देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के लिए उत्तर प्रदेश में अब तक का सर्वाधिक मतदान
देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के लिए उत्तर प्रदेश में अब तक का सर्वाधिक 59 फीसद से अधिक मतदान रहा है।
लखनऊ [अजय जायसवाल]। मतदाताओं आपको बधाई और भारत निर्वाचन आयोग को भी। आग उगलते सूरज की तपिश की परवाह किए बगैर आपने जम्हूरियत के इम्तिहान में पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़, अबकी और बड़ी लकीर खींचते हुए इतिहास रच दिया है। मजबूत लोकतंत्र के लिए पसीना बहाते आपने अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को बखूबी निभाया। नतीजा सामने है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद के लिए सूबे में अब तक का सर्वाधिक 59 फीसद से अधिक मतदान रहा है।
वैसे तो आजादी के बाद से लोकसभा के लिए 16 मर्तबा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन 17वीं लोकसभा के लिए अप्रैल-मई की भीषण गर्मी में हुए मतदान ने नया कीर्तिमान बनाया है। सूबे की 80 लोकसभा सीटों के लिए अबकी तकरीबन 59 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। अब इसे मोदी फैक्टर का असर कहें या फिर भारत निर्वाचन आयोग के बेहतरीन प्रयासों से मतदान के प्रति फैली जागरूकता का नतीजा। न केवल पथरीले बुंदेलखंड की बांदा, हमीरपुर जैसी लोकसभा सीटों पर बल्कि बड़े शहरों के मतदाताओं ने भी मतदान केंद्रों के बाहर लंबी-लंबी लाइनों में मुस्तैदी से लगकर पिछले चुनाव के न्यूनतम मतदान के कलंक को अबकी और धोने का काम किया है।
राजधानी लखनऊ के मतदाताओं ने भी पिछली बार के 53.02 फीसद से कम मतदान नहीं होने दिया। पारा चढऩे के बावजूद वे घरों से निकले और मतदान के पिछले साढ़े चार दशक से भी पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया। बुंदेलखंड के पथरीले इलाके के वोटर भी खासतौर पर बधाई के हकदार हैं, जिन्होंने अबकी पिछली बार से कहीं अधिक वोट दिए। मसलन, बांदा सीट पर पिछली बार से 7.14 फीसद और हमीरपुर सीट पर 5.94 फीसद वोटिंग में इजाफा हुआ है।
अबकी चुनाव में युवाओं ने भी खासा उत्साह दिखाया। गौरतलब है कि कुल मतदाताओं में 18 से 29 वर्ष तक के युवा मतदाताओं की हिस्सेदारी 26.61 फीसदी यानि तकरीबन पौने चार करोड़ है। इतना ही नहीं अगर 39 वर्ष से कम उम्र के मतदाताओं को देखा जाए तो वह 53.10 फीसदी यानी 7.46 करोड़ हैैं। पिछले पांच वर्ष के दरमियान हर सीट पर मतदान बढ़ाने में युवा मतदाताओं की भी अहम भूमिका दिखती है।
अब भले ही 75 फीसदी मतदान का लक्ष्य लेकर चलने वाला चुनाव आयोग 'फर्स्ट डिवीजन' अबकी भी पास नहीं हो सका है लेकिन, पहले की तुलना में रिकॉर्ड मतदान के लिए आयोग बधाई का पात्र तो है ही। उल्लेखनीय है कि अब तक गर्मियों में हुए आम चुनावों में पिछली बार 2014 में 50 फीसदी से अधिक 58.35 फीसदी मतदाताओं ने वोट किया था। 'फर्स्ट डिवीजन' यानि 60 फीसद से ज्यादा न सकी लेकिन, अबकी उससे भी अधिक रिकॉर्ड मतदान से यह तो साफ है कि मतदाता जागरूकता अभियान और मतदाता सूची आदि को लेकर आयोग के प्रयासों में कुछ कमियां भले ही रह गई हों, लेकिन कुल मिलाकर उसने जो कार्य किया वह सराहनीय है।
'मोदी लहर' ने तोड़ा था 'इंदिरा लहर' का रिकॉर्ड
आजादी के बाद वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 16वीं लोकसभा के लिए 2014 के चुनाव में सर्वाधिक मतदान वर्ष 1980 में 56.92 फीसदी रहा है। आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्र्रेस की वापसी हुई थी। वैसे इससे पहले वर्ष 1977 में हुए चुनाव में 56.44 फीसदी वोट पड़े थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर में जहां 55.81 फीसदी वोट पड़े थे, वहीं 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए 55.49 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते रिकॉर्ड 58.35 फीसद वोटिंग हुई थी।
ज्यादा मतदान में ही भाजपा का कल्याण!
लोकतंत्र की मजबूती के लिए अधिक से अधिक मतदान का तो महत्व है ही, कम-ज्यादा मतदान का सीधा असर विभिन्न पार्टियों की हार-जीत में भी दिखाई देता रहा है। कम मतदान जहां औरों के लिए फायदेमंद वहीं भाजपा के लिए खतरे की घंटी माना जाता रहा है। पूर्व के चुनावी नतीजे बताते हैं कि जिन सीटों पर अधिक मतदान रहा उन पर भाजपा को कहीं अधिक सफलता मिली।
सोलहवीं लोकसभा के लिए 2014 के चुनाव में मोदी लहर के चलते जहां आजादी के बाद सर्वाधिक 58.35 फीसदी मतदान हुआ था वहीं भाजपा ने 80 में से अकेले 71 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। उससे पहले 2009 के चुनाव में सूबे की जिन 10 सीटों को ही भाजपा जीतने में कामयाब रही थी उनमें से आधी सीटों (पीलीभीत, बरेली, बलरामपुर, बुलंदशहर व महराजगंज) पर 50 फीसद से ज्यादा वोटिंग रही थी।
2004 के चुनाव में औसतन 48.15 फीसद, 1999 के चुनाव में 53.74 फीसद और 1998 के चुनाव में 55.5 फीसद मतदान हुआ था। गौरतलब है कि 2004 में जहां भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी वहीं उससे पहले के दोनों चुनाव में पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही। 1999 के चुनाव में भाजपा 29 सीटों में से 14 ऐसी सीटें जीती थी जहां 50 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े थे। 1998 में 47 उन सीटों पर कमल खिला था जहां 50 फीसदी से ज्यादा मतदान रहा था। यही कारण रहा कि 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी भाजपा की पूरी कोशिश ज्यादा से ज्यादा मतदान कराने की ही रही।
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