की बैठक में शामिल हो रहीं और अपने मंच पर कांग्रेस समेत दूसरे दलों को आने के लिए बाध्य कर रहीं ममता बनर्जी ने बंगाल की सभी 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं।
वहां कांग्रेस और वामदलों के बीच सामंजस्य तैयार हो रहा है। हालांकि, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या केरल में मुख्य प्रतिद्वंद्वी वामदल और कांग्रेस एक-दूसरे से हाथ मिलाएंगे? यह तय हो गया है कि पश्चिम बंगाल में भी त्रिकोणीय लड़ाई होगी और उत्तर प्रदेश में भी। यह भी याद रहे कि एक महीने पहले संसद सत्र के दौरान जब कांग्रेस सांसदों ने सारधा चिटफंड का मामला उठाया था तो ममता ने खुद संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी से कहा था, 'मैं याद रखूंगी।'
लालू का रुख भी सख्त
रही बात बिहार की तो वहां अभी तक राजद-कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। बताया जा रहा है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सहयोगी दलों को साफ संकेत दे दिए हैं कि वे अपनी राजनीतिक हैसियत से ज्यादा न मांगे, पहले पहलवान (मजबूत उम्मीदवार) दिखाएं फिर सीटों की बात करें। यह बयान कांग्रेस के लिहाज से इसलिए अहम है क्योंकि, पार्टी ने वहां 15 सीटों से मांग शुरू की थी और अब संभवत: 12 पर आकर टिकी है, जबकि राजद कांग्रेस को 8-9 सीटें देना चाहता है।
बदले-बदले से हैं चंद्रबाबू
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से साथ मिलकर लड़े आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू का रुख भी अब बदला-बदला है। प्रदेश की जनता को वह बताते फिर रहे हैं कि कांग्रेस के साथ केंद्र की रणनीति अलग है, लेकिन राज्य विधानसभा चुनाव में उनका कांग्रेस के साथ कोई लेना-देना नहीं है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच समझौते को अभी तक खारिज ही किया जा रहा है।
क्या होगा साझा घोषणापत्र
ऐसे में यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि विपक्षी दलों का एक साझा घोषणापत्र तैयार करने की जो कवायद शुरू हुई थी अब उसका क्या होगा। ध्यान रहे कि अब तक विपक्षी दलों के जमावड़े में 21 दलों को गिना जाता था और इसमें बसपा, सपा, तृणमूल कांग्रेस, टीडीपी और आप भी शामिल हुआ करती थीं।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को दोहरा झटका
डॉ. भीमराव आंबेडकर के पौत्र और महाराष्ट्र के प्रमुख दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस से पल्ला झाड़ लिया है। उनकी पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी ने राज्य की सभी 48 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी है। दूसरी ओर,महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे डॉ. सुजय विखे पाटिल मंगलवार को भाजपा में शामिल हो गए।