Loksabha Election 2019 : गन्ना बेल्ट में सजीं सेनाएं, प्रथम चरण का मतदान 11 को
सभी प्रमुख पार्टियों ने जातिवार क्षेत्रों में अपने नेताओं को उतारना भी शुरू कर दिया है। छोटी बड़ी सभाओं के साथ ही रोड शो आदि का सिलसिला तेज है।
लखनऊ [अवनीश त्यागी]। उत्तर प्रदेश के गन्ना बेल्ट की चुनावी जंग पर मुद्दों के बजाए धुव्रीकरण का रंग गाढ़ा होता दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ अन्य दलों की सभाओं में धुव्रीकरण के अलावा जातिवाद का तड़का लगना शुरू हो गया है।
सभी प्रमुख पार्टियों ने जातिवार क्षेत्रों में अपने नेताओं को उतारना भी शुरू कर दिया है। छोटी बड़ी सभाओं के साथ ही रोड शो आदि का सिलसिला तेज है। सोशल मीडिया पर आरोप प्रत्यारोप बढऩे से माहौल गर्मा रहा है। चुनावी कुरुक्षेत्र में विभिन्न दलों की सेनाएं सजी हैं।
आठ सीटें, 96 उम्मीदवार
प्रथम चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा। आठ संसदीय क्षेत्रों वाले पहले चक्र के चुनाव में कुल 96 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं। कैराना, बिजनौर, बागपत व गौतमबुद्ध नगर में सबसे अधिक 13-13 उम्मीदवार हैं तो सबसे कम 10 प्रत्याशी मुजफ्फरनगर में हैं। सहारनपुर व मेरठ में 11-11 और गाजियाबाद में 12 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।
दांव पर दिग्गज
केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों क्रमश: डा. महेश शर्मा, डा. सत्यपाल सिंह व सेवानिवृत्त जनरल वीके सिंह के अलावा रालोद प्रमुख अजित सिंह व उनके पुत्र जयंत चौधरी, कांग्रेस के इमरान मसूद, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान, हाजी याकूब कुरैशी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, विधायक प्रदीप चौधरी एवं हरेंद्र मलिक जैसे दिग्गजों की परीक्षा भी प्रथम चरण में ही होगी। भाजपा के समक्ष 2014 के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है तो विपक्ष को अपना अस्तित्व बचाने के लिए दम दिखाना होगा।
बागपत और मुजफ्फनगर को छोड़ दें तो अधिकतर सीटों पर त्रिकोणात्मक मुकाबले के आसार हैं। गौतमबुद्धनगर में केंद्रीय मंत्री भाजपा के डा. महेश शर्मा को कांग्रेस और गठबंधन से चुनौती मिल रही है तो मेरठ में कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल भाजपा और सपा बसपा गठबंधन की टक्कर में तीसरा कोण बनाने की कोशिश करेंगे। गाजियाबाद में भाजपा के मंत्री व सेवानिवृत्त जनरल वीके सिंह भी त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे हैं। वहीं चौधरी चरण सिंह के गढ़ बागपत में उनके पौत्र जयंत चौधरी भाजपा से अपनी पुश्तैनी सीट को निकालने के लिए जूझेंगे। केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह का रालोद के जयंत चौधरी से सीधा मुकाबला होगा।
रालोद प्रमुख अजित सिंह के लिए नया चुनाव क्षेत्र मुजफ्फनगर आसान नहीं होगा क्योंकि उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान से सीधी टक्कर मिल रही है। दंगों के कारण पिछले पांच वर्षों से चर्चा में रहे मुजफ्फरनगर के मुकाबले पर सबकी निगाहें लगी हैं। विपक्ष बनाम भाजपा जैसे बने हालात में चौधरी चरण सिंह के कुनबे को बागपत क्षेत्र से बाहर भी अपना जलवा दिखाना होगा। 2014 जैसी स्थिति अभी भले नहीं दिख रही हो परंतु चौधरी चरणसिंह विवि के प्रो. विघ्नेश कुमार का मानना है कि जैस-जैसे चुनाव गर्माएगा वैसे-वैसे धुव्रीकरण घना होता जाएगा क्योंकि दंगों के जख्म अभी पूरी तरह भरे नहीं हैं। दल भले ही मिले हों परंतु लोगों के दिलों का पहले की तरह मिलना अभी आसान नहीं।
कैराना की रोचक जंग
प्रथम चरण की आठ सीटों में से कैराना को छोड़ सब पर भाजपा का कब्जा है। 2014 में कैराना से भाजपा के हुकुम सिंह विजयी हुए थे परंतु उनके निधन के बाद उनकी पुत्री मृगांका सिंह सियासी विरासत संभाले नहीं रख सकीं। पलायन के मुद्दे पर चर्चित कैराना में विपक्षी एकता का प्रयोग सफल हुआ था। इस बार कैराना में भाजपा ने विपक्षी एकता को भेदने के लिए पूर्व सांसद हुकुम सिंह परिवार से हटकर गंगोह के विधायक प्रदीप चौधरी को उतारा है। वहीं उपचुनाव में जीतकर सांसद बनी रालोद की तबस्सुम हसन इस बार सपा की उम्मीदवार हैं। तबस्सुम को बसपा व रालोद का समर्थन है परंतु उनके सामने कांग्रेस के हरेंद्र मलिक के आ जाने से मुकाबला कांटे का होता दिख रहा है। जाट राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले हरेंद्र मलिक के पुत्र पंकज मलिक शामली से विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस के युवा चेहरों में शुमार पंकज अपने पिता को जिताने के साथ ही 2022 मेंं विधानसभा चुनाव के लिए अपनी जमीन भी तैयार करने में जुटे हैं।
चौधराहट की परख
प्रथम चरण के चुनाव में चौधरी चरण सिंह परिवार का राजनीतिक भविष्य दांव पर है। पहली बार अजित सिंह अपनी पुश्तैनी सीट बागपत को छोड़ कर मुजफ्फनगर पहुंचे हैं। प्रथम चरण में भाजपा के कट्टरवादी चेहरों के रूप में पहचाने जाने वाले प्रदेश सरकार के मंत्री सुरेश राणा और विधायक संगीत सोम का भी इम्तिहान होगा। इसके अलावा जाटों में अजित सिंह का असर कम कराने के लिए मंत्री भूपेंद्र सिंह के साथ करीब एक दर्जन वरिष्ठ जाट नेताओं को कुछ कर दिखाना होगा।
कसौटी पर जातीय समीकरण
सपा-बसपा और रालोद में गठबंधन होने के बाद उनका वोट बैंक ट्रांसफर होगा अथवा नहीं, इसी को लेकर सबकी उत्सुकता है। जाट मुस्लिम व जाट दलित जैसे अक्सर होने वाले टकरावों के बीच हुआ यह गठबंधन पश्चिमी उप्र में राजनीतिक दिशा व दशा बदलने वाला सिद्ध होगा, बशर्ते दोनों वोटर निचले स्तर पर भी एकजुटता दिखाने को तैयार हो जाएं। प्रदेश में पश्चिमी जिलों को मुस्लिम राजनीति का केंद्र बिंदु माना जाने लगा है। पश्चिम में मुस्लिमों में कौन अलंबरदार जैसा सवाल भी उठ रहा है। प्रथम चरण में इमरान मसूद व बसपा के हाजी याकूब के अलावा बिजनौर से पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं का दमखम परखा जाएगा। इमरान मसूद सहारनपुर क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं और उनकी मुस्लिमों में पकड़ है। इमरान के अलावा हाजी याकूब कुरैशी भी अपनी सियासी हैसियत बनाए रखने में जुटे है। इसके अलावा कैराना का हसन परिवार व मुजफ्फरनगर के राणा परिवार को भी मुस्लिमों में अपनी पकड़ सिद्ध करनी होगी।
हाशिए पर स्थानीय मुद्दे
चुनावी गर्माहट तेज होते ही पश्चिम में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना, पश्चिमी उप्र को अलग राज्य बनाना, कानून व्यवस्था, छेड़छाड़, पलायन, अवैध पशु कटान, विकास में उपेक्षा, उद्योग धंधों का दम तोड़ते जाना, बकाया गन्ना मूल्य भुगतान, प्रदूषित होता और गिरता भूजल, किसानों को उपज का लाभकारी दाम न मिलना व कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना के लिए बनीं योजनाओं पर अमल न होना और जर्जर हाल में ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों जैसे मसलों पर बहस बंद है। सभी दलों द्वारा जातीय जोड़-तोड़ की राजनीति करने से क्षुब्ध समाजसेवी अजय शर्मा आरोप लगाते हैैं कि सुनियोजित ढंग से पश्चिम को उपेक्षित किया जाता है।
प्रथम चरण में भीम आर्मी और किसानों के पुराने संगठन भारतीय किसान यूनियन के रुख का भी पता चलेगा। हालांकि दोनों संगठन खुद को अराजनैतिक रहने का दावा करते है।
इन सीटों पर होगा चुनाव
सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर।