Loksabha Election 2019 : यह गहमर गांव है वीर जवानों का, यहां देशहित ही सर्वोपरि
जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पूर्वी छोर पर गंगा के किनारे बसे एशिया के सबसे बड़े गांव गहमर में चुनावी चर्चा हिलोर मार रही है।
गाजीपुर [सर्वेश मिश्रा]। जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर पूर्वी छोर पर गंगा के किनारे बसे एशिया के सबसे बड़े गांव गहमर में चुनावी चर्चा हिलोर मार रही है। बच्चे, बूढ़े और जवान सभी पर चुनावी रंग यूं ही नहीं चटख है। इसके पीछे है देश की रखवाली के लिए सरहद पर यहां के सपूतों की सर्वाधिक संख्या भरा गौरव और राष्ट्रवाद के नाम पर मतदान का अलहदा अंदाज। तभी तो हर-वर्ग संप्रदाय के लोग बेझिझक चुनाव पर न सिर्फ खुलकर बोलते हैं बल्कि राष्ट्रवाद को सिर माथे लगाते हैं। यूं भी जातिवाद, संप्रदायवाद यहां का कभी मुद्दा रहा ही नहीं, पर इस बार की तो बात ही निराली है। एशिया के सबसे बड़े गांव गहमर में दैनिक जागरण ने चुनावी मुददों की पड़ताल की।
छोटे शहरों सरीखे कुछ आलीशान मकान, गरीबी को रेखांकित करते छोटे-छोटे आशियाने अंदर तक जाने वाले रास्ते व कुछ तंग गलियां बस इतनी भर पहचान नहीं है इस गौरवमयी गांव का। जिला मुख्यालय से प्रवेश करते ही मां कामाख्या धाम, उत्तर में पांव पखारती गंगा व पूरब में रखवाली करती कर्मनाशा के बीच बसे गांव के लोग अपने काम में व्यस्त रहे। ऐसे में वहां उतनी हलचल नहीं रही जैसा कि गांव के पहले थाने के ठीक सामने स्वर्गीय मान्धाता शाह की चाय की दुकान पर जमघट थी। जागरण की टीम से यह जानकर उनके जोश और जवां हो गए कि चर्चा चुनावी होनी है। और जगहों की तरह न तो किसी को छेडऩे की जरूरत पड़ी न ही और कुछ भूमिका की। उल्टे उधर से ही सवाल उछल पड़ा कि पत्रकार साहब आप लोगों को तो अच्छे से पता होगा चुनाव का हाल। राष्ट्रवाद, विकास या फिर जातिवाद। यह कहते ही कि आज पहले बात होगी गहमर के मिजाज की लोग शुरू हो गए।
चर्चा की शुरुआत करते हुए भीष्मदेव सिंह ने कहा कि गहमर में कभी भी जाति का माहौल नहीं रहा है। विकास पर ही हमेशा वोट पड़ता है। जिले को बहुत कुछ देने वाले सांसद से पूरे गहमर को मलाल है। स्थानीय स्तर पर जो अपेक्षाएं थीं उनसे कम से कम उस पर वह खरे नहीं उतरे। उन्होंने वाराणसी-पटना इंटरसिटी एक्सप्रेस का गहमर में ठहराव का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ। स्टेशन पर जो काम हुआ है, वह नहीं रहते तो भी होता क्योंकि यह रेलवे बोर्ड के निर्देश पर हुआ है फिर भी वोट उन्हीं को पड़ेगा। विमलेश ङ्क्षसह गहमरी जरूर सरकार से नाराज दिखे। सरकार को हटाने की बात की। कोई वादा पूरा नहीं करने का आरोप मढ़ा। कहा कि राष्ट्रवाद कोई मुद्दा नहीं है, इससे जबरदस्ती उछाला जा रहा है। हालांकि तभी उनके बगल में बैठे संतोष उपाध्याय ने बड़ी बेबाकी से उन्हें बीच में रोकते हुए कहा कि यह तो जन्मजात कांग्रेसी है।
ऐसे इक्का-दुक्का लोग आप हर जगह पाते होंगे। सवाल किया कि मनोज सिन्हा ने जितना विकास किया है क्या उतना इसके पहले के 50 सालों में हुआ है। सभी जाति के लोग देश के सम्मान के लिए वोट कर रहे हैं। जहां तक किसान के सम्मान की बात है वह भी राष्ट्रवाद ही है। इसके लिए किसान सम्मान निधि योजना चल रहा है। इसका लाभ भी किसानों को मिल रहा है। वाल्मीकि ङ्क्षसह गहमरी ने कहा कि सेना बहादुरी कर रही है और कुछ लोग अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। गरीब और किसान के लिए इस सरकार के पास कोई नीति नहीं है। गहमर इंटर कालेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य अखिलेश राय ने कहा कि जिला ही नहीं पूरे देश में जितना काम अब हुआ है, पहले नहीं हुआ। तमाम योजनाएं चल रही हैं, जिसका लाभ लोगों को सीधा मिल रहा है। विश्वमंच पर देश का सम्मान काफी बढ़ा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कहते हैं, वह करते हैं। सर्जिकल और एयरस्ट्राइक पहले क्यों नहीं होता था। सेना तो नहीं बदली है। यह सिर्फ नेतृत्व क्षमता की बात है। पहले के प्रधानमंत्री में उतना आत्मबल नहीं था।
शमीम हुसैन ने बेबाकी से बोलते हुए कहा कि भइया यह गहमर गांव है। हमारे गांव में जातिवाद कभी नहीं दिखा। रहा सवाल इस बार वोट देने का तो राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे पर ही वोट दूंगा। गहमर में आज से नहीं पहले से ही गंगा-जमुनी की तहजीब कायम है। यहां के सांसद व इस सरकार ने बहुत काम किया है। इससे हम सभी काफी प्रभावित हैं। सड़क, बिजली, पानी सब की व्यवस्था सुधर गई है।
लक्ष्मीकांत उपाध्याय ने कहा कि गहमर को सेना का गांव कहा जाता है। इसके लिए कुछ नहीं किया गया। मनोज सिन्हा ने वादा किया था कि वीके ङ्क्षसह गांव लाएंगे और सैनिक स्कूल देंगे। गहमर गांव में मनोज सिन्हा ही लीड करेंगे, इसका कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। गांव के हनुमान चबूतरा के पास पूर्व सैनिक संगठन कार्यालय है। यहां कैंटीन था, जो दो वर्ष से बंद है। इसे फिर दोबारा शुरू किया जाना चाहिए। कवि मिथिलेश ङ्क्षसह गहमरी ने शायराना अंदाज में कहा कि गहमर का मिजाज जातिवाद नहीं विकासवादी है। यहां सकारात्मक विचारधारा के लोग हैं। राष्ट्रवाद को ध्यान में रखकर ही वोट देंगे। गहमर गांव हमेशा संभावना को देखकर वोट दिया है और इस बार भी देगा। राधा पेंटर ने अपनी पीणा व्यक्त करते हुए कहा कि गहमर गांव के लोगों की जमीन गंगा के उस पार भी है। वहां जाने के लिए 20 वर्षों से पीपा पुल की मांग की जा रही है लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन मिला है। पेंशन बंद हो गया, यह सही नहीं है। इसे फिर से शुरू करना चाहिए। नायब सूबेदार लालचंद ङ्क्षसह ने कहा कि हम तो वोट दे दिए हैं। हमारा मुद्दा राष्ट्रवाद है। देश से बढ़कर कुछ नहीं है। बीएसएफ से बर्खास्त तेजबहादुर यादव पर भी यह काफी नाराज दिखे। कहा कि हमारी ड्यूटी कभी-कभी ऐसे जगहों पर लगती है। जहां हेलीकाप्टर से खाना गिराया जाता है। जिसको जो मिलता है, वह खाता है। कभी खाना आने में भी देर हो जाती है लेकिन ऐसा नहीं करता जैसा उन्होंने किया।
आसमान पर है सेना का मनोबल
सेना से सेवानिवृत्त हवलदार भूपेंद्र सिंह ने पूरे फौजी अंदाज में कहा कि पैसा थोड़ा कम दे दो, हमें मंजूर है, लेकिन हमें एकदम से बांध कर मत रखो, जैसे पहले रखा जाता था। आज फौज का मोराल काफी बढ़ गया है। 35 वर्ष में मैंने पहले नहीं देखा। हम गन लेकर तैयार रहते थे, लेकिन फायर नहीं कर सकते थे। आज वह स्थिति नहीं है। पहले कुछ अराजक तत्व और अलगाववादी हमारे गिरेबा तक पहुंच जाते थे। मजबूरन तब हम चुप रहते थे लेकिन आज ईंट का जवाब पत्थर से देने की छूट है। पहले से अब सब कुछ पूरी तरह बदल गया है। पहले फौज में भी भ्रष्टाचार था, लेकिन अब लोग डरते हैं। सबकुछ सही होने में थोड़ा समय लगेगा। कम से कम अब कोई हमें आंख दिखाकर नहीं जा सकता। यह सोच हमारे ही नहीं देश के हर जवान के जेहन में है। ऐसे में हमारा वोट साफ है कि जाएगा कहां।