Move to Jagran APP

EXCLUSIVE: पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, NDA का सामना करेगा जनता का महागठबंधन

राष्ट्रवाद के दो तरीके हैं। एक राष्ट्रवाद जो एकता पर आधारित है और दूसरा राष्ट्रवाद एकरूपता पर आधारित है। हमारा राष्ट्रवाद एकता पर आधारित है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 05 Apr 2019 09:31 AM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 09:32 AM (IST)
EXCLUSIVE: पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, NDA का सामना करेगा जनता का महागठबंधन
EXCLUSIVE: पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, NDA का सामना करेगा जनता का महागठबंधन

केंद्र की राजग सरकार का मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों का गठबंधन तो बना, पर टुकड़े-टुकड़े ही संभव हो सका। महत्वाकांक्षी छोटी पार्टियों ने कांग्रेस से कई राज्यों में किनारा कर लिया है। उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और पश्चिम बंगाल में तृणमूल जैसी पार्टियों ने कांग्रेस से परहेज किया है। लेकिन चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारियां किसी से कमतर नहीं है। गांव-गिरांव, किसान और गरीब को केंद्र में रखकर तैयार चुनावी घोषणा पत्र के मार्फत कांग्रेस ने जहां भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश की है, वहीं क्षेत्रीय दलों को उनकी राजनीतिक हैसियत बता दी। चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारियां और केंद्र सरकार की खामियां गिनाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने हमारे राष्ट्रीय ब्यूरो के उप प्रमुख सुरेंद्र प्रसाद सिंह से लंबी बातचीत की...

loksabha election banner

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। चुनाव के लिए कांग्रेस की क्या रणनीति है?

-हमारी रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है। कई राज्यों में हमारे गठबंधन हैं। कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्य प्रमुख हैं। गठबंधन रणनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। सकारात्मक एजेंडा लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। दूसरी बात, हमारा घोषणापत्र सकारात्मक है। इसे जनता के समक्ष रख दिया गया है। तीसरी बात, जिन उम्मीदों पर नरेंद्र मोदी को जनादेश मिला था, उससे लोगों का मोहभंग हुआ है। जनता के साथ विश्वासघात हुआ है। नोटबंदी एक तुगलकी फरमान था। जल्दबाजी में जीएसटी लागू किया। छोटे व्यापारी और लघु उद्योग क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। प्रधानमंत्री किसान और मजदूरों को पहले तीन साढ़े तीन साल भूल गए थे। गुजरात चुनाव के बाद उन्हें याद आया। उत्तर भारत के तीन राज्यों में हार के बाद उन्हें पता चला कि किसान, मजदूर पीड़ित और तंगहाल है। कांग्रेस जनता को नरेंद्र मोदी सरकार की करतूतों की याद दिलाएगी।

गठबंधन के आधार पर सरकार बनाने की रणनीति कैसे सफल होगी, जब उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस को सपा, बसपा ने ठेंगा दिखा दिया?

-उत्तर प्रदेश में गठबंधन न होने का कारण कांग्रेस नहीं है। हम गठबंधन करने के पक्षधर थे। चाहते थे कि गठबंधन हो, लेकिन बिल्कुल साफ है कि मायावती जी कुछ कारणवश नहीं चाहती थीं। सपा गठबंधन के पक्ष में थी। लेकिन हमारा गठबंधन बसपा और सपा के साथ पहले रहा है। कैराना के उपचुनाव में हम सभी एक साथ खड़े थे। यूपी में हमने नहीं बहनजी (मायावती) ने गठबंधन का दरवाजा ही नहीं, खिड़की भी बंद कर दी। कुछ उम्मीदें थीं कि हम सब एक होकर लड़ेंगे, पर अमित शाह के पास सीबीआइ व एन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट है। यह उनके हथियार हैं। मायावती सोच रही हैं कि पीएम बनेंगी। हमारी शुभकामना उनके साथ है। वह कांग्रेस और बीजेपी दोनों के साथ रही हैं। उम्मीद है कि चुनाव के बाद प्रगतिशील सेकुलर ताकत के साथ रहेंगी।

इसके उलट कांग्रेस दिल्ली में आप के साथ जाने में हिचक रही है और पश्चिम बंगाल में गठबंधन से दूर रही। क्या यह पार्टी का दोहरापन नहीं है?

-दिल्ली में आप ने पिछले पांच-छह सालों में हमारा ही वोट बैंक हथिया लिया है न। आप और कांग्रेस का वोट बैंक एक ही है। इसलिए हमारी पार्टी में दिल्ली में गठबंधन को लेकर दो राय है। कुछ लोग चाहते हैं कि आप के साथ मिलकर चुनाव लड़े, लेकिन दूसरे वो लोग जो पार्टी के बारे में दीर्घकालिक नजरिया रखते हैं, वे आगामी विधानसभा चुनाव के बारे में सोचते हैं। ऐसे लोग आप के साथ लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं जाना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल में भी पार्टी के अंदर दो राय थी। कुछ लोग तृणमूल के साथ जाना चाहते थे, जबकि कुछ लोग लेफ्ट के साछ चुनाव में उतरना चाहते थे। यही वजह है कि अकेले उतरना पड़ा। गठबंधन के लिए प्रयास खूब किए गए, लेकिन कभी-कभी रणनीति बदलनी पड़ती है।

विपक्षी दलों ने महागठबंधन बनाकर केंद्र में सरकार बनाने की बात तो की, लेकिन सब बिखर गया। ऐसे में क्या विपक्ष पहले से ही पस्त नजर नहीं आ रहा है?

-महागठबंधन पार्टियों का भले नहीं बन पाया, लेकिन जनता का महागठबंधन बना है, जो नरेंद्र मोदी को हरायेगा। मोदी को हराने वाले लोग हमारी सरकार बनाएंगे। उदाहरण है, 1977 में इंदिरा गांधी को जनता ने हराया तो गठबंधन की सरकार बनी। 1989 में गठबंधन बना राजीव गांधी को हराने के लिए। इस बार जनता का महागठबंधन सरकार को मात देगा।

चुनाव में सरकार पर हमला बोलने के लिए कांग्रेस के पास मुद्दे क्या हैं, जिनके बूते जनता को लुभाएगी?

-हमारी पार्टी दो तरफा हमला बोल रही है। पहला सकारात्मक एजेंडा होगा, जिसमें किसान, जीएसटी सुधार, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा है। बाकी मोदी विरोधी जनता को अपने पक्ष में करना है। हमारे जनतंत्र के लिए अमित शाह और मोदी खतरा हैं, जो धोखा, धमकी और ड्रामाबाजी की राजनीति करते हैं। जनता को इस तीन डी से निजात दिलानी है। विद्यार्थी, व्यापारी, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों को धमकी से दबाने की राजनीति चल रही है।

कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में कई लुभावने वायदे किए गए हैं। गांव-गिरांव व किसान उसके केंद्र में हैं। उन वायदों पर अमल करने की चुनौतियों के बारे में आप क्या कहेंगे?

-घोषणापत्र में पांच प्रमुख क्षेत्र हैं, जिन्हें पार्टी अध्यक्ष राहुल जी ने विस्तार से बताया है। देश में करीब पांच करोड़ गरीब परिवार हैं, जिन्हें सालाना 72 हजार रुपये देने का वायदा है। आर्थिक, सामाजिक व जातिगत जनगणना-2011 में इसका विस्तार से ब्यौरा दिया गया है। लागू करने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। किसानों के लिए अलग से बजट पेश किया जाएगा। उन्हें कर्ज मुक्त बनाने के साथ उनकी वित्तीय सेहत में सुधार का प्रावधान है। इसके लिए कई कानूनी बदलाव किए जाएंगे।

गरीबों के मुफ्त इलाज की योजना आयुष्मान भारत का कांग्रेस विरोध क्यों कर रही है?

-स्वास्थ्य क्षेत्र की योजना आयुष्मान भारत में दो स्तंभ हैं। पहला प्राइवेट अस्पताल और दूसरा निजी बीमा कंपनियां। हम इस रास्ते हटना चाहते हैं। हम स्वास्थ्य सुरक्षा सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और मुफ्त दवाइयों से करना चाहते हैं। हम हेल्थ इंश्योरेंस से हेल्थ एश्योरेंस की ओर जाएंगे।

रोजगार के बारे में कांग्रेस के घोषणापत्र में जो कहा गया है कि उसके लिए संसाधन कहां से कैसे जुटाए जाएंगे?

-देश का हर प्रधानमंत्री रोजगार सृजन करना चाहता है, लेकिन इस सरकार में इसका उलटा हुआ है। जीएसटी और नोटबंदी के चलते एक साल में एक करोड़ नौकरियां गायब हुई हैं। पंचायतों में 10 लाख लोगों के लिए नौकरियां सृजित होंगी। संसाधन के लिए जीएसटी का एक हिस्सा पंचायतों व नगर निकायों को दिया जाएगा। जीएसटी में केंद्र व राज्य के साथ पंचायतों व नगर निकायों का भी एक निश्चित हिस्सा होना चाहिए।

मनरेगा में दस फीसद से भी कम जॉब कार्ड धारक मजदूर ही 100 दिन का काम कर पाते हैं। उसमें काम की गारंटी 150 दिन करने का क्या औचित्य है ?

-हम ग्रामीण मजदूरों को डेढ़ सौ दिनों का विश्वास या गारंटी दिला रहे हैं। हमने पहले भी 2012 में सूखा व बाढ़ के दौरान सौ दिनों को बढ़ाकर डेढ़ सौ दिन किया था। हां यह बात सही है कि पिछले दस बारह सालों में केवल आठ दस फीसद लोग ही सालभर में 100 दिनों की मांग करते हैं। यह मांग आधारित योजना है। कई ऐसे इलाके हैं, जहां सौ दिन का काम भी कम पड़ता है। यह लोगों की मांग से निकली है।

चुनाव घोषणापत्र में राष्ट्रद्रोह कानून को खत्म करने के पीछे कांग्रेस की क्या मंशा है? क्या राष्ट्रद्रोह के खिलाफ देश में कोई कानून ही नहीं होगा?

-आप देखिए राष्ट्रदोह का कानून किसके ऊपर लागू हो रहा है। इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। जेएनयू के छात्रों पर लागू किया जा रहा है। पत्रकारों व राजनीति विरोधियों पर लागू कर रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में बने इसे कानून को हटाने की जरूरत है। इसकी जगह दूसरा कानून बनाने की जरूरत है।

भूमि अधिग्रहण कानून बनाने वाले मंत्री जयराम रमेश हैं। भला कांग्रेस को अब इसमें खामियां क्यों नजर आने लगीं?

-कानून जिस रूप में बना था, राज्यों ने उसका स्वरूप बिगाड़ दिया है। इसके कई प्रावधानों को बदल दिया गया है। गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु व हरियाणा जैसे राज्यों ने इसमें बदलाव किया है। किसानो की अनुमति के बगैर उनकी जमीनों का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है। मूल कानून में प्राइवेट के लिए 70 फीसद और सरकारी प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसद किसानों की अनुमति जरूरी है। लेकिन इन राज्यों ने कानून की आत्मा को ही मार डाला। सामाजिक असर मूल्यांकन को समाप्त कर दिया गया है।

राष्ट्रवाद को लेकर कांग्रेस को क्या कोई परहेज है? कांग्रेस राष्ट्रवाद को कैसे परिभाषित करती है। क्या राष्ट्रवाद को अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है?

-राष्ट्रवाद के दो तरीके हैं। एक राष्ट्रवाद जो एकता पर आधारित है और दूसरा राष्ट्रवाद एकरूपता पर आधारित है। हमारा राष्ट्रवाद एकता पर आधारित है। भाजपा का राष्ट्रवाद एकरूपता (यूनिफार्मिटी) पर आधारित है, जिसमें सभी एक जैसे होने चाहिए। दोनों के राष्ट्रवाद में बहुत फर्क है। हमारा दर्शन अनेकता में एकता रहा है। हमारा राष्ट्रवाद सबको जोड़ने वाला है।

प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने में क्या कांग्रेस ने बहुत देरी नहीं कर दी है। और अब उन्हें बहुत छोटे से क्षेत्र में सीमित कर दिया है ?

-नहीं प्रियंका आज केरल गई हैं। गुजरात में सार्वजनिक सभा को संबोधित कर चुकी हैं। लेकिन उनका पोर्टफोलियो बहुत सीमित जगह पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित कर दिया गया है। लेकिन हां, पहले तो रायबरेली और अमेठी तक सीमित थीं। अब तो वह राजनीति में पूरी तरह उतर चुकी हैं। देखिये उनका क्या मन है।

राहुल गांधी को केरल से भी चुनाव लड़ाने के पीछे पार्टी की क्या मंशा है ?

-दक्षिणी राज्यों से लगातार उनके लिए बुलावा आ रहा था। केरल का वायनाड एक ऐसी जगह है जो चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण है। वहां से केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से भी जुड़ा हुआ है। दक्षिण भारत की नाराजगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। वहां की भावना है कि मोदी ने दक्षिणी राज्यों से भेदभाव किया है। उसका फायदा उठाने के लिए पार्टी अध्यक्ष का वहां से चुनाव लड़ना वाजिब है। मोदी जी बड़ोदरा और बनारस से लड़े, इंदिरा जी मेडक से लड़ीं। कम्युनिस्टों को भी उदार होना चाहिए। छोटे-छोटे दलों को भी कुछ सोचना चाहिए। कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है। देश के गांव-गांव, कस्बों और ब्लॉक तक में हमारे कार्यकर्ता हैं। कांग्रेस को कमतर आंकना राजनीतिक नासमझी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.