Loksabha Election 2019 : ग्राउंड रिपोर्ट गाजीपुर : विकास बनाम बिरादरी
चुनाव का असल मुद्दा विकास बनेगा या फिर फूलों की खेती कर कभी इत्र व गुलाब जल की महक बिखेरने वाली गाजीपुर की फिजां में जातीयता की गंध घिरी रहेगी इसका फैसला होना बाकी है।
गाजीपुर [आलोक मिश्र]। पृथ्वीराज चौहान के वंशज राजा मांधाता का गढ़ माना जाने वाला गाजीपुर जातीय समीकरणों में उलझी एक और जंग का साक्षी बनने जा रहा है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम, यादव व दलित वोटों की तिकड़ी का तोड़ खोजना है। स्थानीय सांसद मनोज सिन्हा के काम गाजीपुर के रेलवे स्टेशनों से लेकर मंडल प्रशिक्षण केंद्र, फोरलेन हाईवे और बस्तियों तक में दिख रहे हैं। चुनाव का असल मुद्दा 'विकास' बनेगा या फिर फूलों की खेती कर कभी इत्र व गुलाब जल की महक बिखेरने वाली गाजीपुर की फिजां में जातीयता की गंध घिरी रहेगी, इसका फैसला होना बाकी है।
यूपी का चुनावी समर अंतिम दौर में है। इसी में गाजीपुर के मतदाताओं की परीक्षा होनी है। गर्मी का पारा चढ़ने के साथ ही अब यहां चुनावी सरगर्मी बढ़ने लगी है। भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की प्रतिष्ठा यहां दांव पर है। लगातार दूसरी जीत दर्ज करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे मनोज सिन्हा की राह में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी सबसे बड़ा रोड़ा हैं। पूर्वांचल की इस जमीन पर पार्टी की जीत तलाश रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने अफजाल को गठबंधन का प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने इस बार यहां से बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी के उम्मीदवार अधिवक्ता अजीत प्रताप कुशवाहा को समर्थन दिया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने रामजी राजभर को मैदान में उतारा है। इस तरह 17 प्रत्याशी मैदान में हैं और यह लगभग तय है कि जातिगत आधार पर वोटों का बंटवारा मुकाबले को किसी के लिए एकतरफा नहीं रहने देगा।
सभी दलों की लगातार हो रही रैलियों के बीच जंगीपुर बाजार के परचून कारोबारी लक्ष्मण प्रसाद कहते हैं- 'मनोज सिन्हा ने काम किया है और उन्हें एक मौका जरूर मिलना चाहिए।' पास बैठे किसान रणजीत यादव यह सुनकर बोल पड़े...हूं... गठबंधन के आंकड़े मजबूत हैं, पर टक्कर पिछली बार की तरह फिर कांटे की है। दरअसल, गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र जखनिया, सैदपुर, सदर, जंगीपुर व जमानिया हैं। इनमें दो विधायक भाजपा के, एक भाजपा गठबंधन की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के और दो सपा के हैं।
इस संसदीय सीट पर मनोज सिन्हा तीन बार सांसद रहे हैं तो सपा के टिकट पर 2004 में इस सीट से संसद का सफर तय कर चुके अफजाल इस बार हाथी पर सवार हैं। इस संसदीय सीट में सबसे ज्यादा (तीन लाख से अधिक) मतदाता यादव व दलित हैं। क्षत्रिय, मुस्लिम व कुशवाहा जाति के वोट डेढ़ लाख के आसपास हैं, जबकि ब्राहमण वोटर करीब एक लाख हैं। इसके अलावा राजभर, भूमिहार, बिंद, मल्लाह, वैश्य व अन्य जातियों के वोट भी किसी करीबी मुकाबले में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं। यह जातीय समीकरण है, जिसने गाजीपुर में कम्युनिस्टों से लेकर कांग्रेस, भाजपा व सपा के नेताओं तक को विजय पथ पर बढ़ाया है। 1989 में यहां निर्दल उम्मीदवार जगदीश कुशवाहा को भी जीत मिली।
1962 में कांग्रेस से सांसद रहे विश्वनाथ सिंह गहमरी के नाती व पीजी कॉलेज, गाजीपुर के शिक्षणेतर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष विवेक कुमार सिंह उर्फ शम्मी चुनाव का जिक्र आते ही बड़ी हनक से कहते हैं- 'गाजीपुर की अपनी राजनीतिक चेतना है। बात यह बड़ी है कि पहले किसी सांसद ने जीतने के बाद गाजीपुर के विकास की नहीं सोची। मनोज सिन्हा ने उस मिथ को तोड़ा है और लोगों की नजर उस पर है।' इसी कॉलेज के कर्मचारी प्रदीप यादव मानते हैं कि 'भाजपा व गठबंधन में सीधी लड़ाई है और दोनों ही दल एक-दूसरे के वोट भी काटेंगे।' यादव बिरादरी के एक तबके के मन में कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर उनके मुखिया अखिलेश यादव के विरोध तथा बाद में दल के लिए बसपा के दरवाजे खुलने से उपजी टीस भी है। उस तबके को यहां अखिलेश यादव के आने का इंतजार भी है।
शहर के प्रमुख बाजार महुआबाग में फर्नीचर कारोबारी इमरान कहते हैं- 'पूरी स्थिति तो 23 मई के बाद साफ होगी, पर सब जानते हैं कि अफजाल भाई हर जरूरतमंद की मदद के लिए हमेशा खड़े रहते हैं।' कुछ दूर मिश्र बाजार के चौराहे पर पं. दीनदयाल की मूर्ति है। यह इलाका शहर का दिल माना जाता है। यहां स्थित श्रीकृष्ण स्वीट हाउस के चंद्रभान सिंह कहते हैं- 'मनोज सिन्हा उम्मीदवार सबसे अच्छे हैं और उन्हें एक और मौका मिलने पर गाजीपुर में काम और तेज गति से होगा।' चंद्रभान के साथ व्यापारी विशाल चौरसिया भी 'काम' को वोट देने का वादा दोहराते हैं। दोपहर में सरकारी अफीम व क्षारोद कारखाना के पास बेल के शर्बत के ठेले पर जुटे युवा शर्बत के साथ सियासी बातचीत का रस भी ले रहे थे। बात मऊ से जमानिया के बीच रेलवे ट्रैक और गंगा पर ओवरब्रिज से शुरू हुई थी।
पसीने से तरबतर स्नातक छात्र सुरेश चौरसिया ने दो टूक कहा- 'ऐसे काम ही गाजीपुर को दूसरे बड़े शहरों की कतार में खड़ा कर सकते हैं।' काशी की बदलती तस्वीर से अपने शहर के बाजार और सुविधाओं का आकलन बहस को और रोचक बनाता जा रहा था। तभी दुकानदार ने तंज कसा... 'ई बहस से का होई। सबहीं वोट तो बिरादरी के नाम देत अही।' आदर्श गांव दुल्लापुर और देवां को सांसद मनोज सिन्हा ने गोद लिया है। जखनिया विधानसभा क्षेत्र के दुल्लापुर में वाईफाई टावर तो देवां में आरसीसी रोड ग्रामीण क्षेत्र की नई तस्वीर गढ़ रहे हैं। यहां कुछ काम अधूरा होने को लेकर लोगों में नाराजगी तो है, पर और बेहतर होने की उम्मीद भी बरकरार है। मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाले श्रवण कुमार इन दिनों पैतृक गांव देवां आए हुए हैं। वे कहते हैं- 'क्षेत्र में बदलाव के लिए वह मतदान की जिम्मेदारी निभाने आए हैं।'
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