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Loksabha Election 2019 :पूर्वांचल से मिले बड़े दिग्गज नेता, हालात अभी भी बहुत नहीं बदले

बनारस से लेकर आजमगढ़ जौनपुर गोरखपुर मऊ बलिया देवरिया महाराजगंज व कुशीनगर में सबकी छाती फटती है। अपने बच्चों को पंजाब और थाईलैंड भेजते हुए।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 01:51 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 03:12 PM (IST)
Loksabha Election 2019 :पूर्वांचल से मिले बड़े दिग्गज नेता, हालात अभी भी बहुत नहीं बदले
Loksabha Election 2019 :पूर्वांचल से मिले बड़े दिग्गज नेता, हालात अभी भी बहुत नहीं बदले

लखनऊ [आशुतोष शुक्ल]। आधी सदी पहले प्रख्यात डॉ. राही मासूम रजा का कालजयी उपन्यास आया था-आधा गांव। गाजीपुर जिले के एक गांव की कहानी वाले इस उपन्यास में राही कहते हैं, 'गज भर छाती वाले जवान अब नजर नहीं आते, वे रोजगार के लिए कलकत्ता, बंबई चले जाते हैं।' दुनिया जब हथेली में सिमट आई है तब भी गाजीपुर अपने नए खून की पीठ देखने को अभिशप्त है।

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बनारस से लेकर आजमगढ़, जौनपुर, गोरखपुर, मऊ, बलिया, देवरिया, महाराजगंज व कुशीनगर में सबकी छाती फटती है। अपने बच्चों को पंजाब और थाईलैंड भेजते हुए। ...पर जो न भेजें तो खाएं क्या? उत्तराखंड की तरह उप्र का पूर्वांचल भी मनीआर्डर इकोनॉमी हो चुका है।

कला, साहित्य, संगीत जैसी हर विधा में बुद्धिजीवियों की शृंखला देने वाला पूर्वांचल भौतिक प्रगति में कतई विपन्न है। पूर्वांचल यानी बनारस, प्रयागराज, मीरजापुर, आजमगढ़, गोरखपुर और बस्ती मंडलों की 27 संसदीय सीटें और 28 जिले। जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के चार क्षेत्रों में पूर्वांचल नंबर एक पर है। इसके विपरीत साक्षरता में यह तीसरे नंबर पर है। महिला साक्षरता में इसका अंतिम स्थान है।

उद्योगों के बारे में कुछ कहना यूं बेकार है, क्योंकि बिजली खपत में पूर्वांचल चौथे नंबर पर है। उद्योग होंगे तब न बिजली चाहिए। उद्योग ही नहीं तो काहे की बिजली। नदियों से भरा और उर्वरता का धनी पूर्वांचल दूध उपलब्धता में भी प्रदेश में अंतिम पर है। प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई छोडऩे वाले बच्चे इस क्षेत्र में सबसे अधिक हैं। इन्हीं कारणों से पलायन ऐसा विकराल रोग है जिसका निदान कोई सरकार न कर सकी। पूर्वांचल की सारी समस्याएं इस बीमारी के मूल में हैं।

पूर्वांचलवासियों और तत्कालीन अंग्रेज सरकार के बीच 1901 में हुए एग्रीमेंट ने न केवल पलायन को गति दी, बल्कि बाहर जाने वालों को गिरमिटिया जैसा अशोभनीय विशेषण भी दिया। इससे बड़ी राजनीतिक व प्रशासनिक विफलता और क्या हो सकती है कि इतना बड़ा भूभाग आज भी प्रकृति की दोहरी मार झेल रहा है।

राप्ती, गंगा और कुआनो में या तो एक बरस बाढ़ आती है या पूरे क्षेत्र में हर दूसरे बरस सूखापड़ता है। बाढ़ पांच हजार से अधिक गांवों को बर्बाद कर चुकी है। सिंचाई के पर्याप्त साधन हैं नहीं।

कमलापति त्रिपाठी ने दोहरीघाट पंप कैनाल परियोजना न दी होती तो हालात और भी गंभीर होते। पूर्वांचल ने नेता बहुत दिए लेकिन संपूर्णानंद, वीरबहादुर सिंह, कल्पनाथ राय और राजमंगल पांडेय को छोड़ दें तो बदले में इस क्षेत्र को कुछ न मिला। शारदा नहर परियोजना अभी तक खेतों में पानी नहीं पहुंचा सकी है। तराई क्षेत्रों में इंसेफ्लाइटिस हालांकि पिछले बरस काबू में रही वरना अब तक तो यह हर साल हजारों बच्चों को लीलती आ रही थी।

सड़कें पूर्वांचल की बहुत बड़ी बीमारी हैं। रास्ते में केवल गड्ढे दिखते हैं, सड़क बीच-बीच में झलक जाती है। यह पढ़कर थोड़ा आश्चर्य हो सकता है, लेकिन एक्सप्रेस वे की पहली आवश्यकता पूर्वांचल को थी। लखनऊ-दिल्ली के बीच पहले भी अच्छी सड़कें थीं, जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश इनके लिए तरसता रहा। इसीलिए योगी सरकार का पूर्वांचल एक्सप्रेस वे इस क्षेत्र के घावों पर मरहम है। एक्सप्रेस वे से छोटे जिलों को जोडऩे की योजना निश्चय ही पूर्वांचल की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगी। बनारस का पान अब भी चौतरफा अपनी छटा बिखेर रहा है, लेकिन मऊ के साथ आजमगढ़ के बुनकर यहां पर सरकारी इच्छा शक्ति की आस में वर्षों से नष्ट हो रहे हैं।

पूर्वांचल की बंद चीनी मिलें गन्ना किसानों की विपदा की कहानी हैं। गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी ने कभी संसद में कहा था कि, 'पूर्वांचल में इतनी गरीबी है कि लोग गोबर से दाना बीनकर उसे साफ करके खाते हैं। कह सकते हैं कि हालात बहुत नहीं बदले हैं। 


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