Move to Jagran APP

Lok Sabha Election 2019: क्‍या राजद-कांग्रेस की लड़ाई में BJP मार लेगी मैदान, जानें चतरा का हाल

Lok Sabha Election 2019. झारखंड की चतरा सीट पर पिछले तीन लोकसभा चुनावों में हर बार नया दल-नया सांसद के तर्ज पर चतरा के वोटरों ने नया चेहरा चुना है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 04:34 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 04:37 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: क्‍या राजद-कांग्रेस की लड़ाई में BJP मार लेगी मैदान, जानें चतरा का हाल
Lok Sabha Election 2019: क्‍या राजद-कांग्रेस की लड़ाई में BJP मार लेगी मैदान, जानें चतरा का हाल

चतरा से आनंद मिश्र /संदीप कुमार। चतरा में मुद्दे बहुतेरे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल और उम्मीदवार इसकी नब्ज नहीं पकड़ पाते। यही वजह है कि जनता हर बार नया जनादेश देती है। जनता दल भी बदल देती है और उम्मीदवार भी। झारखंड गठन के बाद हुए पिछले तीन चुनाव इसकी बानगी हैं। 2004 में राजद के धीरेंद्र अग्रवाल, 2009 में निर्दलीय इंदर सिंह नामधारी और 2014 में भाजपा के सुनील कुमार सिंह यहां से सांसद बने। यानी हर बार नया दल, नया सांसद। नब्ज न पकड़ पाने की एक बड़ी बानगी यह भी कि तीनों प्रमुख उम्मीदवार मानते हैं कि यहां का सबसे बड़ा मुद्दा रेल लाइन है।

loksabha election banner

इस चुनाव में ही नहीं पिछले कई दशकों से यह बड़ा मुद्दा है लेकिन यह अब भी अनसुलझा है। चतरा शहर के उमेश यादव कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव जब रेल मंत्री थे तब इस योजना का शिलान्यास हुआ था। सांसद सुनील सिंह ने भी पिछले चुनाव में ट्रेन पर चढ़कर नामांकन करने का वादा किया था। ट्रेन तो चतरा नहीं पहुंची, लेकिन वे जरूर चुनाव लडऩे आ गए। सुनील सिंह के लिए चतरा में कैंप कर रहे भाजपा नेता सांवरमल अग्रवाल इस बात को काटते हैं। कहते हैं कि चतरा से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर शिवपुर-टोरी रेल लाइन पर मालगाड़ी दौडऩे लगी है, जल्द ही चतरा लोगों का यहां से ट्रेन से सफर करने का सपना पूरा होगा।

यह तो हुई रेल लाइन की बात। खेती-किसानी भी बड़ा मुद्दा है इस क्षेत्र का। चतरा के गिद्धौर और पत्थलगडा के किसानों को प्याज रूला रहा है। यहां किसानों को प्याज की उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। प्याज की क्या, धान और बड़े पैमाने पर उपजने वाली सब्जियों के भी उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। ङ्क्षसचाई के पर्याप्त इंतजाम न होने सेरबी की फसल मारी जा रही है। यहां किसान अपने मुद्दों को लेकर आक्रोशित हैं। ऐसा नहीं  कि कृषि सरकार के एजेंडे में नहीं। किसानों के विकास के लिए केंद्र व राज्य सरकार के स्तर से कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, सुविधाएं भी मिली हैं। विकास हुआ है तो अपेक्षाएं भी बढ़ीं हैं और ये अपेक्षाएं चुनाव के दौरान हिलोरे मार रहीं हैं।

गिद्धौर ब्लॉक में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित देवचरण दांगी भी मानते हैं कि क्षेत्र में सिंचाई के संसाधनों का अभाव है, कुछ संपन्न किसान जरूरत पडऩे पर टैंकर से खेतों को पटा रहे हैं। कोल्ड स्टोरेज की कमी अखरती है, धान खरीद की सरकार की योजना भी यहां बहुत सफल नहीं रही है। वे कहते हैं कि चतरा का जितना विकास होना चाहिए था, नहीं हुआ। पर्यटन के क्षेत्र में यहां सांसद ने इटखोरी के मां भद्रकाली मंदिर को राष्ट्रव्यपी पहचान दिलाई है।

जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर बिलयागांव के निवासी जयशंकर पांडेय कहते हैं मां के मंदिर में आयोजित होनेवाले महोत्सव से लोगों को रोजगार मिला है। ठेले वाला भी महोत्सव के दौरान 10-10 हजार तक कमा लेता है। मां के मंदिर को मिली पहचान को विपक्षी दलवाले भी स्वीकारते हैं। राजद कार्यकर्ता उमेश यादव इस पर तंज कसते हैं, कहते हैं कि यह महोत्सव की ही तो सरकार है और क्या किया? इसके अलावा स्टील प्लांट, बाइपास की मांग, एनएच-99 समेत मुद्दे अनेक हैं लेकिन इन मुद्दों पर मोदी फैक्टर भारी पड़ता दिखाई देता है।

इटखोरी के सोनिया गांव की महिलाओं के मन में मोदी का खूब सम्मान है। गांव में जाने पर माथे पर पल्लू रखकर वैजयंती देवी घर से बाहर निकली। कहा, बाबू हमरा त इज्जत मोदिये जी देलखुन। पहले शौचालय नय हलौ। अब घरे-घरे व्यवस्था हौ। बहू-बेटी के बाहर नय जाय पड़ै। रसोई गैसो मिलला से अब आराम हौ। मोदी जी क मोन से आशीर्वाद दे रहलखुन हीयां सब।

गांव से इतर शौचालय योजना की बात करने पर उमेश दांगी कहते हैं, शौचालय तो नाम के ही बने हैं। खाली पैसा का लूट हुआ है। जो शौचालय बने हैं, वह बैठने लायक तो हैं ही नहीं। यानी गांव और शहर का मुद्दा एक नहीं। जो मुद्दे गांव में असरकारक हैं वे शहरों में भोथरे साबित हो जा रहे। अब ऐसे में सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के भी पसीने छूट रहे कि गांव में क्या बात रखें और शहर में क्या। बहरहाल, भाजपा की चुनावी गाडिय़ां सड़कों पर इस गाने की धुन के साथ दौड़ रहीं कि मोदी जी को जिताना है, ठीक है...। जनता इसे कितना ठीक मानती यह मतगणना के बाद ही पता चलेगा। 

सुलझे-अनसुलझे मुद्दे
झारखंड गठन के बाद चतरा में तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं 2004 से 2014 तक। हमने पड़ताल की उन मुद्दों की जो पूर्व में तो चुनावी मुद्दे थे लेकिन अब नहीं। ऐसे भी मुद्दे ढूंढे जो अब भी सुरसा की तरह मुंह बाये जनता को चिढ़ा रहे और नेता जी को जवाब देने में पसीने छूट रहे। 

सुलझे : 1. बिजली बड़ी समस्या थी। पिछले कुछ सालों में घर-घर बिजली पहुंची है। यहां तक कि पुराने तारों को हटाकर कवर्ड वायर तक लगा दिए गए।
2. गरीबों को छत मिली है। तीन साल में 28 हजार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों को स्वीकृति मिली इनमें 22 हजार बनकर तैयार।
3. सड़कों का जाल बिछा। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत गांव-गांव में सड़कें बनी हैं। मुख्य सड़केंचौड़ी हुई हैं। हालांकि एनएच-99 और बाइपास अब भी न बनना बड़ी समस्या है।
4. नक्सलवाद पर लगी लगाम। करीब दस उग्रवादी मारे गए या सरेंडर किया। पुलिस ने अभियान चलाकर नक्सलियों पर लगाम लगाई।
5. पर्यटन के क्षेत्र में हुआ काम। भद्रकाली मंदिर का विकास हुआ। 600करोड़ का मास्टर प्लान तैयार। कौलेश्वरी का भी विकास हुआ। 

अनसुलझे : 1. रेलवे अब भी चतरा का सपना है। हर चुनाव में उठता है मुद्दा, काम अंजाम तक नहीं पहुंचा।
2. सिंचाई की सुविधा नहीं। किसानों को खेती में होती परेशानी।
3. रोजगार के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं। पलायन आज भी नासूर।
4. शिक्षा के मामले में चतरा आज भी पिछड़ा है। उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को करना पड़ता पलायन।
5. पेयजल आपूर्ति की दशा खराब। चतरा शहर हो या सुदूर टंडवा सभी जगहों पर पानी की दिक्कत है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.