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Lok Sabha Election 2024: जागो भाग्यविधाता...संख्याबल से पांसा पलट सकते हैं पहली बार मतदान कर रहे 1.84 करोड़ युवा मतदाता

Lok sabha Election 2024 अपने संख्याबल से आम चुनाव 2024 में पांसा पलटने की ताकत रखते हैं Young Voters। आम चुनाव 2024 में 18 वर्ष के आस-पास की आयु वाले 1.84 करोड़ युवा मतदाता पहली बार वोट दे रहे हैं। तभी हरसंभव कोशिश कर रहे हैं राजनीतिक दल कि वोट देने के लिए घर से निकल आएं नए भाग्यविधाता। मनीष त्रिपाठी का आलेख...।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Published: Sun, 28 Apr 2024 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2024 06:00 AM (IST)
Lok sabha Election 2024: आम चुनाव 2024 में युवा मतदाता अपने संख्याबल से पांसा पलटने की ताकत रखते हैं।

Lok sabha Election 2024: सैटेलाइट चैनल्स से लेकर स्मार्टफोन स्क्रीन तक, यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर कॉलेज कैंटीन तक, इन दिनों छाए हुए हैं ‘बनेगा देश महान’ और ‘वोट फॉर द गोट’ जैसे युवाओं को बुलाते-लुभाते संदेश। अवसर है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महान उत्सव अर्थात आम चुनाव का और उससे भी बढ़कर इस उत्सव में पहली-पहली बार आ रहे नवयुवा मतदाताओं का। स्वागत गीत तो बजेंगे ही, लेकिन जरा इनके शब्द और संगीत तो देखिए?

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चुनाव आयोग से लेकर राजनीतिक दलों के संगीतमय वीडियो तक किसी रॉक बैंड की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं, इनके मॉडल्स का लुक रैप स्टार्स जैसा क्यों है? दरअसल सारी कवायद युवा मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने की है। इसीलिए जोर उनको समकालीन-लोकप्रिय संस्कृति और संगीत से आकर्षित करने पर है। दो चरणों के मतदान में घटते वोट प्रतिशत के बाद प्रत्याशियों और आयोग की पेशानी पर बल भी हैं, कि आखिर नवयुवा मतदाताओं को क्या चाहिए और वे बाहर निकलने को कैसे राजी होंगे?

चुनाव में युवाओं को आकर्षित करने की कवायद

18 साल के किसी युवा को क्या चाहिए? इस सवाल का सीधा-सरल-सटीक जवाब किसी के पास नहीं है मगर पीढ़ीगत अनुभव से उपजा एक औसत अनुमान अवश्य है- वह है सपने, साथ देने का साहस और समाज को बदलने की सोच। किशोरावस्था की सपनीली उम्र से यौवन के साहसिक पड़ाव में प्रवेश करता यह विशिष्ट आयुवर्ग इन तीन गुणों की वजह से सैन्य बलों और राजनीतिक दलों के लिए प्रथम वरीयता रहा है। युवाओं की यह नई पौध स्वीकार्यता की आशा में नेतृत्व की लालसा भी रखती है और नायक पूजा भी करती है।

यदि आप उन पर विश्वास करें और विश्वास दिला सकें तो वे आप पर कई गुना विश्वास करेंगे और इस कदर निष्ठावान सिद्ध होंगे कि कोई तर्क-वितर्क-कुतर्क अथवा प्राणों का भय भी उन्हें आपसे विमुख नहीं कर सकता। विश्व की तमाम क्रांतियां, युद्ध, संघर्ष, जन-आंदोलन और सत्ता परिवर्तन इसी शक्ति से संभव हुए हैं, तो क्या आश्चर्य कि सत्ता की सुनहरी चाबी पाने के लिए विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में राजनीतिक दलों ने आम चुनाव 2024 का सबसे बड़ा दांव युवा मतदाताओं, विशेषकर पहली बार मतदान कर रहे सद्यःयुवाओं पर खेला है!

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सभी दल हैं प्रयास में

पक्ष-प्रतिपक्ष के अपने प्रसंग हो सकते हैं, मगर इस एक तथ्य से तो सभी सहमत हैं कि युवा मतदाता ही वास्तविक भाग्य विधाता हैं। यदि वे आश्वस्त हो जाएं तो स्वयमेव ही आपके लिए मतदाता से बढ़कर प्रबल पक्षधर और एकनिष्ठ प्रचारक की भूमिका में आ जाते हैं। आवश्यकता है तो इस बात की कि उन्हें सही और समय रहते संदेश दे दिया जाए। निर्विवाद रूप से राष्ट्रवाद के रथ पर सवार और स्तब्धकारी रणनीति बनाने में अग्रणी भारतीय जनता पार्टी ने इसमें निपुणता प्राप्त कर ली है।

2019 के चुनाव में थी युवाओं की बड़ी भूमिका

वर्ष 2019 के आम चुनाव में इसकी विजय में युवा मतदाताओं की बड़ी भूमिका रही और वह भी तब, जब सकल मतदान प्रतिशत बहुत संतोषजनक नहीं था। वर्तमान आम चुनाव से तीन वर्ष पूर्व ही संकेत दृष्टिगत होने लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी इस विशाल वर्ग पर बड़ा दांव लगाने जा रही है,वहीं इसकी प्रमुख आलोचक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी शतरंज की बिसात बिछा दी थी। अपने-अपने प्रयास और परासभर प्रत्येक राजनीतिक दल लगभग पौने पांच करोड़ नवयुवाओं को ‘प्रथम मतदाता’ में परिवर्तित करना चाहता था, परंतु 1.84

करोड़ ने ही इसके लिए पंजीकरण करवाया। निश्चित ही अगर वे मतदान के लिए दृढ़भाव से निकल सके, तो यह संख्या भी अत्यंत पुष्टिकारक अथवा परिवर्तनकारी सिद्ध होगी।

मन की बात का मध्यांतर

युवाओं का मन जीतना है तो उनके मन को समझकर ही अपने मन की बात सुनानी होगी। उन पर कुछ भी थोपने के स्थान पर उत्साहपूर्ण सहभागिता का भाव उत्पन्न करना होगा। युवा मनोविज्ञान का यह सिद्धांत 73 वर्षीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस कुशलता से आत्मसात किया है, वह उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए बहुत बड़ी सीख है। उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की यह आंतरिक परियोजना 2014 से निरंतर गतिमान है और अब जब सभी प्रतिद्वंद्वी जैसे हड़बड़ा कर उठे हैं, कारवां उनसे कोसों दूर निकल चुका है।

शुरुआत 10 साल पहले ‘मन की बात’ से हुई थी और मध्यांतर हुआ है 2024 के ‘इलेक्शन मैनिफेस्टो’ अर्थात चुनाव घोषणापत्र में, जिसके लिए नरेन्द्र मोदी ने 25 जनवरी को चार-पांच हजार नहीं बल्कि प्रथम बार मतदान करने जा रहे लगभग 30 लाख युवाओं से कहा कि वे नमो एप पर उन्हें भाजपा के चुनाव घोषणापत्र के लिए सुझाव भेजें। 5800 स्थानों पर जुटे इन युवाओं से वर्चुअली जुड़े नरेन्द्र मोदी ने कहा था ‘आप इस प्रक्रिया में शामिल होकर निर्देशित करें कि भाजपा का घोषणापत्र कैसा हो।

युवाओं को दी वोटिंग की जिम्मेदारी

आपकी जिम्मेदारी है कि खुद भी वोट दें, दूसरों को भी प्रेरित करें और जो छूट गए हैं उनका नाम मतदाता सूची में जुड़वाने में उनकी सहायता करें।’ शब्दों और संवाद संप्रेषण पर गौर करें, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और राजनीतिक दल के प्रधान नवयुवाओं में सहभागिता, प्रेरणा और सहायता का भाव भर रहे हैं और यह आश्वस्ति भी कि उनके सपनों का भारत उनके अनुसार आकार लेगा।

इसे चुनावी चुग्गा या ताश का महल कहकर खारिज नहीं किया जा सकता, यह तो वस्तुत: वह पुख्ता किला है, जिसकी नींव उन्होंने ‘परीक्षा पे चर्चा’, ‘युवा संगम’, ‘मेरा युवा भारत’, ‘कौशल विकास’, ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘जी-20 यूनिवर्सिटी कनेक्ट’, ‘अमृत पीढ़ी’ जैसे अनेकानेक उदाहरणों-कार्यक्रमों से वर्षों में पुख्ता की है।

जगाई राष्ट्रीय गौरव की भावना

श्रीराम मंदिर से चंद्रयान-3 तक उन्होंने प्रत्येक आयोजन-अभियान को राष्ट्रीय गौरव की जिस भावना से जोड़ा है, मुद्रा ऋण से लेकर संकटग्रस्त देशों से विद्यार्थियों की वापसी तक साथ खड़े नजर आए हैं, वह नरेन्द्र मोदी को निश्चित ही अजेय छवि प्रदान करते हुए युवाओं की नायक की खोज को पूरा करता है। एनसीसी के कैडेट्स हों या

पदक जीतकर लौटते खिलाड़ी, विश्वकप में शिथिल हुए भारतीय क्रिकेटर हों या चंद्रयान द्वितीय के चूक जाने पर सिसकते विज्ञानी, हर्ष और विषाद में सबके साथ खड़े होने का यह गुण उन्हें युवाओं के बीच अपने जैसा बनाता है।

युवाओं की रुचियों को समझा

तभी तो आम चुनाव की घोषणा से सात दिन पूर्व वे जब सात लोक कल्याण मार्ग पर सात गेमर्स के साथ ‘वाइब’ चेक कर रहे थे, इस समूह में शामिल एक महिला गेमर पायल धारे ने कहा, ‘उनसे मुलाकात के बाद मुझे हम दोनों के बीच आयु का कोई अंतर नहीं महसूस हुआ।’ युवाओं की ऐसी ही रुचियों को समझकर पीढ़ी अंतराल का विभेद उन्होंने किस कौशल से मिटाया है, इसे इंटरनेट मीडिया के लिए प्रथम राष्ट्रीय क्रिएटर पुरस्कार में महसूस किया जा सकता था, जहां युवाओं के चहेते कंटेट क्रिएटर्स में से एक राज शमानी (इंस्टाग्राम फालोवर-20 लाख) ने नरेन्द्र मोदी का परिचय कराते हुए कहा, ‘उनकी रील प्रचलित होती हैं, ट्वीट्स ट्रंेडिंग होते हैं और स्लोगन हैशटैग बन जाते हैं…। वे इनफ्लुएंसर्स के इनफ्लुएंसर हैं!’

युवाओं को जोड़ने का अभियान

तो क्या केवल भाजपा ही युवा मन को साध पाई है? उत्तर है ‘नहीं’ और एक वाक्य में विश्लेषण है कि इसने इस अभियान में ‘प्रयास, प्रसार और प्रचार’ की व्यापक रणनीति अपनाई है। वस्तुत: इसमें इसे केंद्र सहित अनेक राज्यों में सरकार अथवा सहयोगी सरकार होने का लाभ मिला है। भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी इस दिशा में यथासंभव जुटी हुई है। फर्क केवल टाइमिंग, परफार्मेंस, कार्यकर्ताओं की उपलब्धता और क्षत्रपों के पारस्परिक तालमेल का है। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को देखें तो तस्वीर एकदम साफ हो जाती है कि कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए वे किस तरह युवाओं से मिलते-ठहरते

हुए पूरा देश नाप रहे थे।

बेरोजगारी के मुद्दे पर युवाओं का मन टटोलती कांग्रेस

जहां भाजपा राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भर भारत के एजेंडा पर युवाओं में पैठ बना रही है, वहीं कांग्रेस बुनियादी जरूरतों, बेरोजगारी, अमीर-गरीब के अंतर की बात कर युवाओं का मन छूना चाहती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के इस स्वाभाविक से अंतर के बावजूद कोई भी दल अति आत्मविश्वास का शिकार बनकर सीटें नहीं गंवाना चाहता। तभी तो एक साल पूर्व छह अप्रैल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी की दो दिवसीय इंटरनेट मीडिया राष्ट्रीय कार्यशाला में इंटरनेट मीडिया के ‘योद्धाओं’ की भर्ती बढ़ाने, इनफ्लुएंसर्स से संवाद बढ़ाने, नवयुवाओं के लिए इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर रील्स की आवृत्ति को अधिकाधिक तीव्र करने की बात कही थी।

वजह साफ है, भाजपा को राष्ट्रीय-क्षेत्रीय मीडिया में खूब स्पेस मिलता है तो वहीं कांग्रेस की विशेषकर यूट्यूबर्स के रास्ते युवाओं में पैठ बढ़ी है। परिणाम यह है कि इंटरनेट मीडिया के विविध प्लेटफार्म्स पर युवाओं के बीच पहुंच और प्रचार का युद्ध राजनीतिक कार्यकर्ताओं से कहीं अधिक लाखों की फॉलोअर संख्या वाले इनफ्लुएंसर्स लड़ रहे हैं। वहां इस खेल का मजा ही यही है कि अपनी घोषित-अघोषित दलगत निष्ठाओं को राष्ट्रहित का मनोरंजक रूप देते हुए युवाओं को  ईवीएम तक ले जाया जाए!

वामन का पग विराट

भारत में मतदान की आयु को 21 वर्ष से घटाकर 18 की आयु पर ले आने संबंधी प्रस्ताव 13 दिसंबर 1988 को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री बी. शंकरानंद द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। संविधान में संशोधन का यह प्रस्ताव इतना क्रांतिकारी था कि इसके लिए संसद के विशेष बहुमत के साथ ही भारत के आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों की सहमति भी आवश्यक थी। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, नगालैंड, त्रिपुरा और तमिलनाडु इन पांच राज्यों को छोड़कर पूरे भारत ने इसके लिए हां भर दी और अंततः 28 मार्च 1989 से 18 वर्ष की आयु के युवा भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में मतदान के योग्य हो गए।

1.84 करोड़ युवा मतदाता पहली बार दे रहे वोट

भारत के भविष्य को इसका भाग्यविधाता बनाने का वह एक कदम आज 35 साल बाद वामन का एक पग बन गया है। आम चुनाव 2024 में 18 वर्ष के आस-पास की आयु वाले 1.84 करोड़ युवा मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं। अब इन्हें मिलाकर कुल 21 करोड़ युवा मतदाताओं (आयुवर्ग 18 से 29) की शक्ति का अनुमान लगाइए जो संख्याबल में भारत के कुल मतदाताओं का लगभग 22 प्रतिशत हैं। प्रचंड बहुमत की बात नहीं, बस छोटी सी कल्पना कीजिए कि चार-पांच हजार मतों के अंतर से हार-जीत वाली सीटों पर इनका

समर्थन क्या करिश्मा कर सकता है!

वोट से युवा तय करेंगे भारत का भाग्य

यह तो 4 जून को ही पता चलेगा कि अंतत: युवा जनादेश किसके पक्ष में रहा, मगर इसके लिए, भारत के भाग्य को लिखने के लिए, युवाओं को घर से निकलना ही होगा और ईवीएम मशीन का कोई एक बटन दबाकर उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सहभागिता करनी होगी, जो उन्हें किसी दान में नहीं बल्कि पूरे अधिकार से मिली है। याद रखिए, सोते हुए शेर के मुंह में हिरण अपने आप नहीं चला जाता, इसके लिए उसे भी उ‌द्यम करना पड़ता है। इसलिए उठें, जागें, मताधिकार का प्रयोग करें। आपकी अंगुली पर लगाई जाने वाली एक बूंद स्याही आपका और देश का भाग्य बदल सकती है!

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