Lok Sabha Election 2019 : बांसगांव के चक्रव्यूह में भाजपा और बसपा के बीच सीधी टक्कर
ग्राउंड रिपोर्ट बांसगांव संसदीय क्षेत्र भाजपा के कमलेश पासवान जीत की हैट्रिक के लिए जोर लगा रहे हैं तो सदल प्रसाद गठबंधन के दम से हाथी चढ़कर दिल्ली दरबार पहुंचना चाहते हैं।
लखनऊ [आनन्द राय]। बांसगांव संसदीय क्षेत्र को दूसरे आम चुनाव से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है। 2008 के परिसीमन में नेताओं के लाख प्रयास के बावजूद यह सीट सामान्य श्रेणी में नहीं आ सकी, पर यहां का चुनाव प्रचार हमेशा असामान्य रहा। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के मोलहू प्रसाद साइकिल से चलकर खजड़ी बजाते, गीत गाते-गाते चुनाव जीत गए। अब चुनावी समर में लग्जरी गाड़ियों का काफिला, धनबल और बाहुबल का जोर आ गया है। बांसगांव में भाजपा उम्मीदवार कमलेश पासवान अपनी जीत की हैट्रिक के लिए जोर लगा रहे हैं तो पिछली बार उनके मुकाबिल रहे पूर्व मंत्री सदल प्रसाद गठबंधन के दम से 'हाथी' चढ़कर 'दिल्ली दरबार' पहुंचना चाहते हैं। कांग्रेस उम्मीदवार कुश सौरभ का नामांकन खारिज हो जाने से बांसगांव के चक्रव्यूह में सीधी टक्कर दिख रही है।
गोरखपुर की तीन (चौरीचौरा, बांसगांव, चिल्लूपार) और देवरिया जिले की दो (रुद्रपुर, बरहज) विधानसभा सीटों को मिलाकर बने बांसगांव संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज समझ पाना आसान नहीं है। पहले आम चुनाव में यहां के लोगों ने प्रख्यात शायर रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी' को चौथे नंबर पर कर दिया तो फिर वह चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके। राजीव गांधी और मनमोहन सरकार में मंत्री रहे महावीर प्रसाद यहां 1980, 1984 और 1989 में लगातार जीते लेकिन, बाद में उनकी स्थिति कमजोर हो गई। 2004 में महावीर फिर जीते लेकिन, 2009 में उन्हें हराने का श्रेय भाजपा के कमलेश पासवान को मिला।
चुनावी माहौल जानने के लिए अतीत के कुछ पहलुओं पर नजर डालना जरूरी है। बांसगांव कस्बे में 25 मार्च, 1996 की शाम सपा के लोकसभा उम्मीदवार और बाहुबली विधायक ओमप्रकाश पासवान को सभा को संबोधित करते समय विरोधियों ने बम से उड़ा दिया था। इस घटना में पासवान के साथ कई और लोग भी मारे गए फिर सपा ने ओमप्रकाश की पत्नी सुभावती पासवान को उम्मीदवार घोषित किया और उन्होंने भाजपा सांसद राजनारायण पासी को हरा दिया। ओमप्रकाश और सुभावती के पुत्र कमलेश पासवान की उम्र तब चुनाव लडऩे योग्य नहीं थी। बाद में वह विधायक बने और 2009 और 2014 में भाजपा के टिकट पर बांसगांव से सांसद चुने गए। बांसगांव सीट पर उनके भाई विमलेश पासवान विधायक हैं। माता-पिता की विरासत के साथ कमलेश पासवान ने परिवार को भी आगे बढ़ाया है। उनसे नाराज चल रहे लोगों को एकजुट कर पूर्व मंत्री सदल प्रसाद इस बार परिणाम बदलने की कवायद में जुट गए हैं।
ऐसे बन रहा समीकरण
बांसगांव क्षेत्र में राप्ती तीरे बसे गरयाकोल गांव के सुशील राव शिक्षामित्र से प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक बने थे लेकिन, कोर्ट के फैसले से हटा दिए गए। अब वह भाजपा के विरोध में खड़े हैं। सदल प्रसाद इसी तरह की नब्ज पकडऩे की कोशिश में हैं लेकिन, संगठन और अपनी व्यक्तिगत पकड़ के बल पर कमलेश हर मुश्किल की काट तलाश रहे हैं। गरयाकोल के ही ज्वाला तिवारी ने भाजपा का झंडा उठा लिया है। ज्वाला के लिए अहम फैक्टर मोदी हैं, क्योंकि उनके नजरिए से राष्ट्रवाद, देश की सुरक्षा, विकास और भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए मोदी का फिर पीएम बनना जरूरी है। चिल्लूपार क्षेत्र पंडित हरिशंकर तिवारी के नाम से जाना जाता है। उनके पुत्र विनय शंकर तिवारी इस क्षेत्र के बसपा विधायक हैं। जाहिर है कि बसपा उम्मीदवार सदल के लिए यह क्षेत्र उम्मीदों भरा है इसीलिए जनसंपर्क और प्रबंधन में कमलेश का भी पूरा जोर इस क्षेत्र में है।
दोनों के पक्ष में गोलबंदी
गोरखपुर-वाराणसी मार्ग अब फोरलेन बन रहा है। निर्माण की वजह से इस राह पर चलने वाले यात्री अभी सरपट मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हैं। बांसगांव संसदीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा इसी मार्ग पर पड़ता है। गोरखपुर से चलकर 30 किलोमीटर की दूरी तय करने पर कौड़ीराम कस्बा पड़ता है। इस कस्बे से दायीं तरफ सड़क बांसगांव के लिए मुड़ती है, जबकि बायीं तरफ पांच हजार वर्ष पुराना बुद्ध कालीन सोहगौरा गांव है। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव द्विजेंद्र राम त्रिपाठी इसी गांव के हैं और उनकी वजह से यहां का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद दिखता था।
कांग्रेस के उम्मीदवार का नामांकन निरस्त होने से भाजपा-बसपा में लोग बंट गये हैं। कौड़ीराम कस्बे में सोहगौरा, लालपुर, बघराई, बिशुनपुर, धनौड़ा, पाली से लेकर आसपास के दर्जनों गांवों के लोग जुटते हैं। अवनीश राय कहते हैं कि कई बार कड़वा घूंट पीना पड़ता है। हम तो मोदी की वजह से भाजपा उम्मीदवार को वोट देंगे लेकिन बांसगांव के अग्निवेश की आस्था अखिलेश यादव में है। सपा के इश्तियाक और बसपा के ब्रजेश सिंह भी पूरी ताकत से गठबंधन जिंदाबाद करने में लगे हैं। शिक्षक नेता दिग्विजय नारायण राय कहते हैं कि इस बार दावा कोई कुछ भी करे बांसगांव का परिणाम चौंकाने वाला होगा।
दलितों में भी बिखराव
आरक्षित सीट होने के बावजूद जातीय समीकरण पर जोर है। यादव, मुस्लिम और दलित को बसपा उम्मीदवार के पक्ष में जोडऩे की जुगत है लेकिन, बड़ी तादाद में पासी समाज होने की वजह से कमलेश दलितों में अपना पलड़ा भारी करने में जुटे हैं। पड़ोसी जिले देवरिया के बरहज और रुद्रपुर में क्षत्रिय, यादव और दलितों में भी दोनों उम्मीदवार अपना-अपना जोर लगाए हैं। रुद्रपुर के भाजपा विधायक जयप्रकाश निषाद और बरहज के भाजपा विधायक सुरेश तिवारी कमलेश के पक्ष में गोलबंदी कर रहे हैं। रुद्रपुर में मोदी की सभा से भी कमलेश को ताकत मिली, लेकिन ठीक अगले दिन गोरखपुर में मायावती और अखिलेश यादव की साझा रैली ने सदल प्रसाद के लिए भी माहौल बना दिया।
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