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नेताजी! दूर करिए हेल्थ डिपार्टमेंट की खामी, सेवा से मुंह मोड़ रहा 'भगवान'

जीटी बेल्ट के लोकसभा क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बड़ा मुद्दा है। लाइफलाइन कहे जाने वाले जीटी रोड पर ट्रॉमा सेंटर की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 07:51 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 07:51 PM (IST)
नेताजी! दूर करिए हेल्थ डिपार्टमेंट की खामी, सेवा से मुंह मोड़ रहा 'भगवान'
नेताजी! दूर करिए हेल्थ डिपार्टमेंट की खामी, सेवा से मुंह मोड़ रहा 'भगवान'

पानीपत, जेएनएन। केंद्र और प्रदेश सरकार ने बुनियादी ढांचा मजबूत करने की कोशिश तो की, लेकिन हालात अभी भी संतुष्टिदायक नहीं। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी जहां सरकार के गले की फांस बनी हुई है, वहीं आमजन के लिए परेशानी। नियम कहता है प्रति हजार की जनसंख्या पर एकडॉक्टर होना चाहिए, लेकिन यहां एक डॉक्टर के कंधों पर कई-कई हजार लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी है। कई बार तो इलाज के लिए कई किमी. का सफर तय कर नागरिक अस्पताल पहुंचे लोगों को बिना इलाज कराए ही लौटना पड़ता है या फिर निजी अस्पताल की शरण लेनी पड़ती है। हां, आयुष्मान योजना कुछ मरहम लगाने वाली है।

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सरकार ने योजना के तहत 1370 बीमारियों में से 276 का इलाज सरकारी अस्पतालों में तय किया है। दिक्कत यह है कि इन सभी बीमारियों के इलाज के लिए भी हमारे अस्पतालों का ढांचा पूरी तरह से तैयार नहीं। जिला मुख्यालयों से सुदूर सीएचसी और पीएचसी में स्थिति और भी भयावह है। कहीं-कहीं तो एक डॉक्टर के कंधों पर कई-कई गांवों के इलाज का जिम्मा है। ऐसे ही हालात रेडियोलॉजिस्ट के भी हैं। विभिन्न मशीनें तो हैं, लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाले नहीं। पेश है हालात को बयां करती रिपोर्ट-

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ये भी जानें

  • सीएम सिटी करनाल में डॉक्टरों के स्वीकृत पद 295 हैं। यहां पर 70 डॉक्टरों की कमी है। 30 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर भी तैनात नहीं है।
  • पानीपत में करीब 14 लाख की आबादी पर एक जिला अस्पताल, सात सीएचसी, छह यूपीएचसी, 14 पीएचसी, 2 अर्बन हेल्थ सेंटर और 90 सब सैंटर हैं। इंफास्ट्रक्चर की बात करें तो आबादी के हिसाब से आधा है।
  • कुरुक्षेत्र में 106 चिकित्सा अधिकारियों के पदों में से 23 खाली हैं, अकेले एलएनजेपी अस्पताल में ही 13 डॉक्टरों की कमी है।
  • कैथल में पांच साल तक अल्ट्रासाउंड की मशीन उपलब्ध नहीं हुई। सिर्फ 19 चिकित्सक ही अस्पताल में कार्यरत
  • अंबाला शहर सिविल अस्पताल में बेड की संख्या 300 की जा रही है। यहां पर ट्रामा सेंटर में एक्सरे मशीन तो है, लेकिन यहां पर एक्सरे नहीं होते। अंबाला शहर स्थित टीबी अस्पताल में भी एक्सरे मशीन हैं, लेकिन चल नहीं रही। सीएचसी में एक्सरे मशीन हैं, लेकिन इनका लाभ भी नहीं मिल पा रहा। 
  • यमुनानगर में 141 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन सिर्फ 62 चिकित्सक हैं। इनमें से कई पर डिप्टी सिविल सर्जन का अतिरिक्त कार्यभार है। ऐसे में वह कागजी कार्रवाई में उलझे रहते हैं। 
  • जींद में 203 में से 141 डाक्टरों के पद खाली हैं। 

करनाल में स्वास्थ्य सेवाओं का ये हाल
करनाल में सरकार ने मेडिकल विवि पर काम शुरू कर दिया है। दूसरी ओर, इस समय कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज व नागरिक अस्पताल सहित जिले में 40 स्वास्थ्य केंद्र हैं। कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज और सिविल अस्पताल में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर नहीं हैं। हेड इंजरी के केसों को चंडीगढ़ और रोहतक पीजीआइ रेफर करना पड़ता है। सिविल अस्पताल में हर महीने 40 से 50 सड़क दुर्घटनाओं के मरीज आते हैं। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में भी हर माह 50 से 60 केस इलाज के लिए पहुंचते हैं। इनमें से ज्यादातर केस हेड इंजरी के शामिल होते हैं।  पानीपत में 200 बेड के सिविल अस्पताल दशकों पुराने 100 बेड के हिसाब से डॉक्टरों के 42 पद स्वीकृत हैं। इनमें से पांच पद रिक्त हैं। आठ डॉक्टर लंबे समय से छुट्टी पर हैं। दो डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं, दो ट्रेनिंग पर हैं। अस्पताल 200 बेड का है, इसके लिए लगभग 85 डॉक्टर होने चाहिए। जिले के करीब 190 गांवों पर डॉक्टरों के लिए केवल 123 स्वीकृत पद हैं। 80 डॉक्टर हैं, 43 पद खाली हैं। यहां 16 जुलाई 2018 से खराब है। कैथ लैब, एमआरआइ मशीन, प्राइवेट रूम, एमसीएच विंग, ब्लड बैंक तक नहीं है।

कुरुक्षेत्र में भवन तो खड़े कर दिए, लेकिन चिकित्सक की कमी
कुरुक्षेत्र में सरकार ने पांच साल में अस्पतालों के लिए नए भवन तो खड़े कर दिए, लेकिन चिकित्सकों की कमी को दूर नहीं कर पाया। जिले में 106 चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत पदों में से 23 पद आज भी खाली हैं। वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों की संख्या जहां नौ होनी चाहिए थी, उन पर भी सात ही वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी तैनात हैं। जिले के मुख्य सरकारी अस्पताल की करें तो यहां भी चिकित्सकों के 42 पदों में से 13 पद खाली पड़े हैं। सबसे बुरे हालात  प्रसूति विभाग के हैं। यहां एक समय में 90 से ज्यादा जच्चा-बच्चा दाखिल रहते हैं। दो स्त्री रोग विशेषज्ञ ही हैं।  बढ़ते बोझ के चलते तीन साल में दो स्त्री रोग विशेषज्ञ नौकरी छोड़ चुकी हैं। अस्पताल में अपर्याप्त दवा भी कोढ़ में खाज का काम कर रही हैं। लाइन में घंटों गुजारने के बाद आधी-अधूरी ही दवाएं मिलती हैं। पिछले दिनों मनोरोग विभाग में आने वाले मरीजों को दी जाने वाली दौरे और नींद तक की दवा उपलब्ध नहीं थी। 

कैथल में भी घटी चिकित्सकों की संख्या
कैथल में 2014 के मुकाबले 2019 में डॉक्टरों की संख्या घट गई है। अस्पताल में डॉक्टरों के 55 पद स्वीकृत हैं, लेकिन अब तक 29 से ज्यादा डॉक्टर अस्पताल को नहीं मिले हैं। वर्तमान में सिर्फ 19 डॉक्टर ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उप-सिविल सर्जन के आठ में से सात पद, पीएमओ का एक पद, कैथल मुख्य अस्पताल में एसएमओ के पांच में से एक पद, सीएचसी में एमएमओ के छह में से पांच पद, मुख्य अस्पताल में 55 में से 36 पद और सभी सीएचसी, पीएचसी में डॉक्टरों के 42 में से 43 पद खाली पड़े हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हाई कोर्ट में गांव बालू के ग्रामीणों का केस लड़ रहे गांव के ही वकील प्रदीप रापड़यिा का कहना है कि स्वास्थ्य केंद्र पर एक भी डॉक्टर नहीं है। हाई कोर्ट की फटकार के बाद भी ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।

अंबाला में दिखाई दे रहा सुधार
अंबाला की बात करें तो अंबाला छावनी के सिविल अस्पताल में पीपीपी मॉडल पर हार्ट सेंटर है। इसी हार्ट सेंटर में मरीजों को स्टेंट डाले जा रहे हैं। बीपीएल मरीजों व आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीजों के लिए यह सुविधा निश्शुल्क है। अस्पताल में ही किडनी स्टोन का इलाज करने के लिए लीथेट्रिप्सी मशीन भी लाई गई है। इसका फायदा मरीजों को मिलना शुरू हो गया है। इसके अलावा अस्पताल में कैंसर टर्सरी सेंटर का निर्माण भी किया जा रहा है, जहां कैंसर के मरीजों का उपचार किया जाएगा। 

नारायणगढ़ सुविधाओं से अछूता
नारायणगढ़ सिविल अस्पताल में सुविधाओं की कमी है। एक्सरे व अल्ट्रासाउंड के लिए मरीज भटकते हैं। महिला रोग विशेषज्ञ नहीं हैं।  सिविल अस्पतालों में फार्मासिस्ट की कमी है, जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मरीजों को दवाएं थमा रहे हैं। सीएचसी व पीएचसी में भी यही हालात हैं।

यहां बदहाल है व्यवस्था
यमुनानगर सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से बदहाल हैं। चिकित्सकों की कमी का असर आयुष्मान योजना के तहत मिलने वाले इलाज पर भी पड़ रहा है।  चिकित्सकों की कमी की वजह से संबंधित बीमारियों के मरीजों का इलाज भी नहीं हो रहा है। करीब दो साल पहले सिविल अस्पताल को अपग्रेड किए जाने की घोषणा हुई थी, लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात वाली ही है।

जींद को मिली सिर्फ घोषणाएं
जींद में करोड़ों रुपये की लागत से नागरिक अस्पताल के नए भवन का निर्माण तो पूरा कर दिया, लेकिन चिकित्सकों की भारी कमी है।  यहां डॉक्टरों के 203 पद मंजूर हैं, जबकि फिलहाल मात्र 62 डॉक्टर ही सेवाएं दे रहे हैं। उनमें से भी कई डॉक्टरों को दूसरे कार्यो का चार्ज दिया हुआ है। ओपीडी में बैठने वाले डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है। जींद मुख्यालय पर स्थित नागरिक अस्पताल में ईएनटी, स्किन, फिजिशियन, साइकाट्रिस्ट सहित कई विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। नागरिक अस्पताल में लंबे समय से रेडियोलॉजिस्ट का पद खाली है। बजट की कमी के कारण दवाओं का अभाव है। तीन माह पहले तो मुख्यालय से बजट नहीं आने के कारण दवाई सप्लाई करने वाली एजेंसियों ने सप्लाई पर रोक लगा दी थी। सीएम मनोहरलाल ने करीब चार साल पहले जींद में मेडिकल कॉलेज बनाने की घोषणा की थी, इसके लिए गांव हैबतपुर की 24 एकड़ 3 कनाल पंचायती जमीन भी अधिग्रहण कर ली, लेकिन वहां पर चहारदीवारी के सिवाय काम शुरू नहीं हो पाया है।


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