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Loksabha Election 2019 : मुस्लिमों की सियासी मुकाम की तलाश अभी पूरी होती नहीं दिख रही

मुस्लिमों की सियासी मुकाम की तलाश अभी पूरी होती नहीं दिख रही। सपा बसपा गठबंधन के अलावा कांग्रेस जैसे दलों में कौन विकल्प हो जैसे प्रश्न मुसलमानों को अब भी चौराहे पर खड़ा किए हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 09:46 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 09:13 AM (IST)
Loksabha Election 2019 : मुस्लिमों की सियासी मुकाम की तलाश अभी पूरी होती नहीं दिख रही

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। लोकसभा चुनाव के लिए फिर से मुस्लिम वोटों को लेकर गुणा-भाग तेज है। मुसलमानों के रुख से किसका भला होगा, किसका नुकसान, यह बड़ा सवाल है। मुस्लिम वोटों की लामबंदी करने के लिए भाजपा का डर दिखाना गैरभाजपाई दलों का पुराना ढर्रा रहा है। अब तक ठोस विकल्प न मिल पाने से मुसलमानों में भ्रम जैसी स्थिति बनी है। उनको समझ नहीं आ रहा है किसके पाले में बैठें। एक ओर सपा बसपा गठबंधन है तो दूसरी ओर कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय वजूद रखने वाली पार्टी। पुराने गिले-शिकवे भुला कर अखिलेश और मायावती ने चुनावी गठजोड़ जरूर किया है लेकिन मुस्लिमों की धुकधुकी कम नहीं हो पा रही।

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यह धुकधुकी अनायास नहीं है। ठोस मुकाम न मिल पाने के कारण ही वर्ष 2014 में प्रदेश से एक भी मुस्लिम सांसद जीतकर संसद तक नहीं पहुंच सका था। सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 3.84 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रहते हैं। यानि सूबे में कुल आबादी का 19 फीसद से अधिक। आजादी के बाद गत लोकसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ था कि प्रदेश से कोई मुस्लिम सांसद निर्वाचित होकर लोकसभा नहीं पहुंच सका। हालांकि प्रदेश के चुनावी रण में प्रमुख गैर भाजपाई पार्टियों ने अच्छी खासी संख्या में मुस्लिमों को मैदान में उतारा था। बसपा ने दलित-मुसलमान समीकरण के आधार पर 19, सपा ने 13 व कांग्रेस ने 11 मुस्लिम प्रत्याशी

उम्मीदवार उतारे लेकिन सभी धराशायी हो गए थे।

मुस्लिम सियासत के लिए यह बड़ा झटका था। धुव्रीकरण की राजनीति ने गत विधानसभा चुनाव में भी अपना रंग दिखाया। मुसलमानों की रहनुमाई का दावा करने वाले दोनों दल सपा-बसपा हाशिये पर पहुंच गए थे। बसपा ने मुस्लिम-दलित धुव्रीकरण पुख्ता करने के लिए सौ से अधिक मुसलमानों को टिकट दिए, उधर सपा ने कांग्रेस से गठबंधन कर मुस्लिमों को रिझाने की कोशिश की परंतु कामयाबी नहीं मिली। मुस्लिम मतों का बिखराव न थमा और चुनाव के नतीजे अनुकूल न आ सके।

मुस्लिम राजनीति की नब्ज पहचाने वाले डॉ. नदीम अख्तर का कहना है कि अब आम मुसलमान भी जानता है कि केंद्र की सरकार को छोटे दलों के भरोसे नहीं बदला जा सकता। यूं भी छोटे दलों का सत्ता के लिए पाला बदल लेने का इतिहास भी सभी जानते हैं। कांग्रेस को किनारे करके दिल्ली की राजनीति बदलने का ख्वाब दिखाने वालों को हम जैसे लोग मुस्लिमों का शुभचिंतक नहीं मानते।

धुव्रीकरण को लेकर भी सतर्कता

सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन यूं तो प्रदेश में सबसे तगड़े विकल्प के रूप में भाजपा को चुनौती देता दिखता है परंतु प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू वोटों के धुव्रीकरण की आशंका भी मुस्लिमों को डराती है। पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक जैसी घटना से बदले सियासी हालात से भी गठबंधन को अति मुस्लिम प्रेम जताने से डर लगता दिख रहा है इसीलिए सपा-बसपा ने अपने नेताओं को संभल कर बयानबाजी करने की हिदायत दे रखी है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. एसके चतुर्वेदी का कहना है कि अतिवाद की राजनीति पर अंकुश न लगाया जाएगा तो जनता खुद नया रास्ता तलाश लेगी।

राष्ट्रीय दलों पर लगी नजर

प्रदेश की डेढ़ दर्जन से ज्यादा मुस्लिम बहुल सीटों पर सबकी नजर लगी है जिसमें रामपुर जैसे जिले भी शामिल हैं, जहां 50.57 प्रतिशत आबादी मुसलमान है। प्रदेश में 20 फीसद से अधिक मुस्लिम आबादी वाले जिलों की संख्या 21 है। इन जिलों पर गठबंधन और कांगेस की नजर भी लगी है।

जमियत-उल-कुरैश के अध्यक्ष एडवोकेट युसूफ कुरैशी का कहना है कि मुस्लिमों ने जब से कांग्रेस का साथ छोड़ा तब से उनका इस्तेमाल वोटबैंक की तरह से किया जा रहा है। खासकर जातियों के आधार पर बनी पार्टियां मुसलमानों के वोट के जरिए सत्ता हासिल कर अपनी बिरादरियों का ही हित साधती हैैं। इधर-उधर भटकते मुसलमान को ठोस सियासी मुकाम नहीं मिल पा रहा। उनका दावा है कि राष्ट्रीय पार्टियों के जरिए मुसलमान अपने मसलों का समाधान करा सकता है।

सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस मुख्य मुकाबले से बाहर दिख रही थी परंतु प्रियंका गांधी की इंट्री होने के बाद हालात तेजी से बदल रहे हैं। पिछड़े वर्ग को साथ में जोड़कर मुस्लिमों को रिझाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस कितना सफल होगी यह तो वक्त ही बताएगा परंतु इस दांव से गठबंधन की बेचैनी बढ़ी है। यूं भी मुसलमान कांग्रेस का ही परंपरागत वोटर रहा है। अन्य पिछड़ी बिरादरियों का प्रतिनिधित्व करने वाले छोटे दलों से गठबंधन का कांग्रेस का प्रयोग कारगर रहा तो मुस्लिमों के लिए पंजे का बटन दबाने का विकल्प भी खुला होगा।

असल मुद्दों की अनदेखी

भाजपा को हराने-जिताने की सियासत ने मूल मसलों से मुस्लिमों को भटका दिया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और सुरक्षा जैसे मुद्दे चुनावी राजनीति से दूर होते जा रहे हैं। मुस्लिमों से जुड़े सामाजिक मसलों से सरोकार रखने वाले सलीम भारती का कहना है कि मुसलमानों को वोटबैंक की तरह प्रयोग करने वालों ने ही हमें काफी पीछे कर दिया है। अब मुस्लिमों में भी एक वर्ग बदलाव के नजरिए से सोचने लगा है। चुनाव में मुस्लिमों के बीच इन मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल जाएं तो हालात जरूर सुधरेंगे।

स्थानीय दल भी महत्वपूर्ण

मुस्लिमों के लिए विकल्प के तौर पर गठबंधन व कांग्रेस के अलावा स्थानीय दलों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती है। शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अलावा ओवैसी की एमआईएम व डा.अय्यूब की पीस पार्टी, आम आदमी पार्टी जैसे आधा दर्जन से अधिक छोटे दल भी गठबंधन करके बड़ों का खेल बिगाड़ सकते हैं। पिछड़ा मुस्लिम समाज के बुुंदू खां अंसारी का कहना है कि तीन तलाक जैसे मुद्दों पर मुस्लिम महिलाओं की राय की अनदेखी उचित नहीं होगी।

मुस्लिम बहुल संसदीय सीटें

मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, कैराना, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बरेली, मेरठ, सम्भल, बलरामपुर, मऊ, बदायूं, बहराइच, आजमगढ़, कानपुर, बुलंदशहर, गाजियाबाद व बाराबंकी जैसी लोकसभा सीटों पर सबकी नजर है। इसमें मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से सर्वाधिक तीन विधायक मुस्लिम हैं। इसी तरह रामपुर, कानपुर, बहराइच व आजमगढ़ से दो-दो मुस्लिम विधायक हैं।

मुस्लिम बहुल जिले

रामपुर में 50.57 प्रतिशत, मुरादाबाद में 47.12 प्रतिशत, बिजनौर 43 प्रतिशत, सहारनपुर 42 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर 42 प्रतिशत, अमरोहा में 40 प्रतिशत, बलरामपुर में 37 प्रतिशत है। इसी तरह मेरठ, बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बागपत, गाजियाबाद, पीलीभीत, संत कबीर नगर, बाराबंकी, बुलंदशहर, बदायूं, लखनऊ व खीरी में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है। सबसे कम मुस्लिम आबादी ललितपुर में है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां मुस्लिम आबादी अधिक है, वहीं बुंदेलखंड में अपेक्षाकृत कम है।

अब तक मुस्लिम सांसदों की संख्या

वर्ष        संख्या

1952      36

1957      24

1962      32

1967      29

1971      27

1977      32

1980      46

1985      41

1989      33

1991     28

1996     26

1998     29

1999     31

2004     37

2009    28

2014    22

प्रदेश में मुस्लिम विधायक

सपा      19

बसपा    04

कांग्रेस   02

कुल     25  


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