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Lok Sabha Election 2024: बुरहान वानी और अफजल गुरु के इलाके में लोकतंत्र का जश्न, घाटी के बदले सियासी माहौल की खूब चर्चा

Lok Sabha Election 2024 अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार कश्मीर घाटी के लोगों में चुनाव के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। बुरहान वानी और अफजल गुरु के इलाके का माहौल भी बदला-बदला है। घाटी के बदले इस सियासी माहौल की खूब चर्चा हो रही है। अब कश्मीर के लोगों में संसद के प्रति भरोसा बढ़ा है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 16 May 2024 08:51 AM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: कश्मीर घाटी में लोकतंत्र के पर्व का चटख रंग।
नवीन नवाज, जागरण, श्रीनगर। अनुच्छेद- 370 को निरस्त करने के लिए संसद ने जिन शक्तियों का प्रयोग किया, उससे कश्मीर के लोग प्रभावित हैं। पहले मानते थे कि हमारे लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा ही सबकुछ, लेकिन अब कह रहे कि संसद ही सर्वोच्च है।

पहले जहां आतंकी बुरहान वानी, जाकिर मूसा और अफजल गुरु के क्षेत्रों में मतदान की बात तक नहीं होती थी, वहीं अब हर जगह चुनावी रैलियां और वोट की ताकत का जिक्र हो रहा है।

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चौथे चरण में श्रीनगर सीट पर टूटे मतदान के रिकॉर्ड ने साबित किया कि कश्मीर बदल रहा है। अब बारामुला में 20 व अनंतनाग में 25 मई को मतदान में भी लोकतंत्र के उत्सव का रंग चटख रहने की पूरी उम्मीद है।

मतदाताओं में दिख रहा है जोश

दक्षिण कश्मीर में पहलगाम से लेकर उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर केरन टंगडार तक लाल, नीली और हरी झंडियां नजर आ रही हैं। सिर्फ 18 से 20 वर्ष के युवा ही नहीं बल्कि जीवन के 40-50 बसंत देख चुके मतदाता भी पहली बार न सिर्फ मतदान केंद्र पहुंचेंगे बल्कि ईवीएम का बटन भी दबाएंगे।

कैसा है बुरहान वानी के इलाके का हाल

दक्षिण कश्मीर के त्राल में अपने घर से कुछ ही दूरी पर स्कूल की तरफ संकेत करते हुए सोमवार को यासीन बट ने कहा कि मेरी उम्र 56 वर्ष है, लेकिन मैं पहली बार मतदान कर रहा हूं। यह पूछने पर कि सोच में बदलाव कैसे आया है, तो उन्होंने कहा कि पांच अगस्त, 2019 ने मेरा सोच बदल दिया है।

हिंदुस्तान की संसद में असली ताकत है, जहां आपका वोट आपके काम आता है। त्राल ही वह इलाका है, जहां से बुरहान वानी और जाकिर मूसा जैसे आतंकी निकले हैं, लेकिन इस बार लोग बेखौफ होकर मतदान के लिए निकले।

'संसद ही सबकुछ तय करती है'

कश्मीर के युवाओं की नयी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे फैसल खानकाशी ने कहा संसद ही तो सब कुछ तय करती है। वहां आपके भविष्य का फैसला होता है। यह बात अब यहां सभी को समझ आ गई है। आपको जो मिलेगा संसद से ही मिलेगा।

बिलाल बशीर ने कहा कि मैंने यहां कभी लोकसभा चुनाव को लेकर इतना जोश नहीं देखा है। मेरे पिता कहते हैं कि उन्होंने इस तरह का जोश 1984 में जरूर देखा था। बीते पांच वर्ष में यहां जो सुरक्षा एवं विश्वास का वातावरण पैदा हुआ है, उसने भी लोगों में चुनाव को लेकर एक नया उत्साह पैदा किया है।

क्या इस वजह से नहीं होती थी वोटिंग?

सोपोर के रहने वाले रहमतुल्ला खान ने कहा कि हमारे यहां कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी का प्रभाव रहा है। अफजल गुरु भी इसी इलाके का था। आप समझ सकते हैं कि यहां वोट को लेकर लोग क्या सोचते थे। यहां विधानसभा के लिए वोट नहीं पड़ता था, लोकसभा के लिए तो दूर की बात है। इस बार जो आप देख रहे हैं, उसका एक कारण अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण है। पहले हम यह सोचते थे कि यहां जो भी कानून लागू होगा, वह यहां की विधानसभा बनाएगी। संसद का कानून हमारी विधानसभा के रास्ते ही लागू होगा।

संसद की ताकत के बारे में धारणा टूटी

एडवोकेट शब्बीर ने कहा कि पंचायत राज एक्ट के कई प्रविधान जम्मू-कमीर में लागू नहीं थे। 73वें संशोधन को लेकर यहां खूब सियासत होती थी। यहां विधानसभा का कार्यकाल छह साल था, क्योंकि इंदिरा गांधी ने संसद और विधानसभा का कार्यकाल छह साल किया था।

हमारी विधानसभा ने केंद्र के इस फैसले को लागू कर दिया, जब केंद्र ने नया कानून लाकर संसद का कार्यकाल पांच साल किया तो हमने उक्त कानून को लागू नहीं किया, क्योंकि राज्य विधानसभा की मर्जी के बिना यह लागू नहीं हो सकता था। पहले यहां लोग सोचते थे कि संसद कुछ नहीं कर सकती, लेकिन अब लोगों को समझ आ गया है कि जो संसद कर सकती है, वह कोई दूसरा नहीं कर सकता।

अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण ने किया एकीकृत

कश्मीर मामलों के जानकार अहमद अली फैयाज ने कहा कि मैं जो देख और समझ रहा हूं, उसके मुताबिक आपको बता रहा हूं कि कश्मीर के लोगों को पता चल गया है कि अब वहां भी भारतीय संविधान के मुताबिक शासन होगा। इसलिए संसद में उन्हें अपनी एक मजबूत और समझदार आवाज चाहिए, चाहे वह नेशनल कॉन्फ्रेंस की हो या भाजपा की या फिर पीडीपी की।

यही कारण है कि इस बार यहां लोकसभा चुनाव को लेकर पहले से ही ज्यादा उत्साह है। लोग इसे गंभीरता से ले रहे हैं। उन्हें पता चल गया है कि संसद में ही असली ताकत है और संसद में जो अपने साथ दूसरों को जोड़ेगा, वही जीतेगा। उसकी आवाज ही सुनी जाएगी और यह सब संभव हुआ है अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण से। इसने कश्मीरियों को राजनीतिक रूप से भी भारत के साथ एकीकृत किया है।

संसद में अपनी आवाज दमदार चाहिए

समाजसेवी सलीम रेशी ने कहा कि पहले लोग कहते थे कि हमारा चुनाव या भारतीय संविधान से वास्ता नहीं है, अब सभी हां, भाई हां कह रहे हैं। कश्मीरियों में कहीं न कहीं मुख्यधारा से विमुखता का भाव जगाने वाला, उन्हें पूरे देश से अलग होने का अहसास देने वाला अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान अब नहीं है।

कश्मीर में लोग अब मानते हैं कि उन्हें जो मिलना है, संसद से मिलना है, इसलिए वहां अपनी आवाज दमदार चाहिए। कईयों को लगता है कि यहां के पांच सांसद क्या करेंगे तो उन्हें जवाब मिलता है कि अकेले सैफूदीन सोज ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी थी।

श्रीनगर में 28 वर्ष बाद रिकॉर्ड मतदान

लोकसभा चुनाव के चौथे चरण के लिए जम्मू-कश्मीर में सोमवार को श्रीनगर संसदीय क्षेत्र में पिछले 28 वर्ष में सबसे ज्यादा 38.30 प्रतिशत मतदान हुआ। इससे पहले वर्ष 1996 में इस सीट पर 40.94 प्रतिशत वोट पड़े थे। वर्ष 1989 में आतंकी हिंसा शुरू होने के बाद से यह अब तक का दूसरा बड़ा मतदान कहा जा सकता है।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है। मतदान केंद्रों में मतदाताओं की भीड़ व उनमें उत्साह बता रहा था कि कश्मीर की जनता पांच अगस्त, 2019 के केंद्र सरकार के फैसले पर अपनी सहमति की मुहर लगा चुकी है।

श्रीनगर सीट पर कब कितना मतदान

  • वर्ष      मतदान प्रतिशत

  • 2024 : 38.30
  • 2019 : 14.43
  • 2014 : 25.86
  • 2009 : 25.55
  • 2004 : 18.57
  • 1999 : 11.93
  • 1998 : 30.06
  • 1996 : 40.94
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