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बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट: चुनावी सियासत में राष्‍ट्रीय सुरक्षा बनाम जातीय समीकरण पर जोर

पाकिस्तान से सटे राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर-जैसलमेर में लोकसभा चुनाव का सियासी पारा इस रेगिस्तानी इलाके की प्रचंड गर्मी पर भी भारी पड़ रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 26 Apr 2019 07:43 PM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 07:43 PM (IST)
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट: चुनावी सियासत में राष्‍ट्रीय सुरक्षा बनाम जातीय समीकरण पर जोर
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट: चुनावी सियासत में राष्‍ट्रीय सुरक्षा बनाम जातीय समीकरण पर जोर

संजय मिश्र, बाड़मेर। पाकिस्तान से सटे राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाड़मेर-जैसलमेर में लोकसभा चुनाव का सियासी पारा इस रेगिस्तानी इलाके की प्रचंड गर्मी पर भी भारी पड़ रहा है। भाजपा अपने राष्ट्रवाद और राष्‍ट्रीय सुरक्षा की चुनावी गूंज को इस सरहदी इलाके में मुखर आवाज देकर इसे चुनावी स्ट्राइक में तब्दील करने पर जोर लगा रही है, जबकि कांग्रेस जातीय-सामाजिक समीकरण को साधते हुए चर्चित उम्मीदवार मानवेंद्र सिंह के सहारे इस चुनाव में बाजी पलट देने का हौसला दिखा रही है।

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भाजपा को चुनौती देने के इस दांव में कांग्रेस मानवेंद्र के पिता भाजपा के पूर्व दिग्गज जसवंत सिंह के साथ पिछले चुनाव में हुए सलूक के जख्मों को ताजा करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही।

शहर-गांव की चुनावी चर्चाओं की आहट से साफ है कि चुनावी करवट की दिशा आखिर में जातीय समीकरण के रूख से ही तय होगी। बाड़मेर के इंदिरा कॉलोनी में जहां कांग्रेस उम्मीदवार मानवेंद्र सिंह का घर भी है, उस इलाके में गुरुवार सुबह साढे आठ बजे चाय की चुस्कियों और अखबार के पन्नों के साथ उम्मीदवारों की बढत और कमजोरी की चर्चा तेज है।

अपना व्यवसाय करने वाले गजेंद्र सिंह साफ तौर पर मानवेंद्र को रेस में आगे होने का दावा ठोकते हुए कहते हैं कि उनकी छवि के साथ जसवंत सिंह के स्वाभिमान का भावनात्मक पहलू उनके पक्ष में है और राजपूत समुदाय पूरी तरह उनके साथ है।

कई लोगों ने इस बात से सहमति जताई, मगर वहीं मौजूद राजपूत समुदाय के सागर राठौड़ ने कहा कि बेशक मानवेंद्र के साथ उनका समुदाय है पर कांग्रेस की जीत पक्की तभी होगी, जब जाट वोटों का बंटवारा होगा। क्षेत्रफल के लिहाज से यह देश की दूसरी सबसे बडी लोकसभा सीट है, जिसमें बाडमेर और जैसलमेर दो जिले शामिल हैं और विधानसभा की आठ सीटे हैं।

भाजपा उम्मीदवार कैलाश चौधरी जाट समुदाय से हैं और इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटर इसी वर्ग से हैं, जबकि राजपूत वोटरों की संख्या दूसरे नंबर पर है और तीसरे पर मुस्लिम मतदाता। पिछडे और दलित वर्ग के वोटरों की संख्या भी काफी है।

कैलाश चौधरी की चुनौती यह भी है कि टिकट काटे जाने से नाराज मजबूत जाट नेता मौजूदा सांसद कर्नल सोनाराम चौधरी ने भाजपा छोड़ चुनाव से पांच दिन पहले दुबारा कांग्रेस का दामन थाम लिया है। बाड़मेर के कुछ स्थानीय कांग्रेसी नेता सोनाराम की वापसी से खुश नहीं हैं मगर चुनाव में जाट वोटों को साधने के लिए सूबे का कांग्रेस नेतृत्व इसे कामयाबी मान रहा है।

दिलचस्प यह है कि कर्नल सोनाराम ने ही 2014 में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय लड़े जसवंत सिंह को हराया था और अब वही उनके बेटे को जिताने के लिए भाजपा के खिलाफ मैदान में उतर गए हैं। हालांकि इससे बेपरवाह भाजपा के बाड़मेर जिलाध्यक्ष दिलीप पालीवाल कहते हैं कि जातीय समीकरण से परे देश की सुरक्षा के लिए पीएम मोदी के मजबूत नेतृत्व की जरूरत की भावना लोगों में है और चुनाव में यही निर्णायक रहेगा।

जिले के बायतू विधानसभा क्षेत्र के मां भवाणी ढाबे पर ऐसी ही एक चुनावी चर्चा में पिछड़ समुदाय के स्थानीय युवा भरत विश्नोई मोदी की पाकिस्तान को लेकर आक्रामकता से प्रभावित होने की बात कह यह संकेत तो देते ही हैं कि पालीवाल के दावों की अनदेखी नहीं की जा सकती। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि मानवेंद्र की मृदुभाषी छवि और विरासत के दोहरे चक्रव्यूह को भेदने के लिए चौधरी की पहली और आखिरी उम्मीद मोदी ही हैं।

मानवेंद्र सिंह भी भाजपा की इस रणनीति को भांप रहे हैं। दहिसर जाने के दौरान रास्ते में दैनिक जागरण से चर्चा में मानवेंद्र ने कहा कि यहां बरगलाने की पूरी कोशिश हो रही है, मगर असल मुददा लोगों की बुनियादी जरूरतों का है जिसमें रेगिस्तान में पानी सबसे अहम है क्योंकि पानी की कमी इंसान ही नहीं, यहां के पशुओं की जिंदगी से जुड़ी है। इसीलिए राष्ट्रवाद की हुंकार चाहे जितनी भरी जाए वोटर रोटी और पानी के सवाल पर ही अपना फैसला देगा और कांग्रेस के लिए यह मुद्दा ही सबसे ऊपर है।

बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर वैसे बसपा के टिकट पर सूबे के चर्चित बर्खास्त आइपीएस अधिकारी पंकज चौधरी भी चुनाव लड़ रहे हैं मगर इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने से वे कोसों दूर हैं।


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