Lok Sabha Elections 2019: जम्मू-कश्मीर में नेकां का कांग्रेस से गठबंधन, श्रीनगर से फारूक होंगे उम्मीदवार
National Conference and Congress. जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया है।
राज्य ब्यूरो, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच गठजोड़ को लेकर जारी गतिरोध तो दूर हो गया। लेकिन गांठ बरकरार है। लद्दाख सीट पर फैसला टल गया है, जबकि रार का मुख्य कारण बनी अनंतनाग की सीट पर न कांग्रेस झुकी और न नेकां ने हार मानी है। अनंतनाग सीट पर दोनों के बीच दोस्ताना मुकाबला होगा। सिर्फ श्रीनगर संसदीय सीट के अलावा जम्मू संभाग की दो सीटों पर कांग्रेस व नेकां एक-दूसरे का साथ देंगी। फिलहाल, दोनों दल न तेरी- न मेरी के इस फार्मूले को दोनों के लिए जीत बता रहे हैं। अलबत्ता, सियासी हल्कों में इसे अपनी सियासी जमीन के साथ साथ छवि बचाने की कवायद बता रहे हैं, ताकि विधानसभा चुनावों में जीत को यथासंभव यकीनी बनाया जाए।
नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनावों के लिए गठजोड़ में उस समय गतिरोध पैदा हुआ था, जब नेकां ने कश्मीर की तीन व लद्दाख प्रांत की सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने का एलान करने के साथ कहा कि कांग्रेस के साथ सिर्फ जम्मू संभाग की दो सीटों पर बात हाेगी। जवाब में कांग्रेस ने भी जम्मू संभाग की दो सीटों के अलावा दक्षिण कश्मीर और लद्दाख सीट पर दावेदार ठोंक दी। सीटों पर तालमेल को लेकर बने गतिरोध को दूर करने के लिए कांग्रेस आला कमान ने गुलाम नबी आजाद और अंबिका सोनी को नई दिल्ली से विशेष तौर पर भेजा था। नेकांध्यक्ष डॉ फारुक अब्दुल्ला के साथ उनके निवास पर कांग्रेस नेताओं की बैठक हुई, जो करीब 45 मिनट चली।
बैठक के बाद डॉ फारुक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद ने संयुक्त रूप से पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि धर्मनिरपेक्ष मोर्चे को मजबूत बनाने के लिए समझौता हुआ है। इसमें दोनों जमातों को लेने के साथ देना भी पड़ा है। अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू और उधमपुर की सीट कांग्रेस लड़ेगी, इन सीटों पर हमारा कोई उम्मीदवार नहीं होगा। श्रीनगर सीट पर मैं नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ से चुनाव लड़ूंगा और कांग्रेस कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी। उत्तरी कश्मीर में बारामुला और दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग सीट पर दोनों दल अपने अपने उम्मीदवार खड़ा करेंगे, लेकिन दोनों एक-दूसरे के वोट नहीं काटेंगे। यह दोस्ताना मुकाबला किसी तीसरे की जीत को रोकने के लिए ही होगा। लद्दाख पर भी हम दोस्ताना मुकाबला करेंगे, लेेकिन इस पर साझा उम्मीदवार की संभावना भी है।
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि इससे बेहतर कोई दूसरा फैसला नहीं हो सकता था। अगर जम्मू में नेकां अपने उम्मीदवार उतारती तो फायदा भाजपा को होता। कश्मीर में एक दल का वोट दूसरे दल में बदलना मुश्किल होता है, वहां हम अपने वोटरों को संभाल सकें। कश्मीर में हमारी लड़ाई तीसरे को हराने की होगी। हमारा दोस्ताना मुकाबला होगा।
कांग्रेस और नेकां के बीच हुए इस गठबंधन को सियासी हल्कों में दोनों दलों की अपनी सियासी जमीन और छवि बचाने के साथ साथ आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-नेकां गठजोड़ की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। राज्य में सभी छह सीटों के समीकरण को देखते हुए सीधे शब्दों में कहा जाए तो मौजूदा हालात में नेशनल कॉन्फ्रेंस किसी भी तरह से जम्मू संभाग की दोनों सीटों पर जीत दर्ज करने में समर्थ नहीं थी। जम्मू के लिए उसने पूर्व मुख्य सचिव बीआरकुंडल को अपना प्रत्याशी घोषित कर रखा था, लेकिन उनकी जीत का कोई दावेदार नहीं था। उन्हेंं नेकां के परंपरागत वोटरों का एक बड़ा वर्ग आसानी से वोट नहीं देता, जो पीडीपी की तरफ खिसकता। इससे पीडीपी मजबूत होती और फायदा भाजपा को पहुंचता। यही स्थिति उधमपुर सीट पर है। कांग्रेस जो मौजूदा परिस्थितियों में इन दोनों सीटों पर कमजोर नजर आती, नेकां के वोटरों के सहारे भाजपा से यह सीट छीनने की स्थिति में आ सकती है, बशर्तें आम कांग्रेसी कार्यकर्त्ता अपना पूरा जोर लगाए और उम्मीदवार एक प्रभावी छवि वाला हो।
उधर, कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए लोसभा चुनाव पूरी तरह प्रतिष्ठा और अस्तित्व का सवाल बने हुए हैं। नेकां नहीं चाहती कि वर्ष 2014 में जो उसका हश्र हो, वह 2019 में भी हो। पिछले संसदीय चुनावों में उसके तीनों प्रत्याशी जिनमें डॉ फारुक अब्दुल्ला भी थे, पीडीपी के प्रत्याशियों से हार गए थे। श्रीनगर संसदीय सीट पर डॉ अब्दुल्ला पीडीपी के तारिक करा से हारे थे। हालांकि 2017 में इसी सीट पर हुए उपचुनाव में डॉ अब्दुल्ला जीते थे, लेकिन वह जीत नेकांध्यक्ष की छवि और कद के हिसाब से बहुत छोटी थी। मात्र सात प्रतिशत ही मतदान हुआ था, जो कश्मीर में किसी संसदीय सीट पर सबसे कम मतदान का रिकार्ड है। अगर यह समझौता नहीं होता तो तारिक हमीद करा कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ते। पीडीपी भी इस सीट पर जोर लगा रही है। इस पूरे क्षेत्र में 15 संसदीय क्षेत्रों में सात में पीडीपी के ही विधायक हैं और कांग्रेस के चुनाव लड़ने से यहां पीडीपी को फायदा पहुंचता। अब तारिक करा डॉ फारुक अब्दुल्ला के लिए चुनाव प्रचार करेंगे। इसके अलावा बडगाम में पीडीपी के एक पुराने नेता सरफराज खान भी पीडीपी का साथ छोड़ चुके हैं।
उधर ,उत्तरी कश्मीर में अगर कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ती है तो पहाड़ी और गुज्जर समुदाय के प्रभाव वाले इलाकों में उसका वोटर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस व पीडीपी की तरफ जाता और नुकसान नेकां को होता। इसलिए अगर दोनों दल चुनाव लड़ते हैं तो उनका वोटर उनके साथ रहेगा। अगर पीडीपी से नाराज वोटर उनके साथ आता है तो जीत भी सकते हैं। दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग सीट जहां से पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती के चुनाव लड़ने की संभावना है, में प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर की स्थिति भी मजबूत है। यह भी एक कारण रहा है कि जो वर्ष 2017 में इस सीट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के भाई तस्सदुक मुफ्ती की हार की तीव्र आशंका कोदेखते हुए उपचुनाव को श्रीनगर संसदीय सीट की हिंसा के आधार पर स्थगित कर दिया गया था। नेकां ने हसनैन मसूदी को इस सीट से लड़ाने का फैसला किया है, वह भी दक्षिण कश्मीर में अच्छी छवि रखते हैं। नेकां के लिए यह सीट कश्मीर की सियासत के लिहाज से जरुरी है। कांग्रेस के चुनाव न लड़ने की स्थिति में अनंतनाग-पुलवामा के ऊपरी इलाकों का वोटर या तो मतदान से दूर रहता या फिर पीडीपी के ही पाले में ही जाता। इससे महबूबा मुफ्ती को ही फायदा पहुंचता।
कश्मीर की सियासत पर नजर रखने वालों के मुताबिक, कांग्रेस-नेकां के बीच आज जो समझौता हुआ है, वह यह बता रहा है कि नेकां नहीं चाहती कि उसे 2014 की स्थिति का सामना करना पड़े। यह समझौता सिर्फ कांग्रेस आला कमान में फारुक अब्दुल्ला के अच्छे संबंधों के आधार पर हुआ है। अगर कांग्रेस का साथ नहीं मिलता तो उनकी जीत को आसानी से दावा नहीं किया जा सकता था। इसके अलावा यह गठजोड़ आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी है।