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Lok Sabha Election 2019: दरकता माई समीकरण, भाजपा को दिख रही उम्मीद की किरण

Lok Sabha Election 2019. चतरा संसदीय क्षेत्र में 16 निर्दलीय समेत 26 प्रत्याशी भर रहे दम। सुनील सिंह महागठबंधन के दो यादवों की आपसी लड़ाई में देख रहे अपना फायदा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 08:18 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 08:18 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: दरकता माई समीकरण, भाजपा को दिख रही उम्मीद की किरण

चतरा से आनंद/संदीप। Lok Sabha Election 2019 - झमाझम बारिश ने चतरा के माहौल को खुशनुमा बना दिया है। पारा गिरा है, लेकिन सियासी पारा चढ़ा हुआ है। सड़कों पर चुनावी हलचल भले कुछ खास न दिखती हो, लेकिन हर जुबान पर चुनाव चढ़कर बोल रहा है। बीते पंद्रह दिनों में यहां बहुत कुछ बदला है, संशय के बादल छटे हैं। सियासी तस्वीर साफ होने से मुकाबले का सीन क्लियर होता दिख रहा है।

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वैसे तो यहां 16 निर्दलीय समेत 26 प्रत्याशी दम भर रहे हैं। लेकिन टक्कर भाजपा के सुनील कुमार सिंह, कांग्रेस के मनोज प्रसाद यादव और राजद के सुभाष प्रसाद यादव के बीच दिख रही है। चतरा राज्य की एकलौती सीट है, जहां महागठंबधन के प्रत्याशी एक दूसरे के खिलाफ ही ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस एवं राजद के प्रत्याशी स्वजातीय हैं। इससे माई समीकरण के दरकने के आसार हैं।

सदर प्रखंड के धमनिया गांव के मुनिका यादव और राजेश यादव कहते हैं कि दो यादव की ही आपस में लड़ाई हो गई है। यादव और मुस्लिम अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसके साथ जाएं। कुछ इधर झूल रहे हैं, तो कुछ उधर। वोट बटते नहीं, तो भारी पड़ते। वे ये तो नहीं बताते कि किस पर भारी पड़ते लेकिन इशारा भाजपा की ओर था। बोकारो विधायक सह भाजपा के चतरा के लोकसभा प्रभारी बिरंची नारायण भी कुछ ऐसा ही गणित बताते हुए सुनील सिंह की जीत का दावा करते हैं।

महागठबंधन के यादव उम्मीदवारों की लड़ाई से बीजेपी को फायदा होगा। यह भी स्पष्ट करते कि हर जगह वोटर मोदी का ही चेहरा देख वोट कर रहा, ऐसे में जीत के लिए सोचना क्या। हालांकि यहां अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र में सियासी गणित कुछ इस कदर उलझा हुआ है कि मतदाता कंफ्यूज हैं। जतराहीबाग में भूंजे की दुकान चलाने वाले गुप्ताजी की बात से भी यह स्पष्ट हुआ। कहते हैं, देखते जाइये अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। 

प्रत्याशी से नाराजगी, मोदी फैक्टर प्रभावी
चतरा में हुए विकास कार्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसमें सांसद सुनील सिंह की भूमिका भी रही है लेकिन फिर भी वे मतदाताओं की नाराजगी झेल रहे हैं। हाल के दिनों की घटनाएं इसकी पुष्टि कर रही हैं। फिलहाल सांसद मतदाताओं के आगे नतमस्तक हैं। भाजपा प्रत्याशी का प्लस प्वाइंट यह है कि मोदी फैक्टर चतरा में प्रभावी है।

सिमरिया विधानसभा क्षेत्र के बलिया गांव निवासी मनोज कुमार पांडेय स्वीकारते हैं कि सांसद के प्रति कुछ नाराजगी है। लेकिन लोकसभा के चुनाव में तो वोट मोदी के नाम पर ही पड़ेगा। समस्याएं बहुत हैं। समाधान होते-होते ही होगा। मोदी ने शानदार काम किया है उन्हें एक मौका देना ही होगा।  

जातीय गणित
चतरा संसदीय क्षेत्र में भी राजनीतिक दल जातीय समीकरण साध रहे हैं। करीब 14 लाख मतदाताओं वाले चतरा में साढ़े चार लाख दलित व आदिवासी बताए जाते हैं। मुस्लिम की भी बड़ी आबादी है। इनकी संख्या करीब सवा दो लाख बताई जाती है। यादव और वैश्य वोटरों की संख्या तकरीबन डेढ़-डेढ़ लाख आंकी जाती है। सवर्ण वोटर भी अपना वजूद रखते हैं। कुशवाहा समाज का अपना जनाधार है।

यहां माई समीकरण बिखरा हुआ दिखता है। भाजपा यहां सवर्णों व वैश्य के साथ -साथ कुशवाहा समाज को साधने में लगी है। वैश्य वोटरों के बूते ही भाजपा के बागी राजेंद्र साहू ताल ठोंक रहे हैं। दलित वोटरों के दम पर बसपा प्रत्याशी नागेश्वर गंझू मैदान में है। यहां 21 अप्रैल को बसपा प्रत्याशी के पक्ष में मायावती चुनावी सभा करने वाली हैं। 

बनते बिगड़ते समीकरण
चतरा संसदीय क्षेत्र का चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। चतरा के पूर्व विधायक जनार्दन पासवान राजद छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। पासवान के भाजपा में जाने से राजद को झटका लगा है वहीं भाजपा की उम्मीद जगी हैं। इधर, पूर्व मंत्री सत्यानंद भोक्ता झाविमो छोड़कर राजद में शामिल हो गए।

राजद में शामिल होने से पहले भोक्ता कांग्रेस उम्मीदवार के साथ घूम रहे थे। भोक्ता के राजद में शामिल होने से चतरा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस कुछ कमजोर हुई है। नीलम देवी झाविमो छोड़ कर टिकट की आस में भाजपा में शामिल हो गईं लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। ऐसे में वे अपने समर्थकों को भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने के लिए कितना गोलबंद कर पाएंगी यह बड़ा सवाल है। 

जीत का मंत्र
भाजपा के लिए

1 रूठे कार्यकर्ताओं को मना पाना सुनील सिंह के लिए चुनौती है, मना लिया तो जीत का आधा सफर तय।
2 सुनील सिंह वर्तमान सांसद हैं और एंटी इनकंबेंसी से जूझ रहे। उन्हें इस मोर्चे की लड़ाई जीतनी होगी।
3 भाजपा को सिमरिया, चतरा और पांकी में थोक में मत पड़े थे। इन मतों को फिर से समेटना होगा। 

कांग्रेस के लिए
1 पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और झाविमो ने अलग- अलग लड़ते हुए हुए क्रमश: दूसरे व तीसरे स्थान पर जगह बनाई थी। इस बार दोनों साथ हैं, एकजुटता को बनाए रखना होगा।
2 लातेहार में कांग्रेस और झाविमो को पिछले चुनाव में करीब 58000 मत मिले थे, जो भाजपा को मिले 46450 मतों से अधिक थे। कांग्रेस यदि अपने और झाविमो को पिछले चुनाव में मिले मतों को समेट पाई तो इससे उसे फायदा होगा।
3 माई समीकरण में सुभाष लगा रहे हैं सेंध। कांग्रेस को इसे रोकना होगा। 

राजद के लिए
1 राजद के मुख्य जनाधार माने जाने वाले  मुस्लिम और यादव को समेट लें सुभाष तो बने बात।
2 सुभाष यादव को बाहरी प्रत्याशी के तमगे से उबरना होगा।
3 चतरा राजद की परंपरागत सीट रही है। राजद यहां 2004 के जीत के मंत्र को साध सकी तो पलट सकता है पासा।


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