बुलंदशहर से 1952 में कांग्रेस के दो सांसद चुने गए, बाद में लगातार पांच बार जीती भाजपा
बुलंदशहर लोकसभा सीट पर दूसरे चरण के तहत 18 अप्रैल को मतदान होना है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा से वर्तमान सांसद भोला सिंह और बसपा से योगेश वर्मा मैदान में हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। बुलंदशहर लोकसभा क्षेत्र में चुनावी बयार अपने शीर्ष पर है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने वर्तमान सांसद भोला सिंह को दोबारा टिकट दिया है। गठबंधन के तहत बसपा के खाते में आई इस सीट पर उसकी तरफ से योगेश वर्मा ने चुनौती पेश की है। इसी तरह कांग्रेस की ओर से बंशी सिंह भी मैदान में उतर आए हैं। इन सबके अलावा 4 निर्दलीय प्रत्याशी और 6 अन्य छोटे दलों के उम्मीदवारों के आने से यह संघर्ष रोमांचक हो गया है। इस सीट पर दूसरे चरण के तहत 18 अप्रैल को मतदान होना है। आज हम आजादी के बाद से अभी तक इस सीट से जुड़े राजनीतिक इतिहास बयां कर रहे हैं-
कांग्रेस की लहर में जीते दो प्रत्याशी
1952 में पहली लोकसभा के गठन की खातिर हुए चुनाव के दौरान देश भर में कांग्रेस की तूती बोल रही थी। आजादी के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव था। तब यह सीट बुलंदशहर जिला के नाम से जानी जाती थी। कांग्रेस ने यहां से दो प्रत्याशी कन्हैया लाल बाल्मीकि और रघुबर दयाल को चुनाव लड़ाया। इन दोनों को ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन समेत सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ के उम्मीदवारों ने चुनौती पेश की, लेकिन कांग्रेस की लहर में विपक्षी उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के दोनों नेताओं को विजेता घोषित किया गया। इसी तरह 1957 के दूसरे चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़े तत्कालीन सांसद कन्हैया लाल और रघुबर दयाल को जीत हासिल हुई।
PSP और RPI ने कांग्रेस की नाक में दम किया
1962 के चुनाव में कांग्रेस ने सुरेंद्र पाल सिंह को चुनाव लड़ाया। यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (PSP) और रिपब्लिकन पार्टी (RPI) ने भी अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। इन दोनों दलों के अलावा जनसंघ ने भी उम्मीदवार खड़ा कर कांग्रेस के लिए चुनाव चुनौतीपूर्ण बना दिया। नतीजतन यहां का चुनाव बेहद रोमांचक हो गया। कांग्रेस के सुरेंद्र पाल सबसे ज्यादा 79925 वोट पाकर विजेता जरूर बने, लेकिन कांग्रेस को पता चल गया कि आने वाले चुनाव आसान नहीं रहने वाले हैं। प्रजा सोशलिस्ट दूसरे और रिपब्लिकन पार्टी तीसरे स्थान पर रही, जबकि जनसंघ को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। 1967 के चुनाव में भी कांग्रेस ने तत्कालीन सांसद सुरेंद्र पाल सिंह पर भरोसा जताकर टिकट थमा दिया। सुरेंद्र ने पार्टी के भरोसे को कायम रखते हुए जीत हासिल की। यहां से रिपब्लिकन पाटी दूसरे स्थान पर रही। इसी तरह 1971 के चुनाव में भी कांग्रेस के सुरेंद्र पाल सिंह लगातार तीसरी बार यहां से चुनकर संसद पहुंचे। भारतीय जनसंघ, भारतीय क्रांति दल समेत अन्य दलों को भारी अंतर से हार झेलनी पड़ी।
पांच बार जीतने वाली कांग्रेस लोकदल से हार गई
1977 के चुनाव में बुलंदशहर की हवा बदल गई। यहां से लगातार पांच बार से जीत रही कांग्रेस को जनता ने इस बार समर्थन नहीं दिया। राजनीतिक वजूद स्थापित करने में जुटी भारतीय लोकदल के प्रत्याशी महमूद हसन खान को जनता ने समर्थन देकर 292611 वोटों के साथ विजेता बना दिया। तीन बार से लगातार यहां के सांसद रहने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेंद्र पाल सिंह को पहली हार देखनी पड़ी। सुरेंद्र दूसरे स्थान पर रहे। 1980 के चुनाव में महमूद हसन खान जनता पार्टी सेक्युलर की ओर से चुनाव लड़े और दोबारा सांसद बने। इंदिरा कांग्रेस के प्रत्याशी को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस के गिरते जनाधार को सुरेंद्र ने फिर थामा
1984 के लोकसभा चुनाव में बुलंदशहर की जनता ने फिर मूड बदला और कांग्रेस को समर्थन दिया। दो बार से लगातार इस सीट से बुरी तरह हार रही कांग्रेस के खाते में यह सीट फिर चली गई। कांग्रेस प्रत्याशी और तीन बार लगातार सांसद रह चुके सुरेंद्र पाल सिंह 228039 वोटों के साथ विजेता बने। लोकदल प्रत्याशी दूसरे स्थान पर और जनता पार्टी के प्रत्याशी को तीसरा स्थान मिला। 1989 के चुनाव में जनता ने फिर मन बदला और कांग्रेस की बजाय जनता दल प्रत्याशी सरवर हुसैन को सबसे अधिक 241188 वोट देकर सांसद बनाया। कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेंद पाल दूसरे नंबर पर रहे। यहां पर बहुजन समाज पार्टी ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए तीसरे पर आई।
भाजपा की लहर चली, लगातार पांच बार जीती
1991 के लोकसभा के चुनाव के दौरान प्रदेश भर में भारतीय जनता पार्टी ने जोरदार अभियान चलाकर जनाधार बढ़ाया। इसके फलस्वरूप पहली बार बुलंदशहर सीट से भाजपा को फतह हासिल हुई। भाजपा प्रत्याशी छत्रपाल ने सबसे ज्यादा 163929 वोट पाकर कांग्रेस के इम्तियाज मोहम्मद खान को शिकस्त दी और यह सीट अपने नाम की। जनता दल तीसरे और बहुजन समाज पार्टी चौथे स्थान पर रही। 1996, 1998, 1999 में भी भाजपा के छत्रपाल ने लगातार चार बार विपक्षी प्रत्याशियों को धूल चटाते हुए शानदार जीत दर्ज की। 2004 में भाजपा की ओर कल्याण सिंह इस सीट पर चुनाव लड़े और भारी मतों से विजयी बने। इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की यह लगातार पांचवीं जीत रही।
सपा के लिए कमलेश ने खोला खाता
बुलंदशहर सीट से जनता ने 2009 में अपना मन बदलकर भाजपा को समर्थन नहीं दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि यहां से लगातार पांच बार से जीत रही भाजपा को छठी बार करारी हार का सामना करना पड़ा। इस क्षेत्र में लंबे समय से अपने वजूद के लिए लड़ रहे सपा उम्मीदवार कमलेश ने सर्वाधिक 236257 वोट पाकर जीत हासिल की। भाजपा के अशोक कुमार प्रधान 170192 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। बसपा के राजकुमार गौतम 142186 वोटों के साथ तीसरे नंबर और कांग्रेस के देवी दयाल 100065 वोटों के साथ चौथे नंबर रहे। 16वीं लोकसभा के गठन के लिए 2014 में हुए चुनाव के दौरान बुलंदशहर की जनता ने एक बार फिर भाजपा के उम्मीदवार भोलासिंह 604449 वोट देकर विजेता बनाया। पिछली बार यहां से जीती समाजवादी पार्टी को तीसरा स्थान मिला, जबकि बहुजन समाज पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
अहिबरन राजा का घर है बुलंदशहर
काली नदी के किनारे बसे बुलंदशहर को प्राचीन समय में बरन के नाम से जाना जाता था। इसका इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। इस शहर की स्थापना अहिबरन नाम के राजा ने की थी। बुलंदशहर उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। अनूपशहर, खुर्जा, स्याना, डिबाई, सिकंदराबाद और शिकारपुर यहां के प्रमुख नगर हैं। मड किला और क्लॉक टॉवर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से इसकी दूरी लगभग 517 किलोमीटर है और दिल्ली से इसकी दूरी करीब 132 किलोमीटर है।