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Lok Sabha Election 2019: हिमाचल में कांग्रेस का आठ बार चारों लोकसभा सीटें जीतने का है रिकॉर्ड

Lok Sabha Election 2019 हिमाचल में अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में से प्रदेश में आठ बार कांग्रेस ने चारों सीटों पर जीत हासिल की है।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 11:18 AM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 11:18 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: हिमाचल में कांग्रेस का आठ बार चारों लोकसभा सीटें जीतने का है रिकॉर्ड
Lok Sabha Election 2019: हिमाचल में कांग्रेस का आठ बार चारों लोकसभा सीटें जीतने का है रिकॉर्ड

शिमला, रविंद्र शर्मा। संसदीय चुनाव में हिमाचल में कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। अब तक आठ बार कांग्रेस प्रदेश की सभी चारों सीटें जीत चुकी है, जबकि तीन बार चारों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। 1951 से पांचवीं लोकसभा तक हिमाचल में कांग्रेस की तूती बोलती थी। 1977 में विपक्षी दलों के संयुक्त मोर्चा भारतीय लोकदल ने पहली बार कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया था। 1977 के आम चुनाव में पूरे देश की तर्ज पर हिमाचल में भी इमरजेंसी ने कांग्रेसी दुर्ग की दीवारें हिलाकर रख दी थीं। कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी हो गए थे।

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अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में से प्रदेश में आठ बार कांग्रेस ने चारों सीटों पर जीत हासिल की है। सिर्फ तीन बार कांग्रेस ने चारों सीटें हारी हैं। 1977, 1999 और 2014 के लोकसभा चुनाव में चारों सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी हारे हैं, जबकि पांच लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के मिले-जुले प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं।

 

1967 में थी छह सीटें

1966 में पंजाब के पुनर्गठन के साथ ही इसके पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में शामिल किया गया। इसके बाद जब 1967 के आम चुनाव हुए तो प्रदेश में पहली बार छह संसदीय क्षेत्र बने। इस दौरान प्रदेश में कांगड़ा, महासू, शिमला, हमीरपुर, चंबा और मंडी संसदीय सीटें थी। इसके बाद यह नक्शा भी बदल गया। 1971 से चार संसदीय क्षेत्र 25 जनवरी 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं भारी बर्फबारी के बीच

शिमला के रिज मैदान से हिमाचल को पूर्ण राज्य की घोषणा की थी। इसके कुछ माह बाद देश की पांचवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए और इसी दौरान हिमाचल को पहली बार चार संसदीय क्षेत्र मिले, जो आज भी यथावत हैं। इस दौरान महासू सीट को समाप्त कर शिमला आरक्षित लोकसभा क्षेत्र बनाया गया।

1989 में खुला था खाता

1989 में भाजपा ने तीन सीटें जीतने के साथ खाता खोला था। इसमें केवल शिमला आरक्षित सीट पर ही कांग्रेस के केडी सुल्तानपुरी जीते थे। मंडी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के पंडित सुखराम शर्मा को भाजपा के महेश्वर सिंह ने हराया। कांगड़ा में शांता कुमार ने कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी व हमीरपुर से प्रेम कुमार धूमल ने कांग्रेस के नारायण चंद पराशर को पराजित किया था।

1967 तक घटते-बढ़ते रहे संसदीय क्षेत्र

आजादी के बाद 1951 में हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1967 में चौथे लोकसभा चुनाव तक हिमाचल के संसदीय क्षेत्र घटते-बढ़ते रहे। पहली बार यहां मंडी-महासू व चंबा-सिरमौर दो संसदीय सीटें थी, तब हिमाचल चीफ कमीश्नरी हुआ करता था। उस समय प्रदेश में कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, कुल्लू, लाहुल-स्पीति के अलावा सोलन का नालागढ़ हिमाचल का हिस्सा नहीं था, शिमला का कुछ इलाका भी पंजाब में शामिल था, जबकि बिलासपुर जिला अलग से केंद्र शासित था। 1957 के आम चुनाव में महासू व मंडी को अलग-अलग संसदीय सीट, जबकि चंबा को तीसरा लोकसभा क्षेत्र बनाया गया। इस दौरान भी महासू दो सदस्यीय हलका रहा, जहां से यशवंत सिंह परमार व कांग्रेस के ही नेकराम निर्वाचित हुए थे। 1972 के आम चुनाव में फिर से हिमाचल की संसदीय सीटों का नक्शा बदल गया। इस दौरान प्रदेश में सिरमौर को पहली बार आरक्षित सीट घोषित किया गया।


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