Lok Sabha Election 2019: मौन नहीं है मुंगेर, लड़ाई उन्नीस-बीस की नहीं बीस-बीस की है
Lok Sabha Election 2019 मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव को लेकर कोई कह रहा है ललन बाबू का लखीसराय सॉलिड है तो कोई मोकामा से नीलम देवी की लीड लेने की संभावना का गणित गिना रहा है।
मुंगेर [भारतीय बसंत कुमार]। निश्चितताओं के पैरों तले की जमीन खिसकी हुई है, इसलिए मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में सीधे मुकाबले के बीच संतुलन का फॉर्मूला केवल मैदान के महारथी ही नहीं, वोटर भी अपनी चौपाल पर भी सेट कर रहे हैं। कोई कह रहा है ललन बाबू का लखीसराय सॉलिड है तो कोई मोकामा से नीलम देवी की लीड लेने की संभावना का गणित गिना रहा है। सबकी जुबां पर एक ही बात -अबकी कांटे की टक्कर है। कुछ कहना मुश्किल है। यहां बस एक ही चर्चा है, लड़ाई उन्नीस-बीस की नहीं, बीस-बीस की है।
न घमंड है, न दरवाजा बंद है, यही भरोसेमंद है
सूर्यगढ़ा, बाढ़, जमालपुर, लखीसराय और मुंगेर विधानसभा में छोटे-छोटे टुकड़ों में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन शनिवार को भी समर्थकों की टोली रोड शो जैसा आयोजन करती दिखी। लखीसराय से पांच किलोमीटर पहले प्रतापपुर के आसपास मोटरसाइकिल रैली निकाल भाजपा-जदयू वर्कर आसपास के गांव में भ्रमण करते दिखे। इसके पहले घूम रहा था नीलम देवी का प्रचार वाहन। मोटे-मोटे अक्षरों में नारा लिखा हुआ- न घमंड है, न दरवाजा बंद है, यही भरोसेमंद है।
भाषण में इमोशनल टच
बीच दोपहरी में लखीसराय बाजार में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन ललन सिंह खुद समर्थकों के साथ जुटे थे। उधर एक स्कूल के मैदान में नीलम देवी और तेजस्वी की सभा हो रही थी। कम शब्दों में तेजस्वी लोगों को बार-बार यही बता रहे थे कि उनके नेता पिता लालू प्रसाद को फंसाया गया है। ललन सिंह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बार-बार नाम लेकर भाजपाइयों को लगभग गरियाते हुए वे अपने समर्थकों से राजग गठबंधन को मिट्टी में मिलाने का संदेश दे रहे थे। इमोशनल एप्रोच भी था। सातवां पास को पुलिस बनाएंगे। तार का पेड़ और महुआ को फिर से आबाद कराएंगे। इसके साथ ही शराबबंदी की विफलता पर भी तेजस्वी चोट कर रहे थे। बोलने का अंदाज थोड़ा, पर पूरा नहीं, पिता जैसा अब होने लगा है। मंच से बोलना फिर सामने भीड़ से हाथ उठवाना। यह भी कि लालू जी जब जेल जा रहे थे तो मैं (तेजस्वी) निराश हो गया। तब उन्होंने कहा कि जब दिक्कत हो तब अपने मालिकों यानी समर्थकों के पास जाना। कुल मिलाकर इमोशनल एप्रोच।
सबकी सबको खबर है
खैर, अब सभा से निकलिए और चलिए आपको क्षेत्र लिए चलते हैं। लोगों की बड़ी बारीक नजर है। कुर्मी चक में ही सभा क्यों हुई? आरसीपी किस इलाके में कौन सा हिस्सा दुरुस्त कर रहे हैं। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भी बाढ़ के किस हिस्से में पसीना बहा रहे थे? एकडंगा-गोआर के राजपूतों का समर्थन अनंत सिंह को कुछ ज्यादा क्यों है या कि अचुआरा-दहोड़ में अरविंद भगत की मुखिया पत्नी रेखा देवी के खुलकर जदयू के साथ होने का एक्शन-रिएक्शन क्या है? ज्ञानू जी का सीधा कितना असर है चित्तौडग़ढ़ पर? या कि मोदीजी का असर है? बिहारी बिगहा से कितनी मोटरसाइकिल? मोहन सिंह टोला से कितनी? सबको सबकी खबर है। जदयू के प्रदेश प्रवक्ता संजय सिंह बाढ़ में खूब सक्रिय हैं और यह दावा कर रहे हैं कि वे मुखिया समागम में जुटे हैं। राजपूतों की गुटबंदी को ललन सिंह के सापेक्ष कई जगह मिटाने का दावा कर रहे संजय को भरोसा है कि नीतीश जी के विकास के नाम पर हर जात का वोट राजग उम्मीदवार को मिलेगा।
अपने-अपने दावे हैं
बाढ़ के जिस सबनीमा से लोकसभा की शुरुआत पटना के पास से होती है वहां से लेकर मुंगेर-जमालपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर तक निश्चय ही नरेंद्र मोदी एक बड़े फैक्टर हैं। तभी तो हेमजापुर के रुदो महतो कहते हैं कि कैंडिडेट तो पुराने हैं, लेकिन मोदीजी को प्रधानमंत्री बनना है। इनके ठीक आगे नीलम देवी के समर्थक हैं। नाम विष्णुदेव यादव, गांव मुंगेर का सिंधिया। कहते हैं कि माय समीकरण सीधे-सीधे नीलम देवी के साथ है। भूमिहार वोट बंटेगा ही। अनंत सिंह को हर जात का वोट है, ऐसा वे गिनाते हैं। यह भी बताते हैं कि पास के ही जयशंकर यादव पूर्व मुखिया के द्वार पर ललन बाबू लोगों से मिल चुके हैं, लेकिन यादव वोट कहां जाएगा यह तय है। गांव में प्रचार का तंत्र इधर बड़ा सक्रिय है। कांग्रेस का एसएमएस आता है कि कहां-कहां सभा है। जिधर जाइए, लोग दो बातें जरूर कहते हैं कि इस चुनाव में प्रत्याशी क्षेत्र में पसीना खूब बहा रहे हैं। कम समय ही सही, लेकिन राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और नीलम देवी के समर्थन में अनंत सिंह का गांव-गलियों की खाक छानना भी चर्चा में है।
मोकामा में नाराजगी
इधर, मोकामा में जन नाराजगी है। मैकडोनाल्ड, बाटा, एनटीपीसी, भारत वैगन के बंद हो जाने से, ट्रकों के कारोबार घट जाने से मोकामा उदास है। सिख परिवार के मुखिया दलजीत सिंह अनंत सिंह के फैन हैं। खुल कर बोलते हैं जो आदमी जेल से चुनाव जीत गया वो बाहर होकर कितना सक्रिय होगा... तूसी समझ लो जी...। जो भी जाता सबसे वे यानी अनंत मिलते हैं और खान-जलपान की चिंता करते हैं। दलजीत मानते हैं कि प्रतिद्वंद्वी राजग उम्मीदवार से कांटे का संघर्ष है, लेकिन मोकामा में नाजरथ हॉस्पिटल के बंद हो जाने का दोष राज्य सरकार पर ही मढ़ते हैं। कहते हैं कि मोकामा पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। क्या था क्या हो गया?
किसी की जागीर नहीं
इस लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा का संतुलन है। मुंगेर और सूर्यगढ़ा में राजद के विधायक हैं तो बाढ़ और लखीसराय में भाजपा के। जमालपुर में जदयू और मोकामा में निर्दलीय खुद अनंत सिंह। इस सीट पर कांग्रेस, समाजवादी, राजद, जदयू, समता पार्टी, लोजपा से सवर्ण-गैर सवर्ण दोनों लोकसभा सदस्य अलग-अलग काल खंड में बनते रहे हैं। कहने का अभिप्राय यह कि किसी पार्टी या जात की जागीर यह सीट नहीं रही है।
सवाल तपती धूप जैसे
बाढ़ से मुंगेर तक कृषि यंत्रीकरण का खूब असर है। खेत से गेहूं लगभग समेट लिया गया है। भूसे की चमक दिन में भी और चांदनी रात में भी खेत में खुशी उपजने का निशान बनी इतरा रही है। चिलचिलाती धूप में खूब धुंआ उगल रही सूर्यगढ़ा में ईंट भटठा की चिमनी और वहां आग और धूप में देह तपा रहे मजदूर-मजदूरनी लोकतंत्र के इस महापर्व से सवाल पूछती है कि पर्व में उनके लिए सुख-चैन का कोई प्रसाद है क्या या फिर अगले पांच साल बाद फिर इसी सवाल के साथ इसी धूप को साक्षी मानकर फिर सवाल करना ही होगा।
बराबर की लड़ाई
बाढ़ में बहती गंगा मुंगेर से भी उसी लय-रूप में आगे बढ़ रही है। यह पूछते हुए कि हे गंगा पुत्र वोटरों नमामि गंगा में अगले चुनाव तक मैं और धवल, निर्मल और तेज बह सकूंगी न? मेरी बाहें और फैल जाएंगी न, जैसी पहले थी। अपर किऊल और लोअर किऊल, मनी नदी का भी तो यही सवाल है कि इस चुनाव में उनकी पेटी का सूखा जात-धर्म के ऊपर एजेंडा क्यों नहीं बन सका? बहरहाल, बंगाल के अंतिम नवाब मीरकासिम की राजधानी मुंगेर में चटकल के गेट से जमालपुर कारखाने के अंदर तक एक ही चर्चा है, लड़ाई उन्नीस-बीस की नहीं बीस-बीस की है।