Loksabha Election 2019 : मेरठ में बिछी राजनीति की चौसर, यहां भी मोदी ही मुद्दा
मेरठ का इतिहास बुलंद है वर्तमान भी कम नहीं लेकिन विकास यात्रा में कहीं न कहीं पीछे है। इस बार की चुनाव हवा में मोदी का समर्थन व विरोध तो है ही लोग स्थानीय मुद्दों पर भी मुखर हैं।
मेरठ [रवि प्रकाश तिवारी]। मेरठ का कनॉट प्लेस कहे जाने वाले आबूलेन पर राजनीतिक गोलबंदी के बीच हो रही गरमागरम बहस के बीच एक भाजपा समर्थक विकास के काम गिनाए जा रहा हैं- 'मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेस-वे बनवा दिया, रैपिड रेल के लिए देखो मिट्टी खुदने लगी। हापुड़-बुलंदशहर हाईवे भी बन ही रहा है। रामराज मार्ग भी फोर लेन हो जाएगा।'
बात पूरी होने से पहले ही एक टोक देता है-'फेंको मत। पांच साल में हवाई जहाज तो उड़ा नहीं। बड़े हल्ले मचाए थे, स्मार्ट सिटी में शामिल करवा देंगे, हाईकोर्ट बेंच बनवा देंगे, मेरठ से उड़ान शुरू करा देंगे, मेट्रो दौड़ पड़ेगी, जहां हम खड़े हैं उस कैंट के जटिल नियमों को सरल करा देंगे... कुछ न हुआ। उल्टे हमें जीएसटी में फंसा दिया।' बहस का ताप चढ़ता जा रहा था। कई और लोग इसमें शामिल होने को उतावले हैैं लेकिन, कुछ लोग यही बात कहकर बहस खत्म करा देते हैैं-' शहर के मुद्दे न देखो भाई, प्रधानमंत्री चुनना है, उस पर विचार करो।'
बाजार में महिलाओं से जब उनका रुख भांपने का प्रयास किया गया तो वे बोलीं, देखिए तस्वीर जस की तस ही है। न कानून-व्यवस्था में सुधार हुआ, न दूसरी सुविधाओं में। हमारा खर्च जरूर बढ़ गया है। बचत पर कैंची चली है। हमें समझ है, हमें क्या करना है। लेकिन हम भावुकता में नहीं बहेंगे, कैंडीडेट देखकर वोट करेंगे। थापरनगर, परतापुर के लोग भी मौजूदा विकासपरक कार्यों को आधार बनाकर सरकार को प्रयास को सराहते हैं लेकिन, उन्हें भी एक टीस है कि उतना नहीं हुआ, जितना न्यूनतम होना चाहिए।
मेरठ-हापुड़ संसदीय लोकसभा में मूलत: शहरी वोटर ज्यादा हैं। पांच विधानसभा की सीमा में सिमटे इस लोकसभा क्षेत्र का मेरठ शहर और मेरठ छावनी तो पूरी तरह से शहरी क्षेत्र है, जबकि मेरठ दक्षिण और हापुड़ विधानसभा भी आधा से अधिक शहरी सीमा में ही है। खालिस देहाती क्षेत्र किठौर विधानसभा है।
इस बार मुख्य मुकाबला भाजपा के दो बार से सांसद राजेंद्र अग्रवाल और गठबंधन प्रत्याशी बसपा के हाजी याकूब कुरैशी के बीच है। याकूब यूं तो सपा-बसपा और रालोद तीनों पार्टियों में घूम आए हैं लेकिन, मंत्री बसपा सरकार में थे। कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के बड़े पुत्र और लखनऊ के मेयर रह चुके राज्यसभा सदस्य अखिलेश दास के भाई हरेंद्र अग्रवाल मैदान में हैं।
अपने कमजोर संगठन की वजह से कांग्रेस फिलहाल पिछले रिकॉर्ड को ही सुधारने की कवायद में है। पिछली बार सिने तारिका नगमा को 42911 वोट मिले थे, जबकि इसी सीट पर 1952 से 1962 तक मेजर जनरल शहनवाज खान ने हैट्रिक लगाई थी। उसके बाद 1980 और 1984 में मोहसिना किदवई ने भारी जीत दिलाई। 1999 में अवतार सिंह भड़ाना अंतिम बार कांग्रेस के सांसद चुने गए थे। इसके बाद 2004 में बसपा और फिर 2009 से अब तक भाजपा सीट जीतते आ रही है।
लेकिन क्या मोदी लहर जैसी कोई चीज दिखती है? आर्टिफिशियल ज्वैलरी के लिए पहचाने जाने वाले मुंडाली में बातचीत के दौरान लोग साफगोई से कहते हैैं कि पिछली बार जैसा माहौल तो नहीं है। पूरा चुनाव इस बात पर टिका है कि दलित और मुस्लिम समाज में कितना गठजोड़ होता है। मुंडाली में ही मोहसिन, शकील आदि कहते हैैं कि बेवजह का तीन तलाक मुद्दा छेड़ दिया।
ऐसे बयान भी सुनने को मिलते हैैं जैसे हम इस मुल्क के हैं ही नहीं। मुंडाली के नजदीक के ही गांव सिसौली में पता चला कि टिकट घोषणा से पहले गांव वालों ने नोटा दबाने का बैनर टांग रखा था। खुलेआम धमकी का वह बैनर अब कहां हैं... सवाल उठाते ही मिठाई की दुकान में बैठे लोग बोले- 'किसी को तो चुनना ही है। हमारे नोटा से क्या फर्क पड़ेगा।
चुनावी बातें शुरू करने पर किठौर गांव के किसान नाखुशी जाहिर करते हैैं। वे कहते हैं सिर्फ चुनाव के समय हमारी याद आती है। बातचीत में किसान लागत से डेढ़ गुना मिलने का मुद्दा उठाते हैैं। ट्रैक्टर पर ब्याज न के बराबर लगने की बात भी कहते हैैं। प्रमोद जाटव और सरिता मोहकमपुर में एक कंपनी में काम करते हैं। दोपहर में ब्रेक मिला है तो रोटी तोड़ रहे हैं। बेलौस कहते हैैं कि हमारा एजेंडा साफ है, जो हमारे बारे में सोचता है उसी के साथ रहेंगे। उनका इशारा बसपा की ओर है।
देहात का एक और गांव खरखौदा। टोह ली तो पता चला चुनावी माहौल ने पूरे गांव को दो भागों में बांट रखा है। त्यागी और गुर्जर बिरादरी पूरी तरह से मोदी के नाम पर एकजुट है तो मुस्लिम और दलित वर्ग गठबंधन के साथ है और उन्हें यह दर्शाने में भी कोई संकोच नहीं। प्रत्याशियों की पहचान यहां गौण है। मोदी ही यहां भी मुद्दा हैैं। एक पक्ष मोदी को जिताने में तो दूसरा मोदी को हराने के लिए भारी मतदान की बात करता है।
कैंट की जीत मायने रखती है
यूं तो 2014 में सभी पांच विधानसभाओं में राजेंद्र अग्रवाल ही जीते थे लेकिन, कैंट से जीत भाजपा के लिए अहम मायने रखती है। मेरठ कैंट से जो विनिंग मार्जिंन भाजपा को पिछले दो बार से मिल रहा है, उसके बाद बाकी चार विधानसभा की टक्कर बेमानी हो जाती है।
2014 में एक लाख नौ हजार से अधिक मतों से अकेले कैंट ने भाजपा को जिताया था। मोदी लहर में इस सीट पर दो लाख 32 हजार कुल जीत का अंतर था। तस्वीर इस बार भी बहुत ज्यादा बदली नहीं दिख रही है। इस क्षेत्र में मोदी ब्रांड, तीनों स्ट्राइक सबसे अहम बन गया है। जो भाजपा से नाराज हैं, वे कांग्रेस के साथ खड़े होने की बात कर रहे हैं। तर्क है, चुनाव केंद्र सरकार का है और केंद्र में तो कांग्रेस ही भाजपा को हटा सकती है।
मेरठ-हापुड़ लोकसभा की एक तस्वीर
कुल मतदाता : 18 लाख 94 हजार 144
पुरुष मतदाता : 10 लाख 21 हजार 485
महिला मतदाता : 8 लाख 50 हजार 525
साक्षरता दर : 72.8 फीसद (राज्य का औसत 67.7)
लिंग औसत : 886 (राज्य का औसत 912)
विकास दर : 15.8 फीसद (राज्य का औसत 20.2)
जनसंख्या का घनत्व प्रति किमी : 1346 (राज्य का औसत 829)