Lok Sabha Election 2019: High-profile poll battle Dumka... कहीं गुरु तो कहीं चेला भारी
भाजपा सुनील सोरेन के बहाने उस टोटके को फिर से आजमा रही है जिसकी बदौलत बाबूलाल मरांडी ने लगातार चुनाव जीत रहे शिबू सोरेन को पटखनी दी थी।
दुमका, आशीष झा। झारखंड की उपराजधानी दुमका में अब जाकर राजनीतिक तापमान गर्म होने लगा है। चारों ओर वीआइपी गाडिय़ां दौड़ रही हैं, हालांकि आसमान से उडऩ खटोले यहां कम पहुंच रहे हैं। दिशोम गुरु झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन यहां से सात बार चुनाव जीत चुके हैं। एक उपचुनाव जीतने का भी श्रेय उन्हें जाता है। अब उनकी कोशिश है की एक जीत दर्ज कर नौ जीतों का रिकॉर्ड बना दें लेकिन एक जमाने में उनके चेले रहे और अब प्रतिद्वंद्वी सुनील सोरेन पूरी चुनौती के साथ डटे हुए हैं।
लगातार दो बार सुनील सोरेन हार चुके हैं लेकिन उन्होंने मार्जिन कम किया है, पार्टी का विश्वास भी जीता है। यही कारण है कि जब राज्य में जीते हुए उम्मीदवारों के टिकट कटे तब सुनील को लेकर कहीं कोई परेशानी सामने नहीं आई। गुरु जी के रग-रग से परिचित सुनील सोरेन हर उस जगह पर पहुंच रहे हैं जहां थोड़ी सी भी संभावना बन रही है और बाकी काम मोदी के नाम पर चल रहा है। संताल का पिछड़ापन एक बड़ा कारण है जिससे झामुमो का आदिवासी वोट बैंक भी खिसक रहा है। जाहिर सी बात है कि यह गुरुजी की टीम के लिए भी परेशानी का सबब है।
भाजपा सुनील सोरेन के बहाने उस टोटके को फिर से आजमा रही है जिसकी बदौलत बाबूलाल मरांडी ने लगातार चुनाव जीत रहे शिबू सोरेन को पटखनी दी थी। 1998 के पहले बाबूलाल मरांडी भी लगातार दो बार शिबू सोरेन से चुनाव हार चुके थे लेकिन भाजपा ने फिर उन्हें मौका दिया और तीसरी लड़ाई में मरांडी ने सोरेन को परास्त कर दिया था। भाजपा के लिए अब सुनील सोरेन की बारी है और उनके साथ उसी प्रकार से मोदी फैक्टर है जिस प्रकार से कभी बाबूलाल मरांडी के साथ अटल फैक्टर जुड़ गया था। ऐसे भी दुमका में शिबू सोरेन तभी हारे हैं जब कोई राष्ट्रव्यापी फैक्टर यहां असर करता है। 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव लहर में, 1998 में 13 महीने की वाजपेयी सरकार गिरने के बाद भाजपा के पक्ष में चली लहर में शिबू हारे थे। ऐसे में इस बार मोदी लहर कारगर रहा तो शिबू सोरेन मुश्किल में पड़ सकते हैं। ऐसा नहीं कि शिबू सोरेन को इस बात का इल्म नहीं। कहीं न कहीं यही कारण रहा है कि सोरेन की टीम मतदाताओं को बता रही है कि यह उनकी आखिरी पारी होगी। लोक भावनात्मक रूप से उससे जुड़ भी रहे हैं और झामुमो के कार्यकर्ता इस बात को अधिक से अधिक फैलाने में भी जुटे हैं।
नक्सल खौफ हुआ है कम : दुमका से लगभग 20 किलोमीटर दूर काठीकुंड का जमुनिया मोड़ अभी भी नक्सलियों के तांडव का गवाह है जहां पर छह साल पहले पुलिस अधीक्षक अमरजीत बलिहार की हत्या की गई थी। इस बार झारखंड के तीन चरणों में चुनाव नक्सली गतिविधियों से लगभग वंचित रहे हैं और ऐसा ही दुमका में रहा तो निश्चित रूप से निर्भीक मतदाता अपने हिसाब से मतदान कर सकेंगे। इसका आंशिक लाभ सुदूर क्षेत्र में उन मतदाताओं को भी मिलेगा जो सुरक्षा कारणों से केंद्रों पर नहीं पहुंचते थे। लोकसभा क्षेत्र के सभी इलाके में व्यापक पैमाने पर राज्य एवं केंद्रीय बलों की प्रतिनियुक्ति हुई है। दुमका में पलामू गढ़वा और लातेहार के जवान पहुंचे हैं तो चाईबासा से भी रंगरूटों की पलटन आई है। केंद्रीय बल तो आए ही हैं। कहीं ना कहीं मतदाता आश्वस्त है कि चुनाव में विघ्न नहीं पड़ेगा। जमुनिया मोड़ पर मिले सनत किस्कू बताते हैं कि इस बार लोग निश्चिंत हैं और वोट देने के लिए इच्छुक भी। पिछले चुनाव से ठीक पूर्व हुई हिंसा ने लोगों के मन में डर पैदा कर दिया था जो पिछले 5 वर्षों में खत्म हो चुका है। वे तत्काल मोदी सरकार को श्रेय देते हैं लेकिन जोड़ते हैं कि दिशोम गुरु से टकराना मुश्किल है।
जमीन के मुद्दे पर गोलबंद आदिवासी : दुमका शहर में गैर आदिवासी मतदाता सुनील सोरेन के पक्ष में अधिक दिख रहे हैं तो आदिवासी मतदाता शिबू सोरेन के। यहां से राज्य सरकार में मंत्री और वर्तमान विधायक लुईस मरांडी से नाराज एक वर्ग भी शिबू के पक्ष में है। पिछले दिनों आदिवासी छात्रावास पर प्रशासन की दखल भी यहां के आदिवासियों के लिए मुद्दा है। लेकिन इन सभी मुद्दों के ऊपर जमीन का मुद्दा है। सीएनटी एक्ट में संशोधन की कोशिश को लोग भुला नहीं पा रहे हैं। शशिधर मुर्मू बताते हैं कि झारखंड में गैर आदिवासी सरकार ने हमारे हितों की चिंता नहीं की जबकि शिबू सोरेन से इसकी उम्मीद की जाती है और यही कारण है कि अंत अंत तक पूरी बिरादरी उनके साथ हो जाती है। शशिधर यह भी स्वीकार करते हैं की झामुमो सांसद यह मुद्दा लोकसभा में नहीं उठाते हैं। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि लोकसभा में सवाल न उठाने के शिबू सोरेन के आचरण पर भी बिरादरी की नजर है।
पीएम के आने से बनेगा माहौल : बुधवार को गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के देवघर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार करने पहुंच रहे हैं और उस में भाग लेने के लिए दुमका से हजारों की संख्या में भाजपा कार्यकर्ता पहुंच रहे हैं। कार्यकर्ताओं को यह उम्मीद है कि मोदी का संदेश लेकर जब वह ग्रामीणों तक पहुंचेंगे तो इलाके का माहौल बदलेगा। भाजपा उम्मीदवार सुनील सोरेन के पक्ष में मोदी फैक्टर के साथ-साथ एक मजबूत संगठन भी है जो दिन रात लगा हुआ है। पूरे प्रदेश से नेता और कार्यकर्ता आकर यहां डटे हुए हैं और इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधि भी हैं। झामुमो से क्षेत्र को मुक्त कराने के लिए पूरी टीम पूरी शिद्दत से लगी हुई है। भाजपा की कोर टीम उन इलाकों में भी काम कर रही है जहां पिछली बार बाबूलाल मरांडी को अधिक वोट मिले थे। मरांडी इस बार शिबू सोरेन के साथ हैं और कांग्रेस भी सोरेन के पीछे पीछे घूम रही है इसके बावजूद कहीं न कहीं इस बात की भी संभावना है कि मरांडी अपने मतों को शिबू सोरेन में कन्वर्ट नहीं करा पाए। इन मतों में से अधिक से अधिक अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा की कोर टीम जुटी हुई है। इसमें भाजपा टीम की सफलता यह तय कर देगी कि गुरुजी को परास्त करना मुमकिन है। भाजपा पहले भी ऐसा कर चुकी है।
जीत का मंत्र
शिबू सोरेन, झामुमो
1. आदिवासी मतों को सहेजकर रखने की कोशिश करनी होगी।
2. जमीन के मुद्दे पर आदिवासी मतदाता सरकार के खिलाफ हैं, जीत के लिए इस मुद्दे को जिंदा रखना होगा।
3. शिकारीपाड़ा में बाबूलाल को पिछली बार सर्वाधिक वोट मिले थे। इस बार यहां से वोट प्रबंधन की कोशिश करनी होगी।
4. झामुमो के तीनों विधायकों के क्षेत्रों क्रमश: नाला, जामा और शिकारीपाड़ा में बढ़त लेने के लिए पूरी कोशिश करनी होगी।
5. जामताड़ा में कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी का साथ लेकर जीत सुनिश्चित करना।
सुनील सोरेन, भाजपा
1. लंबे कार्यकाल में शिबू के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को भुनाने की कोशिश करना।
2. परंपरागत मतों को अपने साथ जोड़कर रखते हुए नए क्षेत्रों में मतों की तलाश करना होगा।
3. पिछले चुनाव में बाबूलाल मरांडी के साथ गए एंटी झामुमो वोटरों को अपने साथ जोडऩे की कोशिश करें।
4. सारठ और दुमका में लीड लेने की पूरी कोशिश हो। ये दोनों क्षेत्र भाजपा के पास हैं और दोनों विधायक मंत्री भी हैं।
5. मजबूत संगठन के साथ मजबूती से खड़े हों तो जीत कोई मुश्किल बात नहीं।
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