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Lok Sabha Election 2024: झारखंड में इन दो समुदायों के पास है सत्ता की चाबी, 11 सीटों पर प्रभाव, साधने में जुटे सभी नेता

Jharkhand Lok Sabha Election 2024 झारखंड में एनडीए और आईएनडीआईए के बीच सीधी लड़ाई है। यहां के नतीजे तय करने में दो समुदाय अहम भूमिका निभाएंगे। दोनों गठबंधन इनकी अहमियत समझते हैं और इसिलिए इन्हें साधने में जुट गए हैं। जानिए राज्य का सियासी समीकरण और क्या है अलग-अलग समुदायों के लिए गठबंधनों की रणनीति। पढ़ें रिपोर्ट. . . .

By Sachin Pandey Edited By: Sachin Pandey Published: Mon, 29 Apr 2024 11:35 AM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2024 11:35 AM (IST)
Lok Sabha Election: राज्य की आबादी में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी इन्हीं दो समुदायों की है।

प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में आदिवासी के बाद कुर्मी-महतो दूसरा बड़ा वोटबैंक है। राज्य की 14 लोकसभा सीटों में 11 पर इनका प्रभाव है। पांच सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, जबकि छह पर कुर्मी मतदाता प्रत्याशियों की जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। आदिवासी और कुर्मी कार्ड से लोकसभा चुनाव का गणित बनता-बिगड़ता रहा है।

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राजनीतिक गलियारे में चर्चा होती रहती है कि झारखंड में सत्ता की चाबी `डबल एम` यानी महतो (कुर्मी) और मांझी (आदिवासी) मतदाताओं के पास है। राज्य की आबादी में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी इन्हीं दोनों की है। आदिवासी 27 प्रतिशत और कुर्मी 25 प्रतिशत हैं। भाजपा, कांग्रेस, झामुमो, आजसू समेत तमाम दलों में इनके संगठनों की पूछ बढ़ गई है। आईएनडीआईए और राजग दोनों खेमा इन्हें आकर्षित करने में लगे हैं।

राजग की रणनीति

आदिवासी वोटों को साधने के लिए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बाबूलाल मरांडी समेत तमाम नेता रणनीतिक तरीके से जुटे हैं। झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को अपने खेमे में कर भाजपा उनके माध्यम से भी आदिवासियों में पैठ बढ़ा रही है। अटल बिहारी वाजपेयी से नरेन्द्र मोदी तक भाजपानीत सरकार की ओर से आदिवासियों के उत्थान के लिए किए गए कार्यों का प्रचार-प्रसार भी जोर-शोर से किया जा रहा है।

कुर्मी मतों को साधने के लिए भाजपा ने क्षेत्रीय दल आजसू से गठबंधन किया है। पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो भाजपा के प्रमुख नेताओं के कार्यक्रमों में साथ-साथ चल रहे हैं। गठबंधन में गिरिडीह सीट भाजपा ने आजसू को दी है। पिछली बार यहां से सांसद बने चंद्रप्रकाश चौधरी इस बार भी कुर्मी बहुल गिरिडीह से आजसू (राजग) के प्रत्याशी हैं। उनके मुकाबले झामुमो ने यहां कुर्मी समाज के विधायक मथुरा महतो को उतारा है। स्थानीय नीति को लेकर आंदोलन कर उभरे कुर्मी समाज के नए नेता जयराम महतो भी इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के जमशेदपुर प्रत्याशी विद्युत वरण महतो भी कुर्मी समाज से हैं।

आईएनडीआईए दिखा रहा आईना

आईएनडीआईए के प्रमुख घटक झामुमो और कांग्रेस ने भी आदिवासी व कुर्मी वोटबैंक पर फोकस बढ़ा दिया है। झामुमो के तमाम बड़े नेता संदेश देने की कोशिश कर रहे कि भाजपा आदिवासी हितैषी नहीं है। हेमंत सोरेन को जेल में इसीलिए डाला गया, क्योंकि उन्हें आदिवासी मुख्यमंत्री पच नहीं रहा था। केंद्र सरकार की ओर से लागू वनाधिकार कानून की खामियां और खनिजों की रायल्टी नहीं दिए जाने के मुद्दे भी उठाए जा रहे हैं।

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झामुमोनीत राज्य सरकार द्वारा आदिवासी हित के कार्यों को गिनाया जा रहा है। कांग्रेस और झामुमो दोनों कुर्मियों को साधने के लिए ओबीसी आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने का भी मुद्दा उठा रहे हैं। कुर्मी यहां ओबीसी में शामिल हैं। झामुमो से भाजपा में आए कुर्मी विधायक जयप्रकाश पटेल को भाजपा ने विस में पार्टी का सचेतक बनाया था। हालांकि, वह पाला बदलकर कांग्रेस में चले गए और हजारीबाग से चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड में गिरिडीह, हजारीबाग, रांची, धनबाद व जमशेदपुर में कुर्मी मतदाताओं का वोट परिणाम को प्रभावित करता है।

आदिवासी का दर्जा

कुर्मी को आदिवासी बनाने का मुद्दा भी अहम कुर्मी को आदिवासी का दर्जा देकर अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग झारखंड, बंगाल और ओडिशा की उन सीटों पर अहम साबित हो सकती है, जहां कुर्मी की अच्छी संख्या है। कुर्मी उक्त राज्यों में पिछड़ी जाति की सूची में दर्ज हैं। कुर्मी संगठन आदिवासी बनाने की मांग को लेकर झारखंड, बंगाल व ओडिशा में उग्र आंदोलन करते रहे हैं। सभी दल इनका समर्थन करते हैं, लेकिन इनकी मांग पर ज्यादा जोर देने का खतरा भी राजनीतिक दलों को सताता है, क्योंकि यह मांग माने जाने से आदिवासी नाराज हो सकते हैं।

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