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Loksabha Election 2019 :हाशिए पर छात्र नेता, सूख रही राजनीति की नर्सरी

छात्रसंघ चुनाव को राजनीति की नर्सरी माना जाता था। यहां युवाओं को राजनीति के दांव पेंच सिखाकर पुष्पित-पल्लवित किया जाता था और नर्सरी से निकले तमाम नेता हैं राजनीति का वट वृक्ष बने।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 01:38 PM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 01:56 PM (IST)
Loksabha Election 2019 :हाशिए पर छात्र नेता, सूख रही राजनीति की नर्सरी
Loksabha Election 2019 :हाशिए पर छात्र नेता, सूख रही राजनीति की नर्सरी

लखनऊ [आशीष त्रिवेदी]। लोकसभा चुनाव 2019 में हर पार्टी का फोकस इन्हीं युवाओं पर है। माना जा रहा है कि युवा ही देश की तकदीर बदलेंगे। मगर राजनीति की नर्सरी छात्रसंघ का चुनाव न होने से मुरझा गई है।

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छात्रसंघ चुनाव को राजनीति की नर्सरी माना जाता था। यहां युवाओं को राजनीति के दांव पेंच सिखाकर पुष्पित-पल्लवित किया जाता था और इस नर्सरी से निकले तमाम ऐसे नौजवान नेता हैं, जो आगे राजनीति का वट वृक्ष बने। इसमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर समेत कई नाम हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय को छात्र राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। यहां यूपी ही नहीं देशभर से नौजवान राजनीति का ककहरा सीखने आते रहे हैं। आखिरी बार यहां साल 2005-06 के शैक्षिक सत्र में चुनाव हुआ और अध्यक्ष बजरंगी सिंह बज्जू चुने गए। बज्जू कहते हैं कि एबीवीपी के समर्थन से 2000-2001 में छात्रसंघ महामंत्री बना। उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक फरमान जारी कर दिया कि परास्नातक में वह ही दाखिला पाएगा, जिसके स्नातक में 55 फीसद अंक होंगे। नौजवान नाराज हो गए और हम भी उनके साथ खड़े थे। एनडीए सरकार का पुतला फूंका और आंदोलन चला। आखिर में यह फरमान वाला नियम वापस ले लिया गया।

वर्ष 2007 में बसपा सरकार बनी, उसकी खुद की कोई यूथ विंग है नहीं। उसने इस नर्सरी को तबाह करने का काम किया। अब तो माफिया-गुंडे और बड़े बिजनेसमैन ही नेता बन रहे हैं। एबीवीपी के राज्य विश्वविद्यालय प्रमुख विवेक सिंह मोनू कहते हैं कि 2012 में लखनऊ विश्वविद्यालय में चुनाव होना था लेकिन, मामला कोर्ट में चला गया। कब चुनाव होंगे पता नहीं। आगे विधायक के टिकट के लिए दावेदारी करनी है तो उससे पहले कम से कम राजनीति की नर्सरी में तो दम-खम दिखा लेता। अब बस विद्यार्थियों के मुद्दों पर किए गए आंदोलन का ही सहारा है। यह कहना सपा छात्रसभा के अनिल यादव व सहाबुद्दीन अहमद उर्फ समीर का है। छात्रसंघ के गेट पर ताला देखकर वह मायूस हैं।

नेतृत्व क्षमता का अनूठा पाठ छात्रसंघ ने ही सिखाया

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अंजान 1978 से 1984 तक लगातार छह वर्ष लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। वह कहते हैं कि छात्रसंघ केवल राजनेता की पौध तैयार करने वाली नर्सरी नहीं है। इसने देश को अच्छे साहित्यकार, वैज्ञानिक व डॉक्टर सब कुछ दिए। डॉ. शंकर दयाल शर्मा छात्रसंघ के महामंत्री बने, फिर लविवि में लॉ के शिक्षक और बाद में देश के राष्ट्रपति बने। इसी तरह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष रहे वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। मशहूर आलोचक नामवर सिंह भी बीएचयू में एआइएसएफ की छात्र इकाई से जुड़े रहे। वहीं सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे और विदेशी मामलों के मर्मज्ञ डीपी धर भी छात्र राजनीति से जुड़े रहे, जिन्होंने कश्मीर में बड़ा आंदोलन चलाया।

वर्ष 2012 में चुनाव का डंका बजा, मगर मामला पहुंच गया कोर्ट

लविवि में अक्टूबर 2012 में छात्रसंघ चुनाव करवाने की घोषणा हुई। छह अक्टूबर को नामांकन होना था और छात्रनेता हेमंत सिंह को नामांकन से रोक दिया गया। छात्रसंघ चुनाव लडऩे के लिए पीजी छात्र के तौर पर उनकी उम्र कुछ ज्यादा थी। हेमंत हाईकोर्ट पहुंच गए। उन्होंने तर्क दिया कि लिंगदोह कमेटी के अनुसार सत्र शुरू होने के छह से आठ सप्ताह में चुनाव होने चाहिए। लविवि खुद लेट है, ऐसे में हमसे मौका न छीना जाए। मामला कोर्ट में विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के अनुसार विश्वविद्यालयों का वर्गीकरण कर छोटे व बड़े विवि की श्रेणी में विभाजन को लेकर कानपुर के पीपीएन कॉलेज मामले में दाखिल की गई याचिका भी इससे जोड़ दी। एबीवीपी के राज्य विवि प्रमुख विवेक सिंह मोनू ने 2017 में कोर्ट में छात्रसंघ चुनाव करवाने के लिए अपील दायर की। उनका कहना है कि राज्य सरकार इसमें रुचि नहीं ले रही।

छात्रसंघ चुनाव की बाट जोह रहे नौजवान, अराजकता भी कारण

छात्रसंघ के नाम पर दबंगई व गुंडागर्दी करने के आरोप भी खूब लगाए जाते रहे हैं। बीते दिनों गोरखपुर विवि में तो चुनाव की तारीख घोषित हो गईं और उसके बाद बवाल व अराजकता के कारण चुनाव टालना पड़ा। चौधरी चरण सिंह विवि, मेरठ में इस वर्ष चुनाव की तारीख शासन द्वारा निर्धारित नहीं की गईं। ऐसे में विवि व उससे जुड़े एडेड डिग्री कॉलेज में चुनाव नहीं हुए। यही हाल आगरा विवि और रुहेलखंड विवि, बरेली का भी है। नियमित चुनाव सिर्फ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में या फिर साकेत कॉलेज फैजाबाद, बलिया व अन्य जिलों के डिग्री कॉलेजों में होते हैं।

युवाओं के मुद्दे

- विवि में क्लास रूम में बैठने की पर्याप्त जगह से लेकर पेयजल तक की समस्या

- फीस बढ़ोतरी मनमाने ढंग से विवि प्रशासन द्वारा करना

- रिजल्ट का समय पर घोषित न होना

- विद्यार्थियों के मुद्दे उठाने पर अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबन व निष्कासन की कार्रवाई करना। 


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