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Sumitra Mahajan: कभी चुनाव नहीं हारीं 'ताई', एक ही सीट से लगातार आठ बार बनीं सांसद, ऐसे जीता जनता का विश्वास

Lok Sabha Election शिष्टता सौम्यता और साफगोई के लिए प्रसिद्ध सुमित्रा महाजन के नाम एक ऐसा रिकॉर्ड दर्ज है जिसे तोड़ना अभी तक असंभव रहा है। वे एकमात्र महिला सांसद हैं जो एक ही संसदीय क्षेत्र और एक ही पार्टी से लगातार आठ लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। भारत की दूसरी महिला लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन पर कुलदीप भावसार का आलेख....

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Published: Sun, 14 Apr 2024 04:49 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2024 04:49 PM (IST)
Sumitra Mahajan: कभी चुनाव नहीं हारीं 'ताई', एक ही सीट से लगातार आठ बार बनीं सांसद, ऐसे जीता जनता का विश्वास
सुमित्रा महाजन ने 1989 में प्रकाश चंद्र सेठी जैसे बड़े नेता को हराकर कांग्रेस से यह सीट छीनी थी।

कुलदीप भावसार, नई दिल्ली। राज्यसभा के लिए टिकट मिलना यानी एक तरह से जीत पक्की ही होती है। इंदौर लोकसभा सीट को लेकर दिल्ली के राजनीतिक हलकों में यही छवि है कि वह तो भाजपा की 'राज्यसभा' सीट है और वहां जीत सुनिश्चित होती है। इस मान्यता के पीछे यहां का इतिहास भी है।

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इंदौर को इस मजूबत मुकाम पर लाकर खड़ा करने का श्रेय जाता है लगातार आठ बार यहां से सांसद रहीं सुमित्रा महाजन को। केंद्रीय मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन ने वर्ष 1989 में प्रकाश चंद्र सेठी जैसे बड़े नेता को पराजित कर कांग्रेस से यह मजबूत सीट छीन ली। इसके बाद न इंदौर ने कभी अपनी 'ताई' का साथ छोड़ा, न ताई ने इंदौर का।

अपनी विनम्रता, क्षेत्रवासियों के लिए सहज उपलब्धता, संसद में इंदौर के लिए लगातार कुछ न कुछ करते रहने का जज्बा और बेदाग छवि ने ताई को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में ताई का प्रभाव रहा। लोग यहां पूरे आदर, सम्मान और आत्मीयता के साथ ताई से जुड़ते थे ।

मजबूत होती गई विश्वास की परंपरा

वर्ष 1989 के पहले इंदौर लोकसभा क्षेत्र को कांग्रेस के लिए आसान सीट माना जाता था। वजह थी यहां की कपड़ा मिलों में काम करने वाले हजारों मजदूर, जो कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माने जाते थे। वर्ष 1989 में ताई का मुकाबला कांग्रेस के उस समय के कद्दावर नेता प्रकाश चंद्र सेठी से था, जो केंद्रीय मंत्री रह चुके थे।

राजनीति में पहली नजर में इस मुकाबले को ताई के लिए बहुत मुश्किल बताया जा रहा था, लेकिन बाजी पलटते हुए ताई ने एक लाख, 11 हजार, 614 मतों से जीत दर्ज की। इस जीत के बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा। चुनाव -दर- चुनाव वे जीतती रहीं ।

हार-जीत में रहा बड़ा अंतर

इंदौर से लगातार संसद में पहुंचने वाली ताई हर चुनाव के साथ मजबूत भी बनीं। कांग्रेस ने उन्हें पराजित करने के लिए हर बार अलग रणनीति बनाई, लेकिन ताई चुनौतियों को स्वीकारते हुए आगे बढ़ती रहीं।

उन्होंने आठ बार इंदौर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसमें से तीन बार उनका मुकाबला पटेल परिवार से हुआ। दो बार सत्यनारायण पटेल मुकाबले में उतरे तो एक बार उनके पिता रामेश्वर पटेल । ताई हर बार बड़े अंतर से जीत दर्ज करती रहीं। सिर्फ 1998 और 2009 में जीत का अंतर 50 हजार से कम रहा था।

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सही का न छोड़ा साथ

ताई की लोकप्रियता की बड़ी वजह उनका सरल स्वभाव और साफगोई भी थी। अपने कार्यकर्ताओं को भी वह गलत काम के लिए सार्वजनिक मंच से डपटने में हिचकिचात नहीं थीं और सही काम को कभी रोकती नहीं थीं। ताई की राजनीति ने शुचिता का साथ कभी नहीं छोड़ा। इंदौर से लेकर दिल्ली तक वे विकास के हर कार्य में शहरवासियों के साथ खड़ी रहीं।

प्रदेश सरकार से शहर के मुद्दों पर बात करना हो या दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों तक पहुंचकर शहर के लिए कोई सुविधा लेनी हो, ताई हमेशा तैयार रहतीं थी । रेल और हवाई सेवाओं के साथ ही इंदौर के ग्रामीण इलाकों में केंद्र सरकार की योजनाओं से दर्जनों बड़े कार्य ताई ने करवाए। इसी वजह से ताई इंदौर में जनप्रिय नेता के रूप में स्वीकारी गईं।

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काम का अभ्यास

"यह जनता का आशीर्वाद और समर्थन ही था जो मुझे इंदौर लोकसभा क्षेत्र से आठ बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। भाजपा के कार्यकर्ताओं की मेहनत थी कि उन्होंने मेरे काम को जनता तक पहुंचाया। मैं जिस भी काम को करती थी, उसका पहले अभ्यास करती थी। जैसे रेलवे का कोई काम हो तो मैं पहले खुद जानकारों के साथ बैठकर उसे समझती थी। इसके बाद मैं उस प्रोजेक्ट को केंद्र के समक्ष रखती थी। लोग सवाल उठाते थे कि ताई सिर्फ पत्र लिखती हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। मैं मंत्रियों को पत्र लिखने के बाद उसका फॉलोअप भी लेती थी। अभ्यास अच्छा होने की वजह से कहीं कोई दिक्कत नहीं आई। कभी किसी के ट्रांसफर को लेकर किसी से नहीं मिली। जब भी मिली, जनता के काम से मिली। इसका फायदा मिला और जनता का आशीर्वाद भी।"

- सुमित्रा महाजन

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